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Bihar News: 'बरसात में मकड़ी का जाल नहीं हटाते, हम तो इंसान हैं..' डालमियानगर के लोगों का दर्द सुनिए..

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Aug 27, 2023, 8:00 PM IST

बिहार के रोहतास डालमियानगर में रहने वाले लोगों की समस्या कम नहीं हो रही है. आखिर इन लोगों का दर्द कौन सुनेगा? हाईकोर्ट ने क्वार्टर खाली कराने का आदेश दो दे दिया, लेकिन ये लोग जाएंगे कहां? न इनलोगों के पास न नौकरी है और न घर है. पढ़ें पूरी खबर...

रोहतास डालमियानगर में रहने वाले लोगों की समस्या
रोहतास डालमियानगर में रहने वाले लोगों की समस्या
रोहतास डालमियानगर में रहने वाले लोगों की समस्या

रोहतासः बिहार के रोहतास में डालमियानगर क्वार्टर को खाली का समय (Dalmiyanagar Quarter in Rohtas) आ गया है. 30 अगस्त तक डेडलाइन रखा गया है. अगर लोग स्वतः खाली नहीं करते हैं तो प्रशासन जबरन वहां से हटाएगी. निर्देश के बाद से क्वार्टर में रह रहे लोगों की नींद हराम हो गई है. चिंता के मारे कई लोगों के घर में चूल्हा नहीं जल रहा है कि अब वे कहां जाएंगे? सभी लोग यहां 50 वर्षों से अधिक समय से रह रहे हैं. मरीज और वृद्ध ज्यादा परेशान हैं.

यह भी पढ़ेंः डालमियानगर उद्योग समूह बना खंडहर, कोरोना काल में मायूस लोगों की मांग- 'शुरू हो वैगन कारखाना'

2 अगस्त को प्रशासन का फरमानः पटना हाईकोर्ट के आदेश पर 2 अगस्त को प्रशासन ने फरमान जारी किया था कि क्वार्टर में रह रहे लोग घर को खाली कर दें. नहीं तो प्रशासन जबरन घर खाली कराने का काम करेगी. 1471 घरों में रह रहे लोगों के सामने सिर ढकने की समस्या आ गई है. सभी इसी चिंता में हैं कि आखिर वे जाएंगे कहां? इधर, सरकार की ओर से भी कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की गई है.

बस हादसा में खो दिए पैरः डालमियानगर क्वार्टर नंबर 346 में रहने वाले अरुण कुमार पांडे का दर्द सुनकर हर कोई भावुक हो जाएगा. उन्होंने बताया वे 40 साल से इस क्वार्टर में रह रहे हैं. उनके ससुर सीमेंट फैक्ट्री में काम करते थे. जब से कंपनी बंद हुई, सभी लोग यही रहकर मजदूरी करने लगे. बस हादसा में अरुण का दोनों पैर काम के लिए नहीं बचा, जिस कारण वे हमेशा बेड या ह्वील चेयर पर रहते हैं.

"मेरे फादर इन लॉ सीमेंट फैक्ट्री में काम करते थे. तकरीबन 40 साल से इस क्वार्टर में रह रहे हैं. मेरे दोनों पैर काम नहीं करते हैं. कहीं आ जा नहीं सकते. बस से दुर्घटना में दोनों पर खो गए. दो बच्चिया हैं, जिसमें एक की शादी हो गई है. घर खाली कर हम कहां जाएंगे. हम काम नहीं करते हैं. भाई लोग मदद करते हैं तब घर चलता है. दूसरी बेटी की शादी करनी है." -अरुण कुमार पांडे, पीड़ित

बेटी की शादी कैसे होगी? अरुण बताते हैं कि उनके सामने विकट समस्या आ खड़ी हुई है. उन्होंने कहा कि अब जाए तो जाए कहां. बेटी की शादी कैसे होगी. सिर पर छत ही नहीं रहेगा तो कैसे जिएंगे. कहते-कहते उनकी आंखों से आंसू छलक पड़ते हैं. आसपास के रहने वाले सभी लोगों के चेहरे पर मायूसी छाई हुई है. जैसे-जैसे डेडलाइन की तारीख नजदीक आ रही है, वैसे-वैसे डालमियानगर के रहने वाले लोगों के चेहरे पर पीड़ा दर्द और टिस साफ झलक रही है.

छत मुहैया करायी जाए: लोगों ने सरकार से मदद की गुहार लगाई है कि किसी तरह उन्हें छत मुहैया करायी जाए ताकि वह बेघर होने से बच सके. अपनी बाकी की जिंदगी गुजार सके. स्थानीय आरती श्रीवास्तव ने बताया कि सरकार उनलोगों की बात सुने. वे लोग 70 साल से यहां रह रही है. उनलोगों के पास दूसरा कोई घर नहीं है. वे लोग कहां जाएंगी. एक ओर सरकार घर बांट रही है तो दूसरी ओर बेघर कर रही है.

"एक ओर सरकार सबको घर बनाकर दे रही है, वहीं दूसरी ओर हमलोगों को बेघर किया जा रहा है. हमलोग यहां 70 से 80 वर्ष से रह रहे हैं. सरकार हमलोग को कैसे यहां से निकाल सकती है. हमलोग कहां जाएंगे. कहते हैं कि बरसात में मकड़ी का भी जाल नहीं हटाना चाहिए, लेकिन हम तो इंसान हैं. सरकार हमलोगों की मांग को सुने." -आरती श्रीवास्तव, स्थानीय

"इस भादो के महीने में हमलोग कहां जाएंगे. घर में छोटे छोटे बच्चे हैं. कोई नौकरी या जमीन नहीं है. यहीं हमलोग मजदूरी का काम करते हैं. हमारा घर ही नहीं रहेगा तो हमलोग कहां जाएंगे. मेरे पिताजी 40 साल पहले यहां रहते थे, तभी से रह रहे हैं. कंपनी बंद होने के बाद मजदूरी करते थे." - यशोदा देवी, स्थानीय

ईटीवी भारत GFX
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कारखाना का हब था डालमियानगरः 20वीं सदी में उद्योगपति रामकृष्ण डालमिया ने इंडस्ट्री का स्थापना की थी. यह एशिया का सबसे बड़ा अद्यौगिक क्षेत्र था. डालमियनागर में चीनी, सीमेंट, कागज, आदि की फैक्ट्री का संचालन होता था, जिसमें स्थानीय लोगों को काम दिया गया था. काम करने वाले लोगों के रहने के लिए क्वार्टर भी बनाया गया था. लेकिन कुछ स्थानीय माफियाओं के कारण यहां काम करने वाले अधिकारियों ने कंपनी छोड़ दी. इससे प्रबंधन खराब होने लगा और 1980 से 90 तक कंपनी बंद हो गई.

कंपनी बंद होने के बाद भुखमरी की समस्याः कंपनी में काम करने वाले लाखों लोग बेरोजगार हो गए. खाने पीने की समस्या आ गई. कंपनी की ओर से मिले क्वार्टर में रह रहे लोगों ने मजदूरी कर पेट पालना शुरू किया, तब से उनके परिवार इसी क्वार्टर में रह रहे हैं, लेकिन अब इस क्वार्टर में रहने वाले लोगों के सामने संकट आ गई है. पटना हाईकोर्ट ने इसे खाली करने का निर्देश दिया है. इसके बाद से यहां रह रहे लोग परेशान हैं.

रोहतास डालमियानगर में रहने वाले लोगों की समस्या

रोहतासः बिहार के रोहतास में डालमियानगर क्वार्टर को खाली का समय (Dalmiyanagar Quarter in Rohtas) आ गया है. 30 अगस्त तक डेडलाइन रखा गया है. अगर लोग स्वतः खाली नहीं करते हैं तो प्रशासन जबरन वहां से हटाएगी. निर्देश के बाद से क्वार्टर में रह रहे लोगों की नींद हराम हो गई है. चिंता के मारे कई लोगों के घर में चूल्हा नहीं जल रहा है कि अब वे कहां जाएंगे? सभी लोग यहां 50 वर्षों से अधिक समय से रह रहे हैं. मरीज और वृद्ध ज्यादा परेशान हैं.

यह भी पढ़ेंः डालमियानगर उद्योग समूह बना खंडहर, कोरोना काल में मायूस लोगों की मांग- 'शुरू हो वैगन कारखाना'

2 अगस्त को प्रशासन का फरमानः पटना हाईकोर्ट के आदेश पर 2 अगस्त को प्रशासन ने फरमान जारी किया था कि क्वार्टर में रह रहे लोग घर को खाली कर दें. नहीं तो प्रशासन जबरन घर खाली कराने का काम करेगी. 1471 घरों में रह रहे लोगों के सामने सिर ढकने की समस्या आ गई है. सभी इसी चिंता में हैं कि आखिर वे जाएंगे कहां? इधर, सरकार की ओर से भी कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की गई है.

बस हादसा में खो दिए पैरः डालमियानगर क्वार्टर नंबर 346 में रहने वाले अरुण कुमार पांडे का दर्द सुनकर हर कोई भावुक हो जाएगा. उन्होंने बताया वे 40 साल से इस क्वार्टर में रह रहे हैं. उनके ससुर सीमेंट फैक्ट्री में काम करते थे. जब से कंपनी बंद हुई, सभी लोग यही रहकर मजदूरी करने लगे. बस हादसा में अरुण का दोनों पैर काम के लिए नहीं बचा, जिस कारण वे हमेशा बेड या ह्वील चेयर पर रहते हैं.

"मेरे फादर इन लॉ सीमेंट फैक्ट्री में काम करते थे. तकरीबन 40 साल से इस क्वार्टर में रह रहे हैं. मेरे दोनों पैर काम नहीं करते हैं. कहीं आ जा नहीं सकते. बस से दुर्घटना में दोनों पर खो गए. दो बच्चिया हैं, जिसमें एक की शादी हो गई है. घर खाली कर हम कहां जाएंगे. हम काम नहीं करते हैं. भाई लोग मदद करते हैं तब घर चलता है. दूसरी बेटी की शादी करनी है." -अरुण कुमार पांडे, पीड़ित

बेटी की शादी कैसे होगी? अरुण बताते हैं कि उनके सामने विकट समस्या आ खड़ी हुई है. उन्होंने कहा कि अब जाए तो जाए कहां. बेटी की शादी कैसे होगी. सिर पर छत ही नहीं रहेगा तो कैसे जिएंगे. कहते-कहते उनकी आंखों से आंसू छलक पड़ते हैं. आसपास के रहने वाले सभी लोगों के चेहरे पर मायूसी छाई हुई है. जैसे-जैसे डेडलाइन की तारीख नजदीक आ रही है, वैसे-वैसे डालमियानगर के रहने वाले लोगों के चेहरे पर पीड़ा दर्द और टिस साफ झलक रही है.

छत मुहैया करायी जाए: लोगों ने सरकार से मदद की गुहार लगाई है कि किसी तरह उन्हें छत मुहैया करायी जाए ताकि वह बेघर होने से बच सके. अपनी बाकी की जिंदगी गुजार सके. स्थानीय आरती श्रीवास्तव ने बताया कि सरकार उनलोगों की बात सुने. वे लोग 70 साल से यहां रह रही है. उनलोगों के पास दूसरा कोई घर नहीं है. वे लोग कहां जाएंगी. एक ओर सरकार घर बांट रही है तो दूसरी ओर बेघर कर रही है.

"एक ओर सरकार सबको घर बनाकर दे रही है, वहीं दूसरी ओर हमलोगों को बेघर किया जा रहा है. हमलोग यहां 70 से 80 वर्ष से रह रहे हैं. सरकार हमलोग को कैसे यहां से निकाल सकती है. हमलोग कहां जाएंगे. कहते हैं कि बरसात में मकड़ी का भी जाल नहीं हटाना चाहिए, लेकिन हम तो इंसान हैं. सरकार हमलोगों की मांग को सुने." -आरती श्रीवास्तव, स्थानीय

"इस भादो के महीने में हमलोग कहां जाएंगे. घर में छोटे छोटे बच्चे हैं. कोई नौकरी या जमीन नहीं है. यहीं हमलोग मजदूरी का काम करते हैं. हमारा घर ही नहीं रहेगा तो हमलोग कहां जाएंगे. मेरे पिताजी 40 साल पहले यहां रहते थे, तभी से रह रहे हैं. कंपनी बंद होने के बाद मजदूरी करते थे." - यशोदा देवी, स्थानीय

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कारखाना का हब था डालमियानगरः 20वीं सदी में उद्योगपति रामकृष्ण डालमिया ने इंडस्ट्री का स्थापना की थी. यह एशिया का सबसे बड़ा अद्यौगिक क्षेत्र था. डालमियनागर में चीनी, सीमेंट, कागज, आदि की फैक्ट्री का संचालन होता था, जिसमें स्थानीय लोगों को काम दिया गया था. काम करने वाले लोगों के रहने के लिए क्वार्टर भी बनाया गया था. लेकिन कुछ स्थानीय माफियाओं के कारण यहां काम करने वाले अधिकारियों ने कंपनी छोड़ दी. इससे प्रबंधन खराब होने लगा और 1980 से 90 तक कंपनी बंद हो गई.

कंपनी बंद होने के बाद भुखमरी की समस्याः कंपनी में काम करने वाले लाखों लोग बेरोजगार हो गए. खाने पीने की समस्या आ गई. कंपनी की ओर से मिले क्वार्टर में रह रहे लोगों ने मजदूरी कर पेट पालना शुरू किया, तब से उनके परिवार इसी क्वार्टर में रह रहे हैं, लेकिन अब इस क्वार्टर में रहने वाले लोगों के सामने संकट आ गई है. पटना हाईकोर्ट ने इसे खाली करने का निर्देश दिया है. इसके बाद से यहां रह रहे लोग परेशान हैं.

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