शेखपुराः बिहार के शेखपुरा जिला कांग्रेस के दिग्गज नेता और जिले के संस्थापक माने जाने वाले पूर्व सांसद राजो सिंह (Former MP Rajo Singh) हत्याकांड मामले में 17 साल बाद शुक्रवार को न्यायालय का फैसला आया. जिसमें सभी आरोपियों (Five Accused Of Rajo Singh murder case Acquitted In Sheikpura) को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया गया. अदालत ने अपने फैसले में जिन पांच आरोपियों को दोष मुक्त किया उनमें शंभू यादव, अनिल महतो, बच्चू महतो, पिंटू महतो और राजकुमार महतो शामिल हैं. इससे पहले इस मामले में कुख्यात अशोक महतो को साक्ष्य के अभाव में रिहा किया जा चुका है. इतने साल बाद भी इन तमाम आरोपियों के खिलाफ कोई सबूत कोर्ट में पेश नहीं किया जा सका. इस मामले में निर्णय आने में 17 साल लग गए, लेकिन आज भी इस सवाल का जवाब नहीं मिल पाया कि आखिर राजो सिंह की हत्या किसने की?
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कुल 36 गवाह न्यायालय में पेशः इस मामले में लंबी न्यायिक प्रक्रिया के दौरान अभियोजन द्वारा कुल 36 गवाहों को न्यायालय में पेश किया गया. जिसमें सूचक बरबीघा विधायक सुदर्शन कुमार के अलावा डॉक्टर, पुलिस पदाधिकारी, ग्रामीण और प्रत्यक्षदर्शी शामिल थे. बचाव पक्ष की ओर अधिवक्ता रविंद्र प्रसाद और दुर्गेश नंदन ने इस मामले में झूठा फंसाने को लेकर जोरदार बहस करते हुए प्रभावी तरीके से न्यायालय में विभिन्न प्रकार के तथ्य प्रस्तुत किए थे. न्यायालय में शुक्रवार को अभियोजन द्वारा जोरदार बहस की गई. इस मामले में सभी आरोपी के खिलाफ मजबूत साक्ष्य प्रस्तुत करने का दावा किया गया लेकिन इसके पूर्व बचाव पक्ष द्वारा दी गई दलील में अभियोजन के दावे को खोखला बताया गया था.
भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी थे नामजद अभियुक्तः इस संबंध में अपर लोक अभियोजक शंभू शरण सिंह ने बताया कि हत्या के तुरंत बाद सदर थाना शेखपुरा में दर्ज प्राथमिकी में अशोक चौधरी (बिहार सरकार में मंत्री) , पूर्व जेडीयू विधायक रणधीर कुमार सोनी, शेखपुरा नगर परिषद के पूर्व जिलाध्यक्ष मुकेश यादव, टाटी पुल नरसंहार के सूचक मुनेश्वर प्रसाद, लट्टू पहलवान सहित अन्य लोगों के खिलाफ नामजद प्राथमिकी दर्ज की गई थी लेकिन इस मामले में पुलिस ने मंत्री अशोक चौधरी, तत्कालीन विधायक रणधीर कुमार सोनी, लट्टू पहलवान, मुकेश यादव और मुनेश्वर प्रसाद के खिलाफ हत्या के मामले में आरोप पत्र भी समर्पित नहीं किया था. वहीं, इस मामले के एक अन्य आरोपी कमलेश महतो की मृत्यु भी हो चुकी है.
'फैसले में कुछ नहीं था, साक्षय के अभाव में 5 लोगों को बरी कर दिया गया. 8 लोगों पर आरोप था. दो आरोपी मर गए थे और एक को बहुत पहले ही रिहा कर दिया गया था. जो भी गवाह थे वो सभी मुकर गए. कोर्ट के पास कोई कारण नहीं था कि आरोपी सजा दे'- रविंद्र प्रसाद सिन्हा, आरोपी पक्ष के वकील
'न्यायालय पर भरोसा था, मेरा इस हत्या से कोई मतलब नहीं था, फिर भी मैंने 17 साल झेला. मुझे यकीन था कि आरोप मुक्त हो जाउंगा, क्योंकि मैं इस हत्या में शामिल ही नहीं था, ये सभी जानते हैं कि मैं निर्दोष था'- शंभू यादव, बरी आरोपी
9 सितंबर 2005 को ऐसे हुई थी हत्याः गौरतलब है कि राजो सिंह की हत्या 9 सितंबर 2005 को शेखपुरा नगर परिषद क्षेत्र के कांग्रेस कार्यालय आजाद हिंद आश्रम में शाम 6:45 मिनट पर हुई थी. उस दिन राजों सिंह की आश्रम में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. चार मोटरसाइकिल पर सवार आठ हथियारबंद अपराधियों ने राजो सिंह पर अंधाधुंध फायरिंग की थी. इस संबंध में उनके पौत्र वर्तमान बरबीघा विधायक सुदर्शन कुमार ने थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई थी. इस घटना में मौके पर राजो सिंह के साथ विचार विमर्श कर रहे लोहान गांव निवासी सरकारी कर्मी श्याम किशोर सिंह की भी अपराधियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी. राजो सिंह की हत्या ने जिले की राजनीति को पूरी तरह हिला कर रख दिया था. हालांकि बाद में इस हत्या को लेकर राजनीति दांव पेच भी देखने को मिले.
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राजो सिंह के पौत्र ने केस लड़ने से किया था मनाः पूर्व सांसद राजो सिंह के मर्डर केस में 21 मई को उस वक्त नाटकीय घटनाक्रम देखने को मिला, जब सूचक सुदर्शन कुमार ने कोर्ट में कहा कि मुझे केस ही नहीं लड़ना. जिसके बाद जज भी आश्चर्य में पड़ गए. राजो सिंह हत्याकांड के सूचक उनके पौत्र सुदर्शन कुमार ही हैं. फिलहाल वो बरबीघा विधानसभा क्षेत्र से सत्ताधारी जनता दल यूनाइटेड के विधायक हैं. राजो सिंह मर्डर केस में सूचक जेडीयू विधायक सुदर्शन कुमार ने जिस आरोपी शम्भू यादव को पहले पहचानने की बात स्वीकार की थी, 21 अप्रैल को वो अपने बयान से ही पलट गए. इसके बाद बीते शुक्रवार 3 जून को कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया. अब तक इस मामले में सुदर्शन कुमार की ओर से कोई बयान सामने नहीं आया है.
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