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सारण: अक्षय नवमी के अवसर पर आंवला वृक्ष के नीचे की गई पूजा अर्चना - का​र्तिक महीने

आचार्य हरेराम शास्त्री ने बताया कि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अक्षय नवमी के नाम से जाना जाता है. जिसे आंवला नवमी भी कहते हैं. साथ ही बताया कि भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना अक्षय नवमी के दिन करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है.

पूजा अर्चना
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Published : Nov 5, 2019, 6:57 PM IST

सारण: जिले में अक्षय नवमी के अवसर पर युवा ब्राह्मण चेतना मंच की तरफ से भारतेश्वरी मारवाड़ी संस्कृत महाविद्यालय परिसर में पूजा अर्चना की गई. जिसके बाद महिलाओं ने आंवला के पेड़ के नीचे बैठकर खाना बनाया. ऐसी मान्यता है कि अक्षय नवमी के दिन आंवला वृक्ष के नीचे खाना बनाने से संतान की प्राप्ति होती है. वहीं, इस पर्व को जिले में पूरे हर्षोल्लास के साथ मानाया गया.

दीपावली के 8 दिन बाद मनाते हैं पर्व
बता दें कि का​र्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अक्षय नवमी मनाई जाती है. जिसे आंवला नवमी भी कहा जाता है. यह पर्व दीपावली के 8 दिन बाद मनाया जाता है. अक्षय नवमी के दिन व्रती महिलाएं आंवले के पेड़ के नीचे ओम धात्र्यै नमो मंत्र का जाप करती हैं. इसके साथ ही कुष्मांड फल के अंदर रूपये या सोना-चांदी रखकर ब्राह्मणों को दान करती हैं, ताकि इसका फल पितरों को मिल सके.

saran
महिलाओं ने आंवला के पेड़ के नीचे बनाया खाना

'सदियों से चली आ रही परंपरा'
आचार्य हरेराम शास्त्री ने बताया कि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अक्षय नवमी के नाम से जाना जाता है. साथ ही उन्होंने बताया कि भगवान विष्णु की पूजा अर्चना अक्षय नवमी के दिन करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है.

अक्षय नवमी के अवसर पर की गई पूजा अर्चना

संतान प्राप्ति के लिए की जाती है पूजा
अक्षय नवमी के दिन महिलाएं आंवला के पेड़ के नीचे बैठकर संतान की प्राप्ति और उसकी रक्षा के लिए पूजा-अर्चना करती हैं. कई जगह इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करने की भी प्रथा है. ऐसा कहा जाता है कि अक्षय नवमी के दिन मां लक्ष्मी ने पृथ्वी लोक में भगवान विष्णु और शिव की पूजा आंवले के रूप में की थी.

सारण: जिले में अक्षय नवमी के अवसर पर युवा ब्राह्मण चेतना मंच की तरफ से भारतेश्वरी मारवाड़ी संस्कृत महाविद्यालय परिसर में पूजा अर्चना की गई. जिसके बाद महिलाओं ने आंवला के पेड़ के नीचे बैठकर खाना बनाया. ऐसी मान्यता है कि अक्षय नवमी के दिन आंवला वृक्ष के नीचे खाना बनाने से संतान की प्राप्ति होती है. वहीं, इस पर्व को जिले में पूरे हर्षोल्लास के साथ मानाया गया.

दीपावली के 8 दिन बाद मनाते हैं पर्व
बता दें कि का​र्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अक्षय नवमी मनाई जाती है. जिसे आंवला नवमी भी कहा जाता है. यह पर्व दीपावली के 8 दिन बाद मनाया जाता है. अक्षय नवमी के दिन व्रती महिलाएं आंवले के पेड़ के नीचे ओम धात्र्यै नमो मंत्र का जाप करती हैं. इसके साथ ही कुष्मांड फल के अंदर रूपये या सोना-चांदी रखकर ब्राह्मणों को दान करती हैं, ताकि इसका फल पितरों को मिल सके.

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महिलाओं ने आंवला के पेड़ के नीचे बनाया खाना

'सदियों से चली आ रही परंपरा'
आचार्य हरेराम शास्त्री ने बताया कि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अक्षय नवमी के नाम से जाना जाता है. साथ ही उन्होंने बताया कि भगवान विष्णु की पूजा अर्चना अक्षय नवमी के दिन करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है.

अक्षय नवमी के अवसर पर की गई पूजा अर्चना

संतान प्राप्ति के लिए की जाती है पूजा
अक्षय नवमी के दिन महिलाएं आंवला के पेड़ के नीचे बैठकर संतान की प्राप्ति और उसकी रक्षा के लिए पूजा-अर्चना करती हैं. कई जगह इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करने की भी प्रथा है. ऐसा कहा जाता है कि अक्षय नवमी के दिन मां लक्ष्मी ने पृथ्वी लोक में भगवान विष्णु और शिव की पूजा आंवले के रूप में की थी.

Intro:SLUG:-AKAHYANAVAMI
ETV BHARAT NEWS DESK
F.M:-DHARMENDRA KUMAR RASTOGI/ SARAN/BIHAR

Anchor:- का​र्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अक्षय नवमी मनाई जाती है और अक्षय नवमी को ही आंवला नवमी भी कहा जाता है. जबकि यह पर्व दिवाली से आठ दिन व छठ पूजा के तीसरे दिन धूमधाम से मनाने वाला यह पर्व सारण जिले में हर्सोल्लास के साथ शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में मनाई गई हैं.अक्षय नवमी के दिन आंवला वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर खाने का विशेष महत्व है, यदि आंवला वृक्ष के नीचे भोजन बनाने में असुविधा हो तो घर में भोजन बनाकर आंवला के वृक्ष के नीचे जाकर पूजन करने के पश्चात् भोजन करना चाहिए. अक्षय नवमी के पावन अवसर पर युवा ब्राह्मण चेतना मंच छपरा के द्वारा शहर के रतनपुरा मुहल्ला स्थित भारतेश्वरी मारवाड़ी संस्कृत महाविद्यालय के परिसर में ऑवला वृक्ष पूजन सह भोज कार्यक्रम का आयोजन किया गया.


Body:अक्षयनवमी के दिन शहर के भारतेश्वरी मारवाड़ी संस्कृत महाविद्यालय परिसर में आयोजित आंवला के फलदार पेड़ के नीचे हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार पूजा अर्चना की गई वही आचार्य हरेराम शास्त्री ने अक्षय नवमी व्रत के महत्व के बारे में बताते हुए कहा कि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अक्षय नवमी के नाम से जानते हैं जिसे हमलोग आंवला नवमी के नाम से जानते है, सबसे बड़ी बात यह हैं कि दीपोत्सव के नौवें दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना अक्षय नवमी के दिन करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. किदवंती के अनुसार अक्षयनवमी के दिन भगवान विष्णु द्वापर युग के आरंभ में कुष्मांडक नामक दैत्य का वध किया था.

आंवले के वृक्ष में लाल रंग से रंगे कच्चे धागे को 101 बार आवंले के पेड़ में लपेटते हुए दाहिने हाथ में जल अक्षत पुष्पादि को लेकर व्रत को मनाते हैं व्रती महिलाएं आंवले के पेड़ के नीचे पूरब दिशा में मुंह कर ओम धात्रयै नमः मंत्र को जाप करती हैं. ऐसा भी कहा जाता हैं कि पितरों के नाम से आंवले के पेड़ के जड़ में दूध की धारा व कपूर या गाय के घी का दीप जलाते हुए आंबले के पेड़ की आरती करते हैं इसके साथ ही भुआ यानी कुष्मांड फल के अंदर यथासंभव रूपए पैसे या सोने चांदी रख कर ब्राह्मणों को दान करने की प्रथा है ताकि इसका फल पितरों को मिल सके.

Byte:-आचार्य हरेराम शास्त्री,
आचार्य शुभाष पाण्डेय, संयोजक, युवा ब्राह्मण चेतना
मंच, सारण


Conclusion:वही एक अन्य कथानुसार इस दिन महिलाएं आंवला के पेड़ के नीचे बैठकर संतान की प्राप्ति व उसकी रक्षा के लिए पूजा अर्चना करती हैं, कई जगह इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करने की भी प्रथा है ऐसा कहा जाता है कि अक्षय नवमी के दिन ही मां लक्ष्मी ने पृथ्वी लोक में भगवान विष्णु एवं शिव जी की पूजा आंवले के रूप में की थी.


अक्षयनवमी का महत्व....

# अक्षय नवमी का पर्व आंवले से सम्बन्ध रखता है.
# इसी दिन कृष्ण ने कंस का वध भी किया था और धर्म की स्थापना की थी.
# आंवले को अमरता का फल भी कहा जाता है.
# इस दिन आंवले का सेवन करने से और आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन करने से उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है.
# इस दिन आंवले के वृक्ष के पास विशेष तरह की पूजा उपासना भी की जाती है. 


ऑवला वृक्ष का पूजन वैदिक मन्त्रों के सस्वर पाठ धर्मनाथ धनी मन्दिर के महन्थ श्री विन्देश्वरी पर्वत, महाविद्यालय के प्राचार्य डाॅ गजानन पाण्डेय, युवा ब्राह्मण चेतना मंच के संयोजक डाॅ सुभाष पाण्डेय,
आचार्य विनय कुमार मिश्र, आचार्य श्री नारायण शुक्ला, आचार्य वीरेंद्र नाथ पाण्डेय, आचार्य हरेराम शास्त्री, आचार्य कमलेश मिश्रा, आचार्य ध्रुव कुमार मिश्र सहित दर्जनों आचार्य व मंच के सदस्य मौजूद थे.

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