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वित्तरहित शिक्षकों ने सांसद और विधान पार्षद का किया घेराव, आर्थिक संकट से कराया अवगत - विधायक डॉ. सीएन गुप्ता

वेतनमान की मांग को लेकर सैकड़ों शिक्षकों ने सांसद, विधान पार्षद और विधायक का घेराव किया. शिक्षकों ने कहा कि सरकार की यह नीति सबका साथ और सबका विकास से बिल्कुल विपरीत है.

शिक्षकों ने किया हंगामा
शिक्षकों ने किया हंगामा
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Published : Jun 13, 2020, 1:14 PM IST

सारण: जिले में कई सालों से वेतन से वंचित सैकड़ों शिक्षकों ने शुक्रवार को सांसद, विधान पार्षद और विधायक को उनके आवास पर घेर लिया. वेतन का अभाव और समय से अनुदान नहीं मिलने से आर्थिक संकट झेल रहे शिक्षकों ने अपनी दुर्दशा से अवगत कराते हुए वेतनमान की मांग की.

शिक्षकों का दल सोशल डिस्टेंसिंग का ख्याल रखते हुए सबसे पहले महाराजगंज के बीजेपी सांसद जनार्दन सिंह सिग्रीवाल को उनके आवास पर दो घंटे तक घेरे रखा. जिसके बाद शिक्षकों का दल विधान पार्षद डॉ. बीरेंद्र नारायण यादव को घेरा. इसके बाद विधायक डॉ. सीएन गुप्ता के आवास पर पहुंच अनुदान नहीं वेतनमान फोरम के निर्धारित अभियान घेरा डालो के तहत घेराव किया.

saran
वेतनमान की मांग

सालों से वेतनमान की आस में हैं शिक्षक
कार्यक्रम का नेतृत्व अनुदान नहीं वेतनमान फोरम के सारण जिला संयोजक डॉ. प्रो. रंजय कुमार की ओर से किया गया. घेराव कर रहे कर्मियों ने सांसद और विधायक को बिहार प्रदेश वित्तरहित शिक्षा नीति और परीक्षाफल आधारित अनुदान नीति से प्रभावित कर्मियों की स्थिति से अवगत कराया. उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार और सीएम की भेदभावपूर्ण नीति के कारण तीन से चार प्रतिशत विद्यार्थियों को पढ़ाने वाले मदरसा और अल्पसंख्यक विद्यालय के शिक्षकों को वेतन सहित सभी सुविधाएं दी जा रही है. जबकि साठ प्रतिशत विद्यार्थियों को पढ़ाने वाले और बिहार के उच्च शिक्षा में सर्वाधिक योगदान देने वाले वित्तरहित्त शिक्षाकर्मियों को अब तक हाशिये पर रखा गया है.

saran
सांसद का घेराव

शिक्षकों ने कहा कि सरकार की यह नीति सबका साथ और सबका विकास से बिल्कुल विपरीत है. शिक्षकों ने अपने सवाल सांसद के सामने रखते हुए पूछा कि क्या वेतन पाने के लिए बिहार के शिक्षकों को अल्पसंख्यक होना जरूरी है. यदि नहीं तो बिहार की शिक्षा व्यवस्था में शिक्षकों को धर्म और संप्रदाय के आधार पर बांटना कहां तक उचित है.

बीजेपी के प्रति नाराजगी
फोरम के प्रांतीय संयोजक प्रो. रौशन कुमार ने कहा कि नीतीश सरकार ने कोरोना संक्रमण के दौर में भी अल्पसंख्यक विद्यालय और मदरसा के शिक्षकों के वेतन के लिए 88 करोड़ रुपये जारी कर दिया. वहीं, वित्तरहितों के अनुदान का निर्गत पैसा कर्मी को नहीं दिया गया और राशि दोबारा वित्तीय तकनीक में उलझकर रह गई. बिहार सरकार के इस नीति से 715 हाई स्कूल, 507 इंटरमीडिएट कॉलज एवं 225 डिग्री कॉलेज के शिक्षकों में व्यापक पैमाने पर सरकार और खासकर बीजेपी के प्रति नाराजगी है.

इनकी रही मौजूदगी
बता दें कि बीते 3 महीने से जारी लॉकडाउन और सात सालों से अनुदान की बाट देख रहे वित्तरहित कर्मी रोज दवा, इलाज और आर्थिक तंगी के कारण मौत के शिकार हो रहे हैं. तीन महीने के अंदर 23 वित्तरहित कर्मी उचित इलाज के अभाव में काल के गाल में समा गए हैं. मौके पर प्रांतीय अभियान संचालक प्रो. संजय कुमार, रंजीत कुमार सिंह, प्रमंडलीय संयोजक प्रो. ब्रजेश कुमार, केंद्रीय कार्यकारिणी के सदस्य प्रो. प्रेमशंकर, जिला उपसंयोजक प्रो.अरविंद गिरी, जिला प्रेस प्रवक्ता प्रो. उपेंद्र कुमार सिन्हा मौजूद रहे.

सारण: जिले में कई सालों से वेतन से वंचित सैकड़ों शिक्षकों ने शुक्रवार को सांसद, विधान पार्षद और विधायक को उनके आवास पर घेर लिया. वेतन का अभाव और समय से अनुदान नहीं मिलने से आर्थिक संकट झेल रहे शिक्षकों ने अपनी दुर्दशा से अवगत कराते हुए वेतनमान की मांग की.

शिक्षकों का दल सोशल डिस्टेंसिंग का ख्याल रखते हुए सबसे पहले महाराजगंज के बीजेपी सांसद जनार्दन सिंह सिग्रीवाल को उनके आवास पर दो घंटे तक घेरे रखा. जिसके बाद शिक्षकों का दल विधान पार्षद डॉ. बीरेंद्र नारायण यादव को घेरा. इसके बाद विधायक डॉ. सीएन गुप्ता के आवास पर पहुंच अनुदान नहीं वेतनमान फोरम के निर्धारित अभियान घेरा डालो के तहत घेराव किया.

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वेतनमान की मांग

सालों से वेतनमान की आस में हैं शिक्षक
कार्यक्रम का नेतृत्व अनुदान नहीं वेतनमान फोरम के सारण जिला संयोजक डॉ. प्रो. रंजय कुमार की ओर से किया गया. घेराव कर रहे कर्मियों ने सांसद और विधायक को बिहार प्रदेश वित्तरहित शिक्षा नीति और परीक्षाफल आधारित अनुदान नीति से प्रभावित कर्मियों की स्थिति से अवगत कराया. उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार और सीएम की भेदभावपूर्ण नीति के कारण तीन से चार प्रतिशत विद्यार्थियों को पढ़ाने वाले मदरसा और अल्पसंख्यक विद्यालय के शिक्षकों को वेतन सहित सभी सुविधाएं दी जा रही है. जबकि साठ प्रतिशत विद्यार्थियों को पढ़ाने वाले और बिहार के उच्च शिक्षा में सर्वाधिक योगदान देने वाले वित्तरहित्त शिक्षाकर्मियों को अब तक हाशिये पर रखा गया है.

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सांसद का घेराव

शिक्षकों ने कहा कि सरकार की यह नीति सबका साथ और सबका विकास से बिल्कुल विपरीत है. शिक्षकों ने अपने सवाल सांसद के सामने रखते हुए पूछा कि क्या वेतन पाने के लिए बिहार के शिक्षकों को अल्पसंख्यक होना जरूरी है. यदि नहीं तो बिहार की शिक्षा व्यवस्था में शिक्षकों को धर्म और संप्रदाय के आधार पर बांटना कहां तक उचित है.

बीजेपी के प्रति नाराजगी
फोरम के प्रांतीय संयोजक प्रो. रौशन कुमार ने कहा कि नीतीश सरकार ने कोरोना संक्रमण के दौर में भी अल्पसंख्यक विद्यालय और मदरसा के शिक्षकों के वेतन के लिए 88 करोड़ रुपये जारी कर दिया. वहीं, वित्तरहितों के अनुदान का निर्गत पैसा कर्मी को नहीं दिया गया और राशि दोबारा वित्तीय तकनीक में उलझकर रह गई. बिहार सरकार के इस नीति से 715 हाई स्कूल, 507 इंटरमीडिएट कॉलज एवं 225 डिग्री कॉलेज के शिक्षकों में व्यापक पैमाने पर सरकार और खासकर बीजेपी के प्रति नाराजगी है.

इनकी रही मौजूदगी
बता दें कि बीते 3 महीने से जारी लॉकडाउन और सात सालों से अनुदान की बाट देख रहे वित्तरहित कर्मी रोज दवा, इलाज और आर्थिक तंगी के कारण मौत के शिकार हो रहे हैं. तीन महीने के अंदर 23 वित्तरहित कर्मी उचित इलाज के अभाव में काल के गाल में समा गए हैं. मौके पर प्रांतीय अभियान संचालक प्रो. संजय कुमार, रंजीत कुमार सिंह, प्रमंडलीय संयोजक प्रो. ब्रजेश कुमार, केंद्रीय कार्यकारिणी के सदस्य प्रो. प्रेमशंकर, जिला उपसंयोजक प्रो.अरविंद गिरी, जिला प्रेस प्रवक्ता प्रो. उपेंद्र कुमार सिन्हा मौजूद रहे.

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