समस्तीपुरः बिहार के सरकारी स्कूलों की हालत सरकार से छुपी नहीं है. फिर भी सरकार इन स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं को लेकर लापरवाह नजर आती है, या यूं कहें शिक्षा अधिकारियों की सुस्ती के कारण कई सरकारी विद्यालयों की हालत आज तक नहीं सुधरी, वहीं शिक्षा विभाग के अपर मख्य सचिव केके पाठक बच्चों के स्कूल नहीं आने पर नाम काट देने का फरमान जारी कर चुके हैं. ऐसे में ये बच्चे स्कूल तो आ जाएं लेकिन सुविधाओं के अभाव में वो पढ़ाई कैसे करें और स्कूल में मन कैसे लगाएं?
सरकारी विद्यालय में शौचालय नहींः दरअसल समस्तीपुर जिले के चीनी मिल कैंपस में बने सरकारी विद्यालय में शौचालय नहीं है, जिससे यहां पढ़ने वाले बच्चों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. बच्चों को बाथरूम जाने के लिए अपने घर जाना पड़ता है, लेकिन शिक्षा विभाग के द्वारा इस और कोई ध्यान नहीं है. हैरानी की बात तो ये है कि एक ही भवन में यहां दो-दो स्कूल अलग-अलग शिफ्ट में चल रहे हैं. कुछ क्लास के बच्चों को तो जमीन पर ही बैठकर पढ़ाई करना पड़ता है.
एक ही भवन में चलता है दो विद्यालयः एक भवन में दो विद्यालयों का संचालन तो होता है, लेकिन शिक्षा विभाग द्वारा यहां एक भी शौचालय नहीं दिया गया. बच्चों को जब बाथरूम जाना होता है, तो वो आस-पास कहीं चले जाते हैं या फिर अपने घर में जाते हैं. वहीं यहां की प्रिंसिपल अनिता कुमारी के द्वारा जानकारी दी गई कि सभी बच्चे लोकल हैं और लोकल रहने के कारण सभी बच्चे अपने घर में बने शौचालय में जाते हैं, लेकिन सरकारी विद्यालय परिसर में शौचालय नहीं बनाया गया है.
"सभी बच्चे स्थानीय हैं. अगल-बगल के हैं बाथरूम लगने पर वह अपने घर चले जाते हैं. स्कूल कैंपस में बाथरूम नहीं है. परेशानी तो होती है. बच्चों को अपने घर जाना पड़ता है. कैंपस के बाहर एक शौचालय है, वहां साफ-सफाई नहीं है. गंदा पड़ा हुआ है"- मंजूर आलम, शिक्षक
स्कूल में व्यवस्था नहीं तो कैसे पढ़ें बच्चे?: अब सवाल ये है कि सरकार द्वारा जब बच्चों के स्कूल आने पर जोर दिया जा रहा है, तो स्कूल में व्यवस्था भी बेहतर होनी चाहिए. ताकी बच्चों को पढ़ाई को दौरान कोई परेशानी ना हो और शिक्षक भी बेहतर ढंग से बच्चों को पढ़ा सकें. पठन-पाठन को लेकर सभी व्यवस्था स्कूल में दी जा रही है तो बच्चे बाथरूम जैसी जरूरी सुविधा से वंचित क्यों हैं. इसे लेकर प्रधानाध्यापक से जब सवाल किया गया तो वो अलग ही दलील देते हुए नजर आईं.
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