छपरा: भोजपुरी के शेक्सपियर माने जाने वाले भिखारी ठाकुर (Shakespeare Bhikhari Thakur Of Bhojpuri) का आज पुण्यतिथि है. लेकिन इस अवसर पर जिला प्रशासन द्वारा कोई ऐसा कार्यक्रम नहीं किया गया जिससे लगे कि आज उनकी पुण्यतिथि है. सारण जिला प्रशासन द्वारा आज उनके पुण्यतिथि पर पूरी तरह से उपेक्षा की गई और जिला प्रशासन का कोई भी अधिकारी उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण करने नहीं पहुंचा. इसको लेकर स्थानीय लोगों में काफी आक्रोश है. वहीं उनके पैतृक आवास कुतुबपुर भी सरकारी उपेक्षा दिखाई दिया. भिखारी ठाकुर के पुण्यतिथि पर उनके गांव में भी कोई जिला प्रशासन का अधिकारी नहीं पहुंचा था. जिससे परिवार जन काफी दुखी हैं.
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भिखारी ठाकुर की पुण्यतिथि : गौरतलब है कि 10 जुलाई 1971 को भोजपुरी के शेक्सपियर ने अपनी अंतिम सांसे ली थी और उसके बाद से यह भोजपुरी का शेक्सपियर गुमनामी के अंधेरे में अपना वजूद खोता जा रहा है. लेकिन कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं और प्रबुद्ध नागरिकों ने जब भिखारी ठाकुर को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए प्रयास शुरू किया. तब जाकर राज्य सरकार और जिला प्रशासन ने भी भिखारी ठाकुर के उपलब्धियों और उनके संग्रह को लिपिबद्ध करना शुरू किया और उनके नाटकों का जगह-जगह प्रदर्शन शुरू हुआ. उसके बाद गुमनामी के अंधेरे में खोए इस भोजपुरी के शेक्सपियर का राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पटल पर एक बार पुनः उदय हुआ.
अपनी ही मिट्टी में भिखारी ठाकुर को भुला दिया गया : वहीं पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव (Former Chief Minister Lalu Prasad Yadav) ने भिखारी ठाकुर की प्रतिमा छपरा प्रवेश स्थल पर लगवाई और इस जगह का नाम भिखारी ठाकुर चौक रखा गया. उसके बाद से धरती से जुड़े हुए इस कलाकार की जन्म दिवस और पुण्यतिथि मनाई जाने लगी. हालांकि उनके पैतृक आवास पर भी इनकी आदम कद प्रतिमा लगाई गई है और हर वर्ष वहां पर भी जन्मदिन पर कार्यक्रम का आयोजन होता है पर पुण्यतिथि पर वहां भी कोई भी सरकारी आयोजन नहीं होता है.
कौन थे भिखारी ठाकुर? : भिखारी ठाकुर बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. एक ही साथ वे कवि, गीतकार, नाटककार, नाट्य निर्देशक, लोक संगीतकार और अभिनेता भी थे. भिखारी ठाकुर की मातृभाषा भोजपुरी थी. उन्होंने भोजपुरी को ही अपने काव्य और नाटक में प्रयोग किया. भिखारी ठाकुर एक नाई परिवार से संबंध रखते थे. उनके पिता का नाम दल सिंगार ठाकुर और माता का नाम शिवकली देवी था. कुछ समय पश्चात वे अपने जीविकोपार्जन के लिए खड़गपुर चले गए थे. जहां उन्होंने काफी पैसा कमाया. लेकिन वे अपने काम से संतुष्ट नहीं होते थे. जिसके बाद वे जगन्नाथपुरी चले गए थे.
भिखारी ठाकुर को भोजपुरी का शेक्सपियर कहा जाता था : जगन्नाथपुरी से लौटने के बाद भिखारी ठाकुर अपने ही गांव में एक नृत्य मंडली बनाए. जिसके बाद वे उसी रामलीला में खेलने लगें. नत्य मंडली में खेलने के साथ-साथ उन्होंने पुस्तक लिखना भी प्रारंभ कर दिया. पुस्तक की भाषा सरल होने से लोग अधिक से अधिक पढ़ना शुरू कर दिए थे. भिखारी ठाकुर के माध्यम से लिखी गई किताबें वाराणसी, हावड़ा और छपरा से प्रकाशित हुई थी. वहीं 10 जुलाई सन 1971 में उनका निधन हो गया.
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