छपरा: 22 दिसंबर को मौलाना मजहरुल हक की जयंती मनाई जाती है. मजहरुल हक ने स्वतंत्रता संग्राम में कौमी एकता को संगठित कर आंदोलन की नई रूपरेखा तैयार करने में सक्रिय भूमिका निभाई थी. आज मौलाना साहब की 154 जयंती है. इस साल पहले की तरह राजकीय समारोह नहीं होगा. छपरा शहर स्थित मजहरुल हक चौक के समीप निर्मित प्रतिमा पर माल्यार्पण कर सिर्फ कोरम पूरा किया जाएगा.
गौरतलब है कि मजहरुल हक की जयंती राजकीय समारोह के रूप में मनाए जाने की परंपरा रही है. इस मौके पर लगभग 50 साल से ऑल इंडिया मुशायरा का आयोजन किया जा रहा था. इस साल मुशायरा के कार्यक्रम को स्थगित कर दिया गया है.
छपरा थी मौलाना साहब की कर्मभूमि
22 दिसंबर 1866 को पटना के ब्रह्मपुर में जन्मे मौलाना साहब की कर्मभूमि छपरा थी. 1898 में पश्चिम बंगाल से नौकरी छोड़कर उन्होंने छपरा व्यवहार न्यायालय में वकालत शुरू की थी. उन्होंने वकालत करते हुए नगर पालिका के उपाध्यक्ष और सारण जिला परिषद के अध्यक्ष पद को सुशोभित किया था.
हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए किया था काम
बिहार विधान सभा के पूर्व उपसभापति सलीम परवेज ने कहा "मजहरुल साहब ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेकर हिंदू- मुस्लिम एकता को बरकरार रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. पटना के सदाकत आश्रम (कांग्रेस का प्रदेश मुख्यालय) की स्थापना हक साहब ने ही की थी. उन्होंने अखंड भारत की कल्पना की थी. इसके लिए उन्होंने बलिदान दिया था. हालांकि भारत अखंडित नहीं रह सका और देश के दो टुकड़े हो गए."
![Salim parwez](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/bh-sar-mjrulhkjynti-eid-bh-10022_20122020224527_2012f_02629_931.jpg)
सलीम परवेज ने कहा "बिहार में शिक्षा की सुविधाओं को बढ़ाने और अनिवार्य शिक्षा लागू करने के लिए मजहरुल हक ने संघर्ष किया था. उन्होंने उस घर को मिडिल स्कूल की स्थापना के लिए दान दे दिया था, जिस घर में पैदा हुए थे ताकि एक ही स्कूल में हिंदू और मुस्लिम बच्चों को शिक्षा मिल सके."
पूर्व उपसभापति ने कहा "देश की स्वाधीनता और सामाजिक कार्य में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए मौलाना साहेब ने काफी प्रयास किया था. वह कहते थे कि हम हिंदू हो या मुसलमान, हम सब एक ही नाव पर सवार हैं. उबरेंगे तो साथ-साथ, डूबेंगे तो साथ-साथ."
हिंदू-मुस्लिम एकता के हिमायती थे मजहरुल साहब
सलीम परवेज ने कहा "मौलाना साहब देश की गंगा-जमुनी संस्कृति और हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रबल हिमायती के रूप में विख्यात थे. छपरा शहर के रामराज मोड़ महमूद चौक स्थित हक मंजिल मौलाना साहब का आशियाना था. वह जब भी छपरा आते इसी मकान में रहते थे. उसी मकान में मौलाना मजहरुल हक अरबी, फारसी और उर्दू विश्वविद्यालय का सेंटर है. देश के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद की पहल पर छपरा में हक साहब की याद में स्मारक का निर्माण कराया गया था. इसे एकता भवन के नाम से जाना जाता है. हक साहब की शहादत के बाद महात्मा गांधी ने कहा था कि ऐसे व्यक्ति की गैर मौजूदगी सदा अखड़ती रहेगी."- सलीम परवेज, पूर्व उपसभापति, बिहार विधानसभा
"हम जैसे सारण वासियों को गर्व होता है कि इस धरती को मौलाना साहब ने अपनी कर्मभूमि बनाकर पूरे देश को कौमी एकता का नारा दिया था. उन्होंने सारण के इसी व्यवहार न्यायालय में वकालत किया था. सारण जिला परिषद के प्रथम उपाध्यक्ष और छपरा नगर पालिका के प्रथम अध्यक्ष पद को भी सुशोभित किया था."- मधु रंजन सिन्हा, वरीय अधिवक्ता, व्यवहार न्यायालय छपरा