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सारण: महंगाई का दंश झेल रहे हैं कुम्हार समाज के लोग, सरकार के रवैये से मायूस

मूर्तिकारों का कहना है कि महंगाई बढ़ने के कारण अब मूर्तियां ज्यादा नहीं बिकतीं. इस कारण मुनाफा भी कम होता है. सरकार की उदासीन रवैये के कारण ये रोजगार की तलाश में पलायन करने को मजबूर हैं.

महंगाई का दंश झेल रहे कुम्हार
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Published : Sep 25, 2019, 10:05 AM IST

सारण: मिट्टी के बर्तन, खिलौना और मूर्तियां बनाने वाले कुम्हार जाति के लोगों की स्थिति बदहाल है. हाजीपुर से गाजीपुर को जोड़ने वाली राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 19 के किनारे लगभग एक दर्जन से ज्यादा कुम्हार समुदाय का परिवार मिट्टी से विभिन्न देवी-देवताओं की प्रतिमा बनाकर अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं. लेकिन महंगाई का असर अब इनके पेशे पर भी पड़ रहा है. लागत के हिसाब से इन्हें मुनाफा नहीं हो रहा है. इस कारण दूसरे प्रदेशों में रोजगार की तलाश में पलायन करने को ये मजबूर हैं.

जिले के पश्चिमी छोर पर सड़क किनारे श्याम चौक से लेकर ब्रह्मपुर तक दर्जनों ऐसे परिवार हैं जो अपने पुराने पुश्तैनी कार्यो को बखूबी निर्वहन करते आ रहे हैं. लेकिन सरकारी उदासीनता के कारण कुम्हार जाति के लोग अपने आपको उपेक्षित महसूस कर रहे हैं. मूर्तिकारों का कहना है कि इनके पारंपरिक पेशे को अभी तक उद्योग का दर्जा नहीं दिया गया है. जिस कारण कुम्हार समुदाय के लोग अपने पुस्तैनी पेशे को छोड़कर दूसरे प्रदेशों में पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं.

सारण से ईटीवी भारत के संवाददाता की रिपोर्ट

महंगाई की मार झेल रहे कुम्हार
मिट्टी से दुर्गा की प्रतिमा बना रहे कारीगर विकास का कहना है कि अपनी पढ़ाई को बाधित करते मूर्ति बनाने में पिता जी की मदद कर रहे हैं. दुर्गा पूजा को लेकर जुलाई से ही मूर्ति बनाने के काम शुरू हो गया है. इनका कहना है कि अब पहले की तरह मूर्तियों की बिक्री नहीं होती. महंगाई का असर साफ तौर पर देखा जा रहा है.

saran
मूर्ति को अंतिम रूप देने में जुटे मूर्तिकार

पेशे में नहीं हो रहा मुनाफा
वहीं मूर्ति बना रहे धनंजय का कहना है कि चार पीढ़ियों से हम मूर्ति बनाने का काम कर रहे हैं. जुलाई महीने से लेकर अक्टूबर तक मां दुर्गा की प्रतिमा बनाते हैं. अक्टूबर से नवंबर तक लक्ष्मी जी की प्रतिमा और नवंबर से फरवरी तक सरस्वती मां की प्रतिमा बनाने का काम करते हैं. बाकी के दिनों में दीपावली व छठ पूजा के लिए बर्तन बनाये जाते हैं. लेकिन पहले की अपेक्षा अब उतनी बचत नहीं हो पाती है.

saran
मां दुर्गा की बनाई जा रही प्रतिमा

कम बिकती हैं मूर्तियां
मूर्तिकारों का कहना है कि कर्ज लेकर मूर्ति का निर्माण करते हैं. ऊपर से चंदा इकठ्ठा कर मूर्ति खरीदने वालों की मार अलग से झेलनी पड़ती हैं. महंगाई के इस दौर में कोई भी अधिक चंदा नहीं देता है. नतीजा, लोग मूर्ति कम दामों में खरीदते हैं. ऐसे में मुनाफा कुछ नहीं होता. वहीं, जब बनाई गई मूर्तियां नहीं बिकती हैं तो पूंजी डूबने तक कि नौबत आ जाती है.

saran
मां दुर्गा की प्रतिमा

सरकार की उदासीनता
सरकार के उदासीन रवैये के कारण अपनी पुस्तैनी पेशे को छोड़ना कुम्हारों के लिये मजबूरी बन गया है. धीरे-धीरे इनके सामने भूखमरी की नौबत आने लगी है. यदि सराकर ये घोषणा कर दे कि मिट्टी से बने कुल्हड़ को स्टेशन और बस स्टैंड पर चाय पीने के प्रयोग में लाया जाए, तो ये कुम्हारों के लिए वरदान साबित हो सकता हैं.

सारण: मिट्टी के बर्तन, खिलौना और मूर्तियां बनाने वाले कुम्हार जाति के लोगों की स्थिति बदहाल है. हाजीपुर से गाजीपुर को जोड़ने वाली राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 19 के किनारे लगभग एक दर्जन से ज्यादा कुम्हार समुदाय का परिवार मिट्टी से विभिन्न देवी-देवताओं की प्रतिमा बनाकर अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं. लेकिन महंगाई का असर अब इनके पेशे पर भी पड़ रहा है. लागत के हिसाब से इन्हें मुनाफा नहीं हो रहा है. इस कारण दूसरे प्रदेशों में रोजगार की तलाश में पलायन करने को ये मजबूर हैं.

जिले के पश्चिमी छोर पर सड़क किनारे श्याम चौक से लेकर ब्रह्मपुर तक दर्जनों ऐसे परिवार हैं जो अपने पुराने पुश्तैनी कार्यो को बखूबी निर्वहन करते आ रहे हैं. लेकिन सरकारी उदासीनता के कारण कुम्हार जाति के लोग अपने आपको उपेक्षित महसूस कर रहे हैं. मूर्तिकारों का कहना है कि इनके पारंपरिक पेशे को अभी तक उद्योग का दर्जा नहीं दिया गया है. जिस कारण कुम्हार समुदाय के लोग अपने पुस्तैनी पेशे को छोड़कर दूसरे प्रदेशों में पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं.

सारण से ईटीवी भारत के संवाददाता की रिपोर्ट

महंगाई की मार झेल रहे कुम्हार
मिट्टी से दुर्गा की प्रतिमा बना रहे कारीगर विकास का कहना है कि अपनी पढ़ाई को बाधित करते मूर्ति बनाने में पिता जी की मदद कर रहे हैं. दुर्गा पूजा को लेकर जुलाई से ही मूर्ति बनाने के काम शुरू हो गया है. इनका कहना है कि अब पहले की तरह मूर्तियों की बिक्री नहीं होती. महंगाई का असर साफ तौर पर देखा जा रहा है.

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मूर्ति को अंतिम रूप देने में जुटे मूर्तिकार

पेशे में नहीं हो रहा मुनाफा
वहीं मूर्ति बना रहे धनंजय का कहना है कि चार पीढ़ियों से हम मूर्ति बनाने का काम कर रहे हैं. जुलाई महीने से लेकर अक्टूबर तक मां दुर्गा की प्रतिमा बनाते हैं. अक्टूबर से नवंबर तक लक्ष्मी जी की प्रतिमा और नवंबर से फरवरी तक सरस्वती मां की प्रतिमा बनाने का काम करते हैं. बाकी के दिनों में दीपावली व छठ पूजा के लिए बर्तन बनाये जाते हैं. लेकिन पहले की अपेक्षा अब उतनी बचत नहीं हो पाती है.

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मां दुर्गा की बनाई जा रही प्रतिमा

कम बिकती हैं मूर्तियां
मूर्तिकारों का कहना है कि कर्ज लेकर मूर्ति का निर्माण करते हैं. ऊपर से चंदा इकठ्ठा कर मूर्ति खरीदने वालों की मार अलग से झेलनी पड़ती हैं. महंगाई के इस दौर में कोई भी अधिक चंदा नहीं देता है. नतीजा, लोग मूर्ति कम दामों में खरीदते हैं. ऐसे में मुनाफा कुछ नहीं होता. वहीं, जब बनाई गई मूर्तियां नहीं बिकती हैं तो पूंजी डूबने तक कि नौबत आ जाती है.

saran
मां दुर्गा की प्रतिमा

सरकार की उदासीनता
सरकार के उदासीन रवैये के कारण अपनी पुस्तैनी पेशे को छोड़ना कुम्हारों के लिये मजबूरी बन गया है. धीरे-धीरे इनके सामने भूखमरी की नौबत आने लगी है. यदि सराकर ये घोषणा कर दे कि मिट्टी से बने कुल्हड़ को स्टेशन और बस स्टैंड पर चाय पीने के प्रयोग में लाया जाए, तो ये कुम्हारों के लिए वरदान साबित हो सकता हैं.

Intro:डे प्लान वाली ख़बर हैं
SLUG:-POTTERS ARE FACING THE BRUNT OF GOVERNMENT APATHY
ETV BHARAT NEWS DESK
F.M:-DHARMENDRA KUMAR RASTOGI/ SARAN/BIHAR

Anchor:-सरकारी उदासीनता के कारण कुम्हार जाति के लोग अभी भी अपने अपने आपको उपेक्षित महसूस कर रहे हैं जिसे भगवान विश्वकर्मा को सृष्टि के सृजनहार कहा जाता हैं लेकिन कुम्हारों के पारंपरिक पेशा मिट्टी से बर्तन बनाने की रचनात्मक कला को सम्मान देने के लिए उन्हे कुम्हार कहा गया हैं जिस प्रकार ब्रह्मा जी नश्‍वर सृष्टि की रचना करते है उसी प्रकार से कुम्‍भार भी मिट्टी के कणों से तरह-तरह के आकर्षक मूर्तियां, खिलौने व बर्तनों का सृजन करता है जबकि सरकार द्वारा इनके पारंपरिक पेशे को अभी तक उद्योग का दर्जा नही दिया गया है जिस कारण कुम्हार समुदाय के लोग अपने पुस्तैनी पेशे को छोड़ कर दूसरे प्रदेशों में पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं.


हाजीपुर से गाजीपुर को जोड़ने वाली राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 19 के किनारे कई पीढ़ियों से लगभग एक दर्जन से ज्यादे कुम्हार समुदाय का परिवार मिट्टी से विभिन्न देवी-देवताओं की प्रतिमा बनाकर अपना व अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं जबकि शेष बचें दिनों में मिट्टी के बर्तन बनाकर अपना जीविकोपार्जन चलाते हैं. छपरा शहर से पश्चिमी छोड़ पर सड़क किनारे श्याम चौक से लेकर ब्रह्मपुर तक दर्जनों ऐसे परिवार हैं जो अपने पुराने पुश्तैनी कार्यो को वखूबी निर्वहन करते आ रहे हैं लेकिन अब लागत के हिसाब से मुनाफ़े नही होते है जिस कारण दूसरे प्रदेशों में रोजी रोजगार की तलाश में पलायन करने को मजबूर हो रहे है.


Body:मिट्टी से दुर्गा की प्रतिमा बना रहे कारीगर विकास का कहना है कि अपनी पढ़ाई को बाधित करते हुए पिता जी का साथ देते हैं क्योंकि पापी पेट का सवाल हैं वही धनंजय का कहना है कि चार पीढ़ियों से हमलोगे मिट्टी से मूर्ति बनाने का कार्य होते आ रहा है और पीढ़ियों से चले आ रहे कार्यों में पिता, माता, भाई व बहन के साथ सहयोग करते हैं क्योंकि जुलाई से अक्टूबर तक दुर्गा जी की प्रतिमा, अक्टूबर से नवंबर तक लक्ष्मी जी की प्रतिमा और नवंबर से फरवरी तक सरस्वती माँ की प्रतिमा बनाने का काम करते हैं. शेष बचें दिनों में दीपावली व छठ पूजा के लिए बर्तन बनाये जाते हैं.

Conclusion:धनंजय ने ईटीवी भारत के साथ खास बातचीत के दौरान बताया कि पहले की अपेक्षा अब उतना बचत नही हो पाता हैं जितना पहले होता था अब तो महंगाई की मार झेलनी पड़ रही हैं ऊपर से चंदा इकठ्ठा कर मूर्ति खरीदने वालों की मार अलग से झेलनी पड़ती हैं. कर्ज लेकर मूर्ति का निर्माण किया जाता हैं वहीं मुनाफ़े की बात किया जाए तो मामूली सी बचत होती हैं लेकिन वही जब बनाई गई मूर्तियां नही बिकती हैं तो पूंजी डूबने तक कि नौ6आ जाती हैं जो हमलोगों के लिए काफ़ी मायने रखती हैं.

सरकार के उदासीनता रवैया अपनाने के कारण पुराने कार्यो को धीरे धीरे छोड़ना मजबरी होने लगा है क्योंकि लागत के हिसाब से उतना नही मिल पाता है जिस कारण परिवार का भरण पोषण करने में ही जिंदगी बर्बाद हो जाती है. रोजी तो हमलोगे कर लेते हैं लेकिन सरकार अब रोजगार देने का काम करती हैं तभी हमलोग इस कार्य को कर सकते है अन्यथा नही. सरकार द्वारा घोषणा की जाती हैं कि मिट्टी से बने कुल्हड़ को स्टेशनों व बस स्टैंड में चाय पीने के प्रयोग में लाया जाये तो कुछ हद तक कुम्हारों के लिए वरदान साबित हो सकता हैं.

Byte:-वॉक थ्रू
विकास कुमार व धनंजय कुमार के साथ धर्मेन्द्र कुमार रस्तोगी
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