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कोसी में होगी 'ग्रीन गोल्ड' की खेती, बढ़ेगी किसानों की आय - औषधीय गुणों से भरपूर बांस

सहरसा के वन प्रमंडल पदाधिकारी के मुताबिक, जिले के 10 प्रखंड क्षेत्रों के किसानों को जून एवं जुलाई माह से पौधे का वितरण किया जाएगा. उन्होंने कहा कि नर्सरी में मार्च तक पौधा तैयार हो जाएगा.

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Published : Jan 27, 2020, 11:12 AM IST

सहरसा: बिहार के कोसी क्षेत्र में अब 'ग्रीन गोल्ड' कहे जाने वाले बांस की खेती होगी. इसके लिए वन प्रमंडल सहरसा ने पूरी तैयारी शुरू कर दी है. इसके लिए प्रथम चरण में बीज लगाने को लेकर नर्सरी में मिट्टी भराई कार्य को भी पूरा कर लिया गया है.

16 हजार पौधे तैयार करने का लक्ष्य
प्रथम चरण में स्थायी पौधशाला में राष्ट्रीय बांस मिशन (एनबीएम) के अंतर्गत बांध पौधशाला 2019-20 के तहत कहरा प्रखंड के सहरसा बांस पौधशाला में 16 हजार पौधा तैयार करने का लक्ष्य निर्धारित है. बांस की खेती से किसानों की आय में वृद्धि के साथ-साथ जलवायु को सुदृढ़ बनाने और पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान होगा.

saharsa
बांस की खेती

औषधीय गुणों से भरपूर बांस
बांस की खेती के लिए कोसी क्षेत्र की जलवायु एवं भौगोलिक स्थिति बेहद उपयुक्त एवं लाभकारी माना जाता है. स्थानीय लोगों के मुताबिक, बांस का उपयोग सौंदर्य प्रसाधन, बड़े-बड़े होटलों में फर्नीचर, टिम्बर मर्चेट से लेकर संस्कृति से जुड़े कार्यो तक बांस का उपयोग होता है. इसके साथ-साथ बांस को खाया भी जाता है. बांस औषधीय गुणों से भरपूर होता है.

पहले की अपेक्षा बढ़ी मांग
लोग कहते हैं कि अब बांस और बांस के उत्पादों की मांग पहले की अपेक्षा काफी बढ़ गई है. राष्ट्रीय बांस मिशन योजना कोसी क्षेत्र के सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, पूर्णिया, अररिया, कटिहार, किशनगंज, सीतामढ़ी, मुंगेर, बांका, जमुई, नालंदा, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, पश्चिमी चंपारण व शिवहर शामिल है.

जून एवं जुलाई माह से पौधे का वितरण
सहरसा के वन प्रमंडल पदाधिकारी शशिभूषण झा ने बताया कि जिला के 10 प्रखंड क्षेत्रों के किसानों को जून एवं जुलाई माह से पौधे का वितरण किया जाएगा. उन्होंने कहा कि नर्सरी में मार्च तक पौधा तैयार हो जाएगा.

आर्थिक रूप से समृद्ध होंगे किसान
झा ने कहा कि ऐसा नहीं कि पहले यहां बांस की खेती नहीं होती थी. पहले भी जिले के महिषी, सिमरी बख्तियारपुर, कहरा, सत्तरकटैया सहित कई क्षेत्रों में बांस की खेती होती थी, लेकिन उनका तरीका अवैज्ञानिक था, जिससे किसानों को भरपूर लाभ नहीं मिलता था. वैज्ञानिक तरीके से बांस की खेती करने पर किसान आर्थिक रूप से समृद्ध होंगे.

बंजर जमीन को उपजाऊ करने में मदद
उन्होंने कहा कि इससे बंजर जमीन को उपजाऊ करने में मदद मिलेगी. इससे भूमिहीनों सहित छोटे एवं मझौले किसानों और महिलाओं को आजीविका मिलेगी और उद्योग को गुणवत्ता संपन्न सामग्री उपलब्ध हो सकेगी.

एक एकड़ में लगाया जा सकता है 80 से 100 पौधा
झा ने बताया कि एक एकड़ में 80 से 100 पौधा लगाया जा सकता है, जो 4 साल में अपनी परिपक्वता के बाद करीब 1000 से 1500 के बीच बांस तैयार होगा और किसानों को एक लाख से 1.5 लाख रुपये सालाना की आमदनी हो सकती है.

'बांस की खेती के लिए कोई सीमा तय नहीं'
उन्होंने कहा कि बांस की खेती के लिए कोई सीमा तय नहीं है, किसान इसे अपनी जमीन पर कर सकते हैं. एक पौधा कम से कम 2.5 मीटर की दूरी में लगाना पड़ता है. उन्होंने कहा कि आमतौर पर 136 किस्मों में सर्वाधिक रूप से 10 प्रजातियों का ही उपयोग किया जाता है. बांस के पौधे को हरेक साल रिप्लांटेशन करने की भी जरूरत नहीं पड़ती है. बांस के पौधे की आयु करीब 40 साल की होती है.

सहरसा: बिहार के कोसी क्षेत्र में अब 'ग्रीन गोल्ड' कहे जाने वाले बांस की खेती होगी. इसके लिए वन प्रमंडल सहरसा ने पूरी तैयारी शुरू कर दी है. इसके लिए प्रथम चरण में बीज लगाने को लेकर नर्सरी में मिट्टी भराई कार्य को भी पूरा कर लिया गया है.

16 हजार पौधे तैयार करने का लक्ष्य
प्रथम चरण में स्थायी पौधशाला में राष्ट्रीय बांस मिशन (एनबीएम) के अंतर्गत बांध पौधशाला 2019-20 के तहत कहरा प्रखंड के सहरसा बांस पौधशाला में 16 हजार पौधा तैयार करने का लक्ष्य निर्धारित है. बांस की खेती से किसानों की आय में वृद्धि के साथ-साथ जलवायु को सुदृढ़ बनाने और पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान होगा.

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बांस की खेती

औषधीय गुणों से भरपूर बांस
बांस की खेती के लिए कोसी क्षेत्र की जलवायु एवं भौगोलिक स्थिति बेहद उपयुक्त एवं लाभकारी माना जाता है. स्थानीय लोगों के मुताबिक, बांस का उपयोग सौंदर्य प्रसाधन, बड़े-बड़े होटलों में फर्नीचर, टिम्बर मर्चेट से लेकर संस्कृति से जुड़े कार्यो तक बांस का उपयोग होता है. इसके साथ-साथ बांस को खाया भी जाता है. बांस औषधीय गुणों से भरपूर होता है.

पहले की अपेक्षा बढ़ी मांग
लोग कहते हैं कि अब बांस और बांस के उत्पादों की मांग पहले की अपेक्षा काफी बढ़ गई है. राष्ट्रीय बांस मिशन योजना कोसी क्षेत्र के सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, पूर्णिया, अररिया, कटिहार, किशनगंज, सीतामढ़ी, मुंगेर, बांका, जमुई, नालंदा, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, पश्चिमी चंपारण व शिवहर शामिल है.

जून एवं जुलाई माह से पौधे का वितरण
सहरसा के वन प्रमंडल पदाधिकारी शशिभूषण झा ने बताया कि जिला के 10 प्रखंड क्षेत्रों के किसानों को जून एवं जुलाई माह से पौधे का वितरण किया जाएगा. उन्होंने कहा कि नर्सरी में मार्च तक पौधा तैयार हो जाएगा.

आर्थिक रूप से समृद्ध होंगे किसान
झा ने कहा कि ऐसा नहीं कि पहले यहां बांस की खेती नहीं होती थी. पहले भी जिले के महिषी, सिमरी बख्तियारपुर, कहरा, सत्तरकटैया सहित कई क्षेत्रों में बांस की खेती होती थी, लेकिन उनका तरीका अवैज्ञानिक था, जिससे किसानों को भरपूर लाभ नहीं मिलता था. वैज्ञानिक तरीके से बांस की खेती करने पर किसान आर्थिक रूप से समृद्ध होंगे.

बंजर जमीन को उपजाऊ करने में मदद
उन्होंने कहा कि इससे बंजर जमीन को उपजाऊ करने में मदद मिलेगी. इससे भूमिहीनों सहित छोटे एवं मझौले किसानों और महिलाओं को आजीविका मिलेगी और उद्योग को गुणवत्ता संपन्न सामग्री उपलब्ध हो सकेगी.

एक एकड़ में लगाया जा सकता है 80 से 100 पौधा
झा ने बताया कि एक एकड़ में 80 से 100 पौधा लगाया जा सकता है, जो 4 साल में अपनी परिपक्वता के बाद करीब 1000 से 1500 के बीच बांस तैयार होगा और किसानों को एक लाख से 1.5 लाख रुपये सालाना की आमदनी हो सकती है.

'बांस की खेती के लिए कोई सीमा तय नहीं'
उन्होंने कहा कि बांस की खेती के लिए कोई सीमा तय नहीं है, किसान इसे अपनी जमीन पर कर सकते हैं. एक पौधा कम से कम 2.5 मीटर की दूरी में लगाना पड़ता है. उन्होंने कहा कि आमतौर पर 136 किस्मों में सर्वाधिक रूप से 10 प्रजातियों का ही उपयोग किया जाता है. बांस के पौधे को हरेक साल रिप्लांटेशन करने की भी जरूरत नहीं पड़ती है. बांस के पौधे की आयु करीब 40 साल की होती है.

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