छपरा: भोजपुरी के शेक्सपियर (Shakespeare of Bhojpuri Bhikhari Thakur) कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर की 135वीं जयंती है. आज उनके जन्म दिवस के अवसर पर उनके गांव कुतुबपुर दियारा में कई कार्यक्रमों का आयोजन किया गया. इसके साथ ही छपरा शहर के मुख्य प्रवेश द्वार पर स्थित भिखारी ठाकुर चौक पर लगी उनकी प्रतिमा पर सारण के जिलाधिकारी राजेश मीणा(District Magistrate Rajesh Meena) श्रद्धा सुमन अर्पित किए. उनके साथ पुलिस अधीक्षक संतोष कुमार समेत शहर के गणमान्य लोगों ने भी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किया.
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यहां हुआ था भोजपुरी के शेक्सपियर का जन्म: भिखारी ठाकुर का जन्म सारण जिले के कुतुबपुर दियारा में हुआ था. हालांकि वे काफी कम पढ़े लिखे थे लेकिन उनकी शैली और बात करने का तरीका ठेठ गवई स्टाइल का था, जिससे उनकी बातें लोगों के काफी समझ में आती थी. ग्रामीण परिवेश से जुड़े होने के कारण वह लोगों में काफी लोकप्रिय थे. भिखारी ठाकुर ने जो उस समय समरस समाज की कल्पना की थी और समाज का स्वरूप कैसा होना चाहिए जिसको अपने नाटक और नौटंकी के माध्यम से चित्रित किया था, वह आज के वास्तविक जीवन में सफली भूत होता दिखाई दे रहा है.
आज भी नहीं बदली गांव की स्थिति: आज भी स्वर्गीय भिखारी ठाकुर के कुतुबपुर में बहुत कुछ नहीं बदला है और बिहार के आमगांव की तरह ही वहां की स्थिति है सारण जिले का यह गांव दियारा क्षेत्र में है. साल के 6 महीने से ज्यादा बाढ़ का पानी यहां पर रहता है और जिला प्रशासन के द्वारा प्रत्येक वर्ष भिखारी ठाकुर चौक पर उनकी प्रतिमा का माल्यार्पण होता है. उनके गांव में सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया जाता है. उनके घर को पूरी तरह से सजाया जाता है लेकिन आज भी भिखारी ठाकुर के परिजनों को इस बात का दर्द है कि सरकार उनके लिए कोई ठोस कार्य नहीं करती है और उनके गांव का विकास भी सही तरह से नहीं हुआ है. उनके परिजनों ने कई बार गांव के विकास के लिए बात की है.
यह है उनकी प्रमुख रचनाएं: जिला प्रशासन पुण्यतिथि और जन्मदिवस तो मनाता है लेकिन अन्य कार्यों के लिए जिला प्रशासन का कोई अधिकारी झांकने तक नहीं आता है. आज भिखारी ठाकुर की प्रासंगिकता और उनकी उपेक्षा से परिवार वाले काफी दुखी हैं. भिखारी ठाकुर की रचनाओं की स्त्री प्रधानता होती थी, उनके नाटक की सबसे खास बात यह होती थी कि उनकी रंग मंडली में कोई भी स्त्री पात्र नहीं होते थे, बल्कि स्त्रियों की भूमिका में पुरुष अपना प्रदर्शन करते थे. प्रमुख रचनाओं में देखा जाए तो विदेशिया, बेटी बेचवा, भाई विरोध, पिया निसैल, गेबर घिचोर और गंगा स्नान, विधवा विलाप, शंका समाधान, कलयुग प्रेम, नेटुआ नाच प्रमुख है.
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