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सारणः देखरेख के अभाव में चीनी मिल के महंगे उपकरणों की हो रही चोरी

कानपुर शुगर वर्क्स सहित अन्य फैक्ट्रियां वीरान पड़ी है. देखरेख के अभाव में इन फैक्ट्रियों से महंगे उपकरणों की चोरी की जा रही है और भू-माफियां इस पर अवैध कब्जा कर रहे हैं.

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Published : Mar 14, 2020, 10:08 AM IST

सारणः छ्परा के मरहौरा अनुमंडल में लगे औधोगिक इकाइयों के बदौलत सारण जिले का नाम भारत के औद्योगिक मानचित्र मे शुमार होता था. एक समय में यहां कानपुर शुगर वर्क्स, सारण इंजीनियरिंग, शराब फैक्ट्री और चाकलेट बनाने वाली बिड़ला ग्रुप की फैक्ट्रियों में खूब उत्पादन होते थे. मरहौरा में 24 घंटे चिमनियों से धुआं निकलता रहता था. कर्मचारी तीनों शिफ्ट मे कार्य करते थे. लेकिन वर्तमान में सभी फैक्ट्रियां वीरान पड़ी है.

करोड़ों रुपये का भुगतान है बाकी
सन 1997 के बाद से इन फैक्ट्रियों पर संकट के बादल छाने लगे. कानपुर शुगर वर्क्स के मजदूरों और किसानों को भुगतान नहीं किया जाने लगा. जिसके बाद प्रमोटर के रुप में जायसवाल ने इसे चलाने की कोशिश की, लेकिन ज्यादा दिनों तक नहीं चला सके. चिनी मिल के एक पूर्व कर्मी गणपत प्रसाद यादव ने कहा कि गन्ना किसानों के साढे पांच करोड़ और कर्मियों के 18 करोड़ रुपये का भुगतान बाकी है. उन्होंने कहा कि चीनी मिल की जमीन को बेच दिया जाए तो सभी का भुगतान हो जाएगा.

पीएम के आश्वासन के बाद भी नहीं खुली फैक्ट्री
जिले में जनसभा को संबोधित करने आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चीनी मिल को दोबारा खुलवाने का आश्वासन दिया था, लेकिन उस दिशा में कुछ होता दिख नहीं रहा है. स्थानीय लोगों ने कहा कि देख-रेख के अभाव में मिल में लगे महंगे उपकरणों की धड़ल्ले से चोरी हो रही है. मिल की जमीन पर अवैध कब्जा किया जा रहा है.

पेश है रिपोर्ट

स्थानीय लोगों को नहीं मिल रहा रोजगार
वहीं, यूपीए की सरकार मे यहां डीजल इंजन कारखाने की स्थापना की गई जिसे एनडीए सरकार में गति दी गई. कारखाने के शुरू होने से स्थानीय लोगों को उम्मीद थी कि रोजगार मिलेंगे. लेकिन लोगों को एक बार फिर निराशा हाथ लगा. इसके लिए कई बार आंदोलन भी हो चुका है.

सारणः छ्परा के मरहौरा अनुमंडल में लगे औधोगिक इकाइयों के बदौलत सारण जिले का नाम भारत के औद्योगिक मानचित्र मे शुमार होता था. एक समय में यहां कानपुर शुगर वर्क्स, सारण इंजीनियरिंग, शराब फैक्ट्री और चाकलेट बनाने वाली बिड़ला ग्रुप की फैक्ट्रियों में खूब उत्पादन होते थे. मरहौरा में 24 घंटे चिमनियों से धुआं निकलता रहता था. कर्मचारी तीनों शिफ्ट मे कार्य करते थे. लेकिन वर्तमान में सभी फैक्ट्रियां वीरान पड़ी है.

करोड़ों रुपये का भुगतान है बाकी
सन 1997 के बाद से इन फैक्ट्रियों पर संकट के बादल छाने लगे. कानपुर शुगर वर्क्स के मजदूरों और किसानों को भुगतान नहीं किया जाने लगा. जिसके बाद प्रमोटर के रुप में जायसवाल ने इसे चलाने की कोशिश की, लेकिन ज्यादा दिनों तक नहीं चला सके. चिनी मिल के एक पूर्व कर्मी गणपत प्रसाद यादव ने कहा कि गन्ना किसानों के साढे पांच करोड़ और कर्मियों के 18 करोड़ रुपये का भुगतान बाकी है. उन्होंने कहा कि चीनी मिल की जमीन को बेच दिया जाए तो सभी का भुगतान हो जाएगा.

पीएम के आश्वासन के बाद भी नहीं खुली फैक्ट्री
जिले में जनसभा को संबोधित करने आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चीनी मिल को दोबारा खुलवाने का आश्वासन दिया था, लेकिन उस दिशा में कुछ होता दिख नहीं रहा है. स्थानीय लोगों ने कहा कि देख-रेख के अभाव में मिल में लगे महंगे उपकरणों की धड़ल्ले से चोरी हो रही है. मिल की जमीन पर अवैध कब्जा किया जा रहा है.

पेश है रिपोर्ट

स्थानीय लोगों को नहीं मिल रहा रोजगार
वहीं, यूपीए की सरकार मे यहां डीजल इंजन कारखाने की स्थापना की गई जिसे एनडीए सरकार में गति दी गई. कारखाने के शुरू होने से स्थानीय लोगों को उम्मीद थी कि रोजगार मिलेंगे. लेकिन लोगों को एक बार फिर निराशा हाथ लगा. इसके लिए कई बार आंदोलन भी हो चुका है.

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