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सारणः भिखारी ठाकुर रंग महोत्सव में शामिल हुए लोक गायक, बिरहा गाकर लोगों का जीता दिल

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Published : Jan 29, 2020, 12:58 PM IST

लोक गायन शैली को जीवंत रखने वाले उत्तर प्रदेश के निवासी डॉ. मन्नू यादव पेशे से शिक्षक है. इन्हें संगीत नाटक अकादमी नई दिल्ली की ओर से उस्ताद बिस्मिल्लाह खान राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है.

सारण
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सारणः जिले में दो दिवसीय भिखारी ठाकुर रंग महोत्सव का आयोजन किया गया. इस मौके पर लोक गायन शैली को जागृत करने का प्रयास किया गया. इसमें लोक गायक डॉ. मन्नू यादव ने भी शिरकत किया. बता दें कि लोक गायन शैली बिरहा को भारतीय संस्कृति के विविध आयामों में विशिष्ट माना गया है. वर्तमान परिवेश में लोक गायक डॉ. मन्नू यादव अपने गीत से गंवई मिट्टी की खुशबू बिखेरने का काम कर रहे हैं.

भोजपुरी संगीत को जीवित रखने की कवायद

लोक गायक डॉ. मन्नू यादव ने बताया कि पूर्वांचल सहित भोजपुरी वाले क्षेत्रों में पारंपरिक बिरहा,लोरकी, चंदैनी, आल्हा, कजरी, चैता जैसी लोक कला सदियों से चली आ रही है. उन्होंने कहा कि आज के युग में इस तरह के गीत को कम लोग सुन रहे है. क्योंकि आजकल भोजपुरी गीत-संगीत सुनने लायक तैयार ही नहीं किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि कई कलाकार साथियों के साथ मिलकर भोजपुरी संगीत को जीवित रखने की कवायद की जा रही हैं.

देखें पूरी रिपोर्ट

विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके है मन्नू यादव

लोक गायन शैली को जीवंत रखने वाले उत्तर प्रदेश के निवासी डॉ. मन्नू यादव पेशे से शिक्षक है. इन्हें संगीत नाटक अकादमी नई दिल्ली की ओर से उस्ताद बिस्मिल्लाह खान राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है. इसके साथ ही छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से बिलासा कला सम्मान, मोरिशस के तकनीकी विश्वविद्यालय की ओर से लोक भूषण सम्मान से भी नवाजे जा चुके हैं.

सारणः जिले में दो दिवसीय भिखारी ठाकुर रंग महोत्सव का आयोजन किया गया. इस मौके पर लोक गायन शैली को जागृत करने का प्रयास किया गया. इसमें लोक गायक डॉ. मन्नू यादव ने भी शिरकत किया. बता दें कि लोक गायन शैली बिरहा को भारतीय संस्कृति के विविध आयामों में विशिष्ट माना गया है. वर्तमान परिवेश में लोक गायक डॉ. मन्नू यादव अपने गीत से गंवई मिट्टी की खुशबू बिखेरने का काम कर रहे हैं.

भोजपुरी संगीत को जीवित रखने की कवायद

लोक गायक डॉ. मन्नू यादव ने बताया कि पूर्वांचल सहित भोजपुरी वाले क्षेत्रों में पारंपरिक बिरहा,लोरकी, चंदैनी, आल्हा, कजरी, चैता जैसी लोक कला सदियों से चली आ रही है. उन्होंने कहा कि आज के युग में इस तरह के गीत को कम लोग सुन रहे है. क्योंकि आजकल भोजपुरी गीत-संगीत सुनने लायक तैयार ही नहीं किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि कई कलाकार साथियों के साथ मिलकर भोजपुरी संगीत को जीवित रखने की कवायद की जा रही हैं.

देखें पूरी रिपोर्ट

विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके है मन्नू यादव

लोक गायन शैली को जीवंत रखने वाले उत्तर प्रदेश के निवासी डॉ. मन्नू यादव पेशे से शिक्षक है. इन्हें संगीत नाटक अकादमी नई दिल्ली की ओर से उस्ताद बिस्मिल्लाह खान राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है. इसके साथ ही छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से बिलासा कला सम्मान, मोरिशस के तकनीकी विश्वविद्यालय की ओर से लोक भूषण सम्मान से भी नवाजे जा चुके हैं.

Intro:Anchor:- भारतीय संस्कृति के विविध आयामों में लोक गायन शैली बिरहा का विशिष्ट स्थान माना गया है चाहे वह 1857 की उग्र क्रांति हो या अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन का नारा या पंडित श्यामा प्रसाद मुखर्जी का एक निशान, विधान की जीवित परिकल्पना में देश के विभिन्न फलकों को छूने की ललक हो उसमें बिरहा के लेखकों व गायकों का अपना अलग पहचान रहा है.


Body:वर्तमान परिवेश में गंवई मिट्टी की खुशबू बिखेरने वाले लोक गायक डॉ मन्नू यादव ने ईटीवी भारत के साथ खास बातचीत के दौरान बताया की पूर्वांचल सहित भोजपुरी बोलने वाले क्षेत्रों में पारंपरिक बिरहा, लोरकी, चंदैनी, आल्हा, कजरी, चैता जैसे लोककला आज से नही बल्कि सदियों से चली आ रही हैं लेकिन अब यह सब विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गया हैं जबकि मेरे व अन्य कलाकार साथियों के द्वारा आज भी इसे जीवंत रखने की कवायद की जा रही हैं हालांकि अब धीरे-धीरे पुराने संगीत को सुनने ज जानने वालों की संख्या बढ़ती ही जा रही हैं क्योंकि आजकल भोजपुरी गीत संगीत सुनने लायक तैयार ही नही किया जा रहा है.

byte:-डॉ मन्नू यादव, बिरहा के प्रसिद्ध गायक


Conclusion:लोक गायन शैली को जीवंत रखने वाले व उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर चुनार के रहने वाले पेशे से शिक्षक डॉ मन्नू यादव को संगीत नाटक अकादमी नई दिल्ली की ओर उस्ताद बिस्मिल्लाह खान राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित भी हो चुके हैं साथ ही छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा बिलासा कला सम्मान, मोरिशस के तकनीकी विश्वविद्यालय द्वारा लोक भूषण सम्मान से भी नवाज़े जा चुके हैं.

मालूम हो कि भिखरी ठाकुर की जन्मभूमि छपरा में चौथा भिखारी ठाकुर रंग महोत्सव का दो दिवसीय आयोजन किया गया हैं जिसमें लोक गायन शैली को जागृत करने को लेकर इस तरह का आयोजन किया जाता है.
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