समस्तीपुर: ग्रामीण इलाकों के किसानों की परेशानी पेट्रोल-डीजल के दामों की तरह बढ़ती ही जा रही है. हम आपको टमाटर को लेकर परेशान किसानों का हाल बताने जा रहे हैं. क्या आप जानते हैं राजधानी पटना में जो टमाटर 40 रुपये किलो मिल रहा है, वही टमाटर ग्रामीण इलाकों में 5 रुपये किलो बिक रहा है. जाहिर है किसानों को गुस्सा आएगा. उनकी मेहनत का सही भाव ना मिलने से अब खेतों में ही टमाटर को या तो सड़ने के लिए छोड़ दिया जा रहा है या सड़कों पर फेंका (Farmers Thrown Tomato On The Road Of Samastipur) जा रहा है.
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सड़क किनारे टमाटर फेंक कर चले गए किसान : बिहार के समस्तीपुर के ताजपुर के (Farmers of Samastipur) किसानों का कहना है कि यहां ना तो उचित बाजार है, ना ही कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्था. टमाटर के भाव 5 रुपए किलो तक लगाए गए, ऐसे में भला कैसे मुनाफा हो सकता है? इसलिए टमाटरों को सड़क किनारे फेंकने का फैसला किया है. हालांकि, खुदरा बाजार में टमाटर 20 से 25 किलो के हिसाब से बिक रहे है.
सिर्फ 4 से 5 रुपये प्रति किलो भाव मिल : किसानों ने बताया उत्पादन से लेकर लागत मूल्य तक ही नहीं मिल पा रहा है. जिसकी वजह से वह काफी परेशान हैं. केसीसी- महाजनी कर्ज लेकर टमाटर की खेती की गई थी. लेकिन वो भी काम नहीं आया. जब टमाटर तैयार हुआ तो मंडी से खरीददार गायब हैं. थोक विक्रेता टमाटर 100 रुपये प्रति कैरेट (25 किलो) पर ले रहे हैं. इसमें हमार बहुत बड़ा नुकसान है. अगर 300 प्रति कैरेट भी रेट मिलते हैं तो भी यह हमारे लिए न तो फायदा और न ही नुकसान का सौदा है. मजबूरी ऐसी कि 4 से 5 रूपये टमाटर किसान को बेचना पड़ रहा है.
नहीं निकल रहा लागत मूल्य: परेशान होकर कुछ किसानों ने या तो अपने खेत से टमाटर तोड़ना छोड़ दिया है या तोड़कर सड़क पर फेंक रहे हैं. समस्तीपुर जिले के ताजपुर प्रखंड के मोतीपुर वार्ड-10 में सड़क किनारे फेंके गए टमाटर को देखकर माले के स्थाई कमेटी सदस्य व किसान सुरेंद्र प्रसाद सिंह ने मामले की पड़ताल की. उन्होंने कई किसानों से बात की. उन्हीं में से एक किसान ब्रहमदेव प्रसाद सिंह ने बताया कि करीब 1 रूपये किलो टमाटर तोड़ाई मजदूरी, 1 रूपये मंडी पहुंचाने का भाड़ा और 1 रूपये गद्दी खर्च आता है.
कर्ज माफ करने की मांग: लेकिन, इतनी मेहनत के बाद भी टमाटर बिकने की कोई गारंटी नहीं है. कुल मिलाकर टमाटर उत्पादक किसान औंधे मुंह गिरे हैं. भाकपा माले के प्रखण्ड सचिव सुरेंद्र प्रसाद सिंह ने बताया कि किसानों ने केसीसी कर्ज- महाजनी कर्ज लेकर खेती की थी. लेकिन टमाटर नहीं बाजार में टमाटर का उचित मूल्य नहीं मिलने से अब वे परेशान हैं. किसानों की मांग है कि उनका कर्ज माफ किया जाए.
"अब एक ओर लोन चुकाने और दूसरी ओर अगली फसल लगाने की चिंता किसानों को सता रही है. हम कृषि अधिकारी से आग्रह करेंगे कि वे अच्छी कीमत में टमाटर बेचने या उपयुक्त स्टोर में रखने की व्यवस्था करें. साथ ही बर्बाद किसानों का केसीसी लोन माफ किया जाए. आगामी फसल के लिए फसल क्षति मुआवजा, नगद राशि समेत नि:शुल्क बिजली, पानी, खाद, बीज, कृषि यंत्र देने की मांग भी हम करते हैं." - सुरेंद्र प्रसाद सिंह, माले नेता व किसान
एक एकड़ का खर्च कितना? : दरअसल, एक एकड़ में टमाटर की फसल उगाने से लेकर उसे मंडी में बेचने तक कितना खर्चा आता है ये समझना होगा. समस्तीपुर जिले के ताजपुर प्रखंड के किसान रामजी महतो ने बताया कि कि एक एकड़ में टमाटर की फसल उगाने में एक से डेढ़ लाख खर्चा होता है. रामजी बताते है कि टमाटर को तोड़ने के लिए किसानों को एक मजदूर को कम-से-कम 400 रुपये का भुगतान करना पड़ता है और फिर उन्हें बाजार तक ले जाना पड़ता है, जिसका मतलब है कि उन्हें अपनी जेब से मोटी कीमत चुकानी पड़ रही है. अधिक नुकसान से बचने के लिए क्षेत्र के किसानों ने टमाटर को सड़क पर फेंकने का फैसला किया है. ऐसे में सवाल उठता है कि बिहार में टमाटर के भाव क्यों गिर रहे है? (why tomatoes rates crashed in Bihar ) आइये समझते है किसानों को एक एक एकड़ में कितना खर्च होता है?
- जमीन तैयार करने में कितना खर्च? : 15 हजार रुपये
- फसल बोने में कितना खर्च? : 10 हजार रुपये
- बोने की मजदूरी में कितना खर्च? : 10 हजार रुपये
- ड्रिप प्रक्रिया में कितना खर्च? : 15 हजार रुपये
- खाद-दवाई में कितना खर्चा? : 20 हजार रुपये
- उपज की मजदूरी में कितना खर्च? : 40 हजार रुपये
- ट्रांसपोर्ट में कितना खर्च? : 20 हजार रुपये
कोल्ड स्टोरेज की जरूरत: किसानों का कहना है कि कोल्ड स्टोरेज होने से परेशानी कम होती. टमाटर को वहां सुरक्षित किया जा सकता था. बता दें कि कोल्ड स्टोरेज सब्जियों और फलों की बर्बादी को कम करता है. यह किसानो को लाभकारी मूल्य प्रदान करने में मदद करता है. कोल्ड-स्टोरेज के भीतर निम्न तापमान और उच्च सापेक्ष आर्द्रता के कारण टमाटर जैसे उत्पादों को बीस दिन तक ताजा बनाए रखा जा सकता है. इसके अलावा अन्य सब्जियों और फलों, जैसे- पालक, शिमला मिर्च, ककड़ी, लौकी, तौरई और पपीते को भी बीस दिनों तक सुरक्षित रख सकते हैं.
क्या कहते हैं कृषि के जानकार? : ''मान लीजिए टमाटर बहुत सस्ता हो जाता है. 15-20 रुपए किलो. तो यही किसान डेढ़-दो रुपए में भी मंडी में माल छोड़ता है. यानी उसकी लागत भी नहीं निकल पाती. लेकिन जब टमाटर 100 रुपए, 150 रुपए में बिकता है, तो किसान का मुनाफा उस रेशियो में नहीं बढ़ता. उसको तब भी मुश्किल से 10 -12 रुपए मिल पाएगा. बाकी पैसा बीच में ही खप जाता है.''
कृषि के जानकार बताते है कि एक किलो टमाटर का उपत्पादन करने में करीब तीन रुपये की लागत आती है. लेकिन हमारी और आपकी थाली तक जो टमाटर पहुंचता है, उसकी लागत बढ़कर हो जाती है करीब 7 से 8 रुपए (जिसमें ट्रांसपोर्ट भी शामिल है). इसके बाद खुदरा दुकानदार से लेकर ठेले वाले तक का मार्जिन जुड़ता है. फिर भी टमाटर अगर आपको 10 से12 रुपए में भी मिल रहा है, तो मान लीजिए पूरी-पूरी लागत तो निकल ही रही है. लेकिन बीच में ट्रेडर्स लॉबी यानी बिचौलिए काफी सक्रिय रहते है. यही वजह है कि टमाटर में जरा भी सप्लाई कम हुई, तो दाम बहुत ज्यादा ऊपर-नीचे हो जाता हैं.
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