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कोसी का कहर: सरकार की ठोस नीति के अभाव में हर साल बसना और उजड़ना बन गई है लोगों की नियति - सहरसा

आजादी के बाद से बाढ़ (Flood) की समस्या का निदान सभी राजनीतिक दलों का मुख्य चुनावी मुद्दा रहा, लेकिन इस दिशा में कभी ठोस पहल नहीं हुई. आलम ये है कि कोसी का इलाका हर साल बाढ़ का दंश झेलता है. इस बार तो इतनी तबाही के बाद भी सहरसा को बाढ़ प्रभावित जिलों (Flood Affected District) में शामिल भी नहीं किया गया है.

कोसी
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Published : Sep 9, 2021, 10:54 PM IST

सहरसा: वैसे तो बाढ़ (Flood) के कारण बिहार के आधे से अधिक जिलों में हर साल तबाही आती है, लेकिन कोसी (Kosi) क्षेत्र के लोगों की हालत सबसे खराब रहती है. सहरसा जिले के महिषी, नवहट्टा, सिमरी बख्तियारपुर, सलखुआ और बनमा इटहरी में लगभग तीन से चार लाख तक की आबादी बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित होती है. सरकार के वादों और दावों के बावजूद अभी तक स्थायी हल नहीं निकल पाया है.

ये भी पढ़ें: हर बार तबाही की नई कहानी लिखती है कोसी, अरबों खर्च के बाद भी नतीजा 'जलप्रलय'

कोसी क्षेत्र में हर वर्ष बसना और उजड़ना लोगों की नियति बन चुकी है. आजादी के बाद से बाढ़ की समस्या का निदान सभी राजनीतिक दलों का मुख्य चुनावी मुद्दा रहा, लेकिन इस दिशा में कभी ठोस पहल नहीं हुई. फलस्वरूप हर वर्ष आनेवाली बाढ़ इस इलाके को करोड़ों की क्षति हो जाती है.

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बाढ़ हर वर्ष इस इलाके को भौगोलिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से काफी क्षति पहुंचाती है. बाढ़ के समय फसल क्षतिपूर्ति, बाढ़ सहायता राशि के नाम पर करोड़ों खर्च भी होते हैं, लेकिन लोगों की पीड़ा कम नहीं होती है.

ये भी पढ़ें: सांसद ने कोसी कटाव स्थल का लिया जायजा, कहा- निश्चिन्त रहें, हर हाल में होगा कटाव निरोधक काम

बाढ़ से पूर्व तो इसपर सालों भर चर्चा होती है, लेकिन बाढ़ आते ही यह चर्चा राहत सामग्री सत्तु, मोमबत्ती और माचिस की गुणवत्ता पर जाकर टिक जाती है. जिले के महिषी, नवहट्टा, सिमरी बख्तियारपुर, सलखुआ और बनमा इटहरी में लगभग तीन से चार लाख तक की आबादी बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित होती है.

इनलोगों के बीच बाढ़ सहायता मद में बर्तन और कपड़े की खरीद के लिए छह हजार बाढ़ सहायता राशि की दर से पिछले वर्ष इन प्रखंडों में लगभग 30 करोड़ रुपये का वितरण किया गया. इसके अलावा 12 करोड़ रुपये फसल क्षतिपूर्ति मद में खर्च किए गए. कमोबेश इतनी ही राशि हर वर्ष बाढ़ पीड़ितों की सहायता और पांच से दस करोड़ तटबंध सुरक्षा, नाविकों का भुगतान, सामुदायिक किचेन, जीआर वितरण पर खर्च होता है. बावजूद इसके बाढ़ पीड़ितों की जो क्षति होती है, उसकी आधी भी भरपाई नहीं हो पाती. वे हर वर्ष एक कदम आगे जाते हैं, तो बाढ़ उन्हें दो कदम पीछे खींच लाती है.

ये भी पढ़ें: कोसी का कहर:सुपौल के मरौना प्रखंड के खुखनाहा पंचायत में 25 घर कटाव से प्रभावित, लोगों ने ऊंचे स्थान पर लिया सहारा

इस वर्ष लगभग डेढ़ लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हैं. जिला प्रशासन की रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान समय में चार प्रखंडों के 27 पंचायत और 49 गांव के एक लाख 38 हजार 13 व्यक्ति और 300 पशु बाढ़ से पूरी तरह प्रभावित हैं. 35 झोपड़ी ध्वस्त हो गए. 2571 पालिथीन शीट का वितरण किया गया है.

वहीं, बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में तीन सरकारी और 61 निजी नाव चलाए जा रहे हैं, लेकिन सहरसा को अबतक बाढ़ प्रभावित जिले में शामिल नहीं किया जा सका है. ऐसे में लोगों को क्षतिपूर्ति का लाभ मिलना कठिन हो जाएगा. इसको लेकर जिला आपदा प्रबंधन पदाधिकारी नीरज सिन्हा ने बताया कि बाढ़ के संबंध में जिला प्रशासन द्वारा नियमित रिपोर्ट भेजी जा रही है. सरकार के निर्देशानुसार क्षतिपूर्ति का भुगतान होगा. अन्य निर्णय सरकार के स्तर से ही लिया जा सकता है.

सहरसा: वैसे तो बाढ़ (Flood) के कारण बिहार के आधे से अधिक जिलों में हर साल तबाही आती है, लेकिन कोसी (Kosi) क्षेत्र के लोगों की हालत सबसे खराब रहती है. सहरसा जिले के महिषी, नवहट्टा, सिमरी बख्तियारपुर, सलखुआ और बनमा इटहरी में लगभग तीन से चार लाख तक की आबादी बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित होती है. सरकार के वादों और दावों के बावजूद अभी तक स्थायी हल नहीं निकल पाया है.

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कोसी क्षेत्र में हर वर्ष बसना और उजड़ना लोगों की नियति बन चुकी है. आजादी के बाद से बाढ़ की समस्या का निदान सभी राजनीतिक दलों का मुख्य चुनावी मुद्दा रहा, लेकिन इस दिशा में कभी ठोस पहल नहीं हुई. फलस्वरूप हर वर्ष आनेवाली बाढ़ इस इलाके को करोड़ों की क्षति हो जाती है.

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बाढ़ हर वर्ष इस इलाके को भौगोलिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से काफी क्षति पहुंचाती है. बाढ़ के समय फसल क्षतिपूर्ति, बाढ़ सहायता राशि के नाम पर करोड़ों खर्च भी होते हैं, लेकिन लोगों की पीड़ा कम नहीं होती है.

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बाढ़ से पूर्व तो इसपर सालों भर चर्चा होती है, लेकिन बाढ़ आते ही यह चर्चा राहत सामग्री सत्तु, मोमबत्ती और माचिस की गुणवत्ता पर जाकर टिक जाती है. जिले के महिषी, नवहट्टा, सिमरी बख्तियारपुर, सलखुआ और बनमा इटहरी में लगभग तीन से चार लाख तक की आबादी बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित होती है.

इनलोगों के बीच बाढ़ सहायता मद में बर्तन और कपड़े की खरीद के लिए छह हजार बाढ़ सहायता राशि की दर से पिछले वर्ष इन प्रखंडों में लगभग 30 करोड़ रुपये का वितरण किया गया. इसके अलावा 12 करोड़ रुपये फसल क्षतिपूर्ति मद में खर्च किए गए. कमोबेश इतनी ही राशि हर वर्ष बाढ़ पीड़ितों की सहायता और पांच से दस करोड़ तटबंध सुरक्षा, नाविकों का भुगतान, सामुदायिक किचेन, जीआर वितरण पर खर्च होता है. बावजूद इसके बाढ़ पीड़ितों की जो क्षति होती है, उसकी आधी भी भरपाई नहीं हो पाती. वे हर वर्ष एक कदम आगे जाते हैं, तो बाढ़ उन्हें दो कदम पीछे खींच लाती है.

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इस वर्ष लगभग डेढ़ लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हैं. जिला प्रशासन की रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान समय में चार प्रखंडों के 27 पंचायत और 49 गांव के एक लाख 38 हजार 13 व्यक्ति और 300 पशु बाढ़ से पूरी तरह प्रभावित हैं. 35 झोपड़ी ध्वस्त हो गए. 2571 पालिथीन शीट का वितरण किया गया है.

वहीं, बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में तीन सरकारी और 61 निजी नाव चलाए जा रहे हैं, लेकिन सहरसा को अबतक बाढ़ प्रभावित जिले में शामिल नहीं किया जा सका है. ऐसे में लोगों को क्षतिपूर्ति का लाभ मिलना कठिन हो जाएगा. इसको लेकर जिला आपदा प्रबंधन पदाधिकारी नीरज सिन्हा ने बताया कि बाढ़ के संबंध में जिला प्रशासन द्वारा नियमित रिपोर्ट भेजी जा रही है. सरकार के निर्देशानुसार क्षतिपूर्ति का भुगतान होगा. अन्य निर्णय सरकार के स्तर से ही लिया जा सकता है.

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