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ब्रज की तरह ही यहां भी खेली जाती है लठमार होली, बिहार भर में है मशहूर

हिन्दू हो या मुसलमान सभी एक दूसरे के साथ मिलकर होली का आनंद लेते हैं. यह परंपरा महान संत लक्ष्मीनाथ गोस्वामी की शुरुआत है. मंदिर के ऊपर लगे फव्वारों से रंग की बौछार जब तक इनके ऊपर नही पड़ती तब तक इनकी होली अधूरी रहती है.

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Published : Mar 20, 2019, 10:35 PM IST

होली खेलते लोग

सहरसा: मथुरा के बज्र की होली की तरह मशहूर है बिहार के सहरसा जिले में मनायी जाने वाली हुड़दंगी और लठमार होली. बनगांव में ग्रामीणों का जत्था भगवती स्थान के प्रांगण में एकत्रित होकर एक- दूसरे का स्वागत इसी तरह हुड़दंग से करते हैं.

होली खेलते लोग

हिन्दू हो या मुसलमान सभी एक दूसरे के साथ मिलकर होली का आनंद लेते हैं. यह परंपरा महान संत लक्ष्मीनाथ गोस्वामी की शुरुआत है. मंदिर के ऊपर लगे फव्वारों से रंग की बौछार जब तक इनके ऊपर नही पड़ती तब तक इनकी होली अधूरी रहती है.

सहरसा के कहर प्रखंड अंतर्गत बनगांव में सत्रहवी शताब्दी से ही अभूतपूर्व होली खेली जाती है. गांव के ही भगवती स्थान पर बच्चे बूढ़े जवान सभी एक जगह जमा होकर हुड़दंगी घूमर होली खेलते हैं. बनगांव बिहार का ऐसा गांव है जहां 50000 से ज्यादा ब्राह्मण जाति के लोग रहते हैं.

इस गांव में तीन पंचायत हैं यही नहीं खास बात यह है कि ब्राह्मणों के साथ-साथ यहां विभिन्न जाती के अलावा मुस्लिमों की भी अच्छी तादाद है. गांव के लोगों के अतिरिक्त आसपास के गांव के लोग भी यहां होली खेलने आते हैं.

वहीं होली खेलने पहुंचे पूर्व विधायक आलोक रंजन ने बताया कि संत लक्ष्मी नाथ गोसाई ने होली की शुरुआत की थी. जिसे आज तक लोग बखूबी निभा रहे हैं. यहां हर धर्म जाति के लोग कपड़ा फाड़ हुड़दंगी होली खेलते हैं. इस गांव के भगवान झा ने बताया कि सदियों से ऐसी परंपरा चली आ रही है. गांव के सभी लोग एक साथ होली खेलते हैं.

सहरसा: मथुरा के बज्र की होली की तरह मशहूर है बिहार के सहरसा जिले में मनायी जाने वाली हुड़दंगी और लठमार होली. बनगांव में ग्रामीणों का जत्था भगवती स्थान के प्रांगण में एकत्रित होकर एक- दूसरे का स्वागत इसी तरह हुड़दंग से करते हैं.

होली खेलते लोग

हिन्दू हो या मुसलमान सभी एक दूसरे के साथ मिलकर होली का आनंद लेते हैं. यह परंपरा महान संत लक्ष्मीनाथ गोस्वामी की शुरुआत है. मंदिर के ऊपर लगे फव्वारों से रंग की बौछार जब तक इनके ऊपर नही पड़ती तब तक इनकी होली अधूरी रहती है.

सहरसा के कहर प्रखंड अंतर्गत बनगांव में सत्रहवी शताब्दी से ही अभूतपूर्व होली खेली जाती है. गांव के ही भगवती स्थान पर बच्चे बूढ़े जवान सभी एक जगह जमा होकर हुड़दंगी घूमर होली खेलते हैं. बनगांव बिहार का ऐसा गांव है जहां 50000 से ज्यादा ब्राह्मण जाति के लोग रहते हैं.

इस गांव में तीन पंचायत हैं यही नहीं खास बात यह है कि ब्राह्मणों के साथ-साथ यहां विभिन्न जाती के अलावा मुस्लिमों की भी अच्छी तादाद है. गांव के लोगों के अतिरिक्त आसपास के गांव के लोग भी यहां होली खेलने आते हैं.

वहीं होली खेलने पहुंचे पूर्व विधायक आलोक रंजन ने बताया कि संत लक्ष्मी नाथ गोसाई ने होली की शुरुआत की थी. जिसे आज तक लोग बखूबी निभा रहे हैं. यहां हर धर्म जाति के लोग कपड़ा फाड़ हुड़दंगी होली खेलते हैं. इस गांव के भगवान झा ने बताया कि सदियों से ऐसी परंपरा चली आ रही है. गांव के सभी लोग एक साथ होली खेलते हैं.

Intro:सहरसा..मथुरा के बज्र की होली की तरह मशहूर है बिहार के सहरसा जिले में मनाये जाने वाली हुरदंगी और लठमार होली।बनगांव में ग्रामीणों का जत्था भगवती स्थान के प्रांगण में एकत्रित होकर एज दूसरे का स्वागत इसी तरह हुरदंग से करते है।हिन्दू हो या मुसलमान सभी एक दूसरे के साथ मिलकर होली का आनंद लेते है।यह परंपरा महान संत लक्ष्मीनाथ गोस्वामी की शुरुआत है।मंदिर के ऊपर लगे फब्बारों से रंग की बौछार जब तक इनके ऊपर नही पड़ती तब तक इनकी होली अधूरी रहती है।


Body:आज हम आप को सहरसा के कहर प्रखंड अंतर्गत पड़ने वाले बनगांव लाये है,इस गांव में सत्रहवी शताब्दी से ही अभूतपूर्व होली खेली जाती है।गांव के ही भगवती स्थान पर बच्चे बूढ़े जवान सभी एक जगह जमा होकर हुरदंगी घूमर होली खेलते है।बनगांव बिहार का ऐसा गांव है जहां 50000 से ज्यादा ब्राह्मण जाति के लोग रहते है इस गांव में तीन पंचायत है यही नही खास बात यह है कि ब्राह्मणों के साथ साथ यहां विभिन्न जाती के अलावे मुश्लिमो की भी अच्छी तादाद है।गांव के लोगो के अतिरिक्त आसपास के गांव के लोग भी यहाँ होली खेलने आते है।देखिये किस तरह से सभी लोग जान जोखिम में डालकर इस हुरदंगी होली का लुफ्त उठाते है।वही इस बाबत होली खेलने आये पूर्व विधायक आलोक रंजन ने बताया कि संत लक्ष्मी नाथ गोसाई ने होली की शुरुआत की थी जिसे आज तक लोग बखूबी निभा रहे है यहाँ हर धर्म जाती के लोग कपड़ा फाड़ हुरदंगी होली खेलते है।इस गांव के भगवान झा ने बताया कि सदियों से ऐसी परंपरा चली आ रही है गांव के सभी लोग एक साथ होली खेलते है।


Conclusion:प्रेम भाईचारे और आपसी द्वेष को खत्म कर जिन्दगी की नई शुरुआत करने का संदेश देने वाले इस महान पर्व होली के सार्थक और आदर्श रूप सहरसा के बनगांव में निःसंदेह आज भी सिद्दत से मौजूद है।
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