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ये है सरकारी स्कूल का हालः प्रिंसिपल नहीं जानतीं DM का नाम, बच्चों को नहीं पता संडे-मंडे

सरकारी स्कूलों की गिरती शिक्षा व्यवस्था को जल्द से जल्द नहीं सुधारा गया तो इन स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों का भविष्य कभी उज्जवल नहीं होगा.

प्राथमिक स्कूल
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Published : Mar 1, 2019, 6:04 PM IST

रोहतासः बिहार में एमडीएम, पोशाक और साइकिल जैसी योजनाओं ने स्कूलों में बच्चों की संख्या तो जरूर बढ़ा दी, लेकिन इन सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर इस कदर गिर चुका है कि इसका अंदाजा लगाना मुशकिल है. आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि पांचवीं के बच्चों को संडे-मंडे तक याद नहीं. यह हाल सिर्फ एक दो स्कूलों का नहीं है बल्कि ज्यादातर प्राइमरी स्कूल के ब्च्चों में ज्ञान का बिल्कुल अभाव है.

ऐसी ही स्थिती है डेहरी प्रखंड के शंकरपुर गांव के प्राथमिक स्कूल की. जहां शिक्षा का मजाक उड़ाया जा रहा है. यहां के पढ़ने वाले बच्चों को ना तो महीने का नाम आता है ना दिनों का नाम. इतना ही नहीं इन बच्चों को ना पहाड़ा आता ना जोड़ घटाव . बहरहाल, सरकारी स्कूलों की गिरती शिक्षा व्यवस्था को जल्द से जल्द नहीं सुधारा गया तो इन स्कूलों में पढ़ने वाले गरीब बच्चों का भविष्य कभी उज्जवल नहीं होगा.

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स्कूल के बच्चे और बयान देती शिक्षक

यहां के पढ़ाने वाली महिला टीचर क्लास में बैठकर मौज करती हैं. बच्चों द्वारा ब्लैक बोर्ड पर बनाए गए गलत गणित को सुधारने के बजाए उसी तरह छोड़ देती हैं. बहरहाल, सरकारी स्कूलों की गिरती शिक्षा व्यवस्था को जल्द से जल्द नहीं सुधारा गया तो इन स्कूलों में पढ़ने वाले गरीब बच्चों का भविष्य कभी उज्जवल नहीं होगा.

ब्लैक बोर्ड पर गलतगणित
ब्लैक बोर्ड पर आसान सा जोड़ और घटाव तक गलत बनाया जाता है. जब इस बारे में महिला टीचर से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि बच्चों ने बनाया है. अब सवाल यह है कि अगर बच्चों ने गलत मैथ ब्लैकबोर्ड पर बनाया तो क्लास में मौजूद टीचर ने उसे सही क्यों नहीं किया. जबकि टीचर भी इस चीज को मानती हैं कि बच्चों में शिक्षा की काफी कमी है. अब स्कूल में मौजूद महिला प्रिंसिपल का हाल सुन लिजीए. इन्हें अपने शिक्षा विभाग के अधिकारी का नाम तक नहीं मालूम. इतना ही नहीं उन्हें तो अपने जिलाधिकारी का नाम भी नहीं मालूम है.

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शिक्षा के स्तर में कोई सुधार नहीं
सरकार शिक्षा के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च करती है. पिछले बजट में भी राज्य के वित्त मंत्री सुशील कुमार मोदी ने शिक्षक के नाम पर सबसे अधिक बजट पेश किया था, लेकिन बिहार में शिक्षक और शिक्षा का क्या हाल है इसकी तस्वीर किसी से नहीं छुपी है. फिर भी शिक्षा के स्तर में कोई सुधार नहीं हुआ. स्कूलों में सिर्फ बच्चों की संख्या बढ़ गई. इन स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों की शिक्षा का आलम क्या है यह किसी से छुपा नहीं है. सरकारी रहनुमा से लेकर आला अधिकारी तक जानते हैं कि सरकारी स्कूल के बच्चों को किस स्तर कि शिक्षा दी जा रही है.

wrong math on board
बोर्ड पर बना गलत मैथ

बच्चों का भविष्य हो रहा बर्बाद
ये कहना गलत ना होगा कि अगर इन बच्चों को किसी छोटे से प्राइवेट स्कूल के एलकेजी, यूकेजी के बच्चों के सामने खड़ा कर दिया जाए तो ये उनके सामने किसी भी सवाल का जवाब नहीं दे पाएंगे. अब सवाल यह है कि जब टीचर को ही अधूरा ज्ञान है, तो वह बच्चे को कहां से पूरा ज्ञान दे पाएंगी. बहरहाल, सरकारी स्कूलों की गिरती शिक्षा व्यवस्था को जल्द से जल्द नहीं सुधारा गया तो इन स्कूलों में पढ़ने वाले गरीब बच्चों का भविष्य कभी उज्जवल नहीं होगा.

रोहतासः बिहार में एमडीएम, पोशाक और साइकिल जैसी योजनाओं ने स्कूलों में बच्चों की संख्या तो जरूर बढ़ा दी, लेकिन इन सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर इस कदर गिर चुका है कि इसका अंदाजा लगाना मुशकिल है. आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि पांचवीं के बच्चों को संडे-मंडे तक याद नहीं. यह हाल सिर्फ एक दो स्कूलों का नहीं है बल्कि ज्यादातर प्राइमरी स्कूल के ब्च्चों में ज्ञान का बिल्कुल अभाव है.

ऐसी ही स्थिती है डेहरी प्रखंड के शंकरपुर गांव के प्राथमिक स्कूल की. जहां शिक्षा का मजाक उड़ाया जा रहा है. यहां के पढ़ने वाले बच्चों को ना तो महीने का नाम आता है ना दिनों का नाम. इतना ही नहीं इन बच्चों को ना पहाड़ा आता ना जोड़ घटाव . बहरहाल, सरकारी स्कूलों की गिरती शिक्षा व्यवस्था को जल्द से जल्द नहीं सुधारा गया तो इन स्कूलों में पढ़ने वाले गरीब बच्चों का भविष्य कभी उज्जवल नहीं होगा.

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स्कूल के बच्चे और बयान देती शिक्षक

यहां के पढ़ाने वाली महिला टीचर क्लास में बैठकर मौज करती हैं. बच्चों द्वारा ब्लैक बोर्ड पर बनाए गए गलत गणित को सुधारने के बजाए उसी तरह छोड़ देती हैं. बहरहाल, सरकारी स्कूलों की गिरती शिक्षा व्यवस्था को जल्द से जल्द नहीं सुधारा गया तो इन स्कूलों में पढ़ने वाले गरीब बच्चों का भविष्य कभी उज्जवल नहीं होगा.

ब्लैक बोर्ड पर गलतगणित
ब्लैक बोर्ड पर आसान सा जोड़ और घटाव तक गलत बनाया जाता है. जब इस बारे में महिला टीचर से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि बच्चों ने बनाया है. अब सवाल यह है कि अगर बच्चों ने गलत मैथ ब्लैकबोर्ड पर बनाया तो क्लास में मौजूद टीचर ने उसे सही क्यों नहीं किया. जबकि टीचर भी इस चीज को मानती हैं कि बच्चों में शिक्षा की काफी कमी है. अब स्कूल में मौजूद महिला प्रिंसिपल का हाल सुन लिजीए. इन्हें अपने शिक्षा विभाग के अधिकारी का नाम तक नहीं मालूम. इतना ही नहीं उन्हें तो अपने जिलाधिकारी का नाम भी नहीं मालूम है.

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शिक्षा के स्तर में कोई सुधार नहीं
सरकार शिक्षा के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च करती है. पिछले बजट में भी राज्य के वित्त मंत्री सुशील कुमार मोदी ने शिक्षक के नाम पर सबसे अधिक बजट पेश किया था, लेकिन बिहार में शिक्षक और शिक्षा का क्या हाल है इसकी तस्वीर किसी से नहीं छुपी है. फिर भी शिक्षा के स्तर में कोई सुधार नहीं हुआ. स्कूलों में सिर्फ बच्चों की संख्या बढ़ गई. इन स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों की शिक्षा का आलम क्या है यह किसी से छुपा नहीं है. सरकारी रहनुमा से लेकर आला अधिकारी तक जानते हैं कि सरकारी स्कूल के बच्चों को किस स्तर कि शिक्षा दी जा रही है.

wrong math on board
बोर्ड पर बना गलत मैथ

बच्चों का भविष्य हो रहा बर्बाद
ये कहना गलत ना होगा कि अगर इन बच्चों को किसी छोटे से प्राइवेट स्कूल के एलकेजी, यूकेजी के बच्चों के सामने खड़ा कर दिया जाए तो ये उनके सामने किसी भी सवाल का जवाब नहीं दे पाएंगे. अब सवाल यह है कि जब टीचर को ही अधूरा ज्ञान है, तो वह बच्चे को कहां से पूरा ज्ञान दे पाएंगी. बहरहाल, सरकारी स्कूलों की गिरती शिक्षा व्यवस्था को जल्द से जल्द नहीं सुधारा गया तो इन स्कूलों में पढ़ने वाले गरीब बच्चों का भविष्य कभी उज्जवल नहीं होगा.

Intro:रोहतास। बिहार में शिक्षा का स्तर कितना गिर चुका है। इसका अंदाजा लगाना मुश्किल हो गया है। क्योंकि प्राइमरी स्कूल में पढ़ने वाले क्लास पांचवी के छात्र के पास ज्ञान का बिल्कुल अभाव है।


Body:गौरतलब है कि सरकार शिक्षा के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च करती है। क्योंकि पिछले बजट में राज्य के वित्त मंत्री सुशील कुमार मोदी ने शिक्षक के नाम पर सबसे अधिक बजट पेश किया था। लेकिन बिहार में शिक्षक शिक्षा का क्या हाल है इसकी तस्वीर किसी से नहीं छुपी है। हम बात कर रहे हैं डेहरी प्रखंड के शंकरपुर गांव की जहां प्राथमिक स्कूल में शिक्षा के नाम पर मजाक किया जा रहा है। यहां के पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं को ना तो महीने का नाम ही आता है और ना ही अंग्रेजी में दिनों के नाम पता है। इतना ही नहीं इन बच्चों को पहाड़ा तक भी नहीं आता है। यहां के पढ़ाने वाली महिला टीचर क्लास में बैठकर मौज मरती हैं और बच्चों के द्वारा ही ब्लैक बोर्ड पर गलत गणित बनवा दिया जाता है। लेकिन शिक्षक उसे सुधारने के बजाए उसे उसी तरह छोड़ देते हैं। ब्लैक बोर्ड पर जोड़ और घटाव तक गलत बनाया गया था। जब इस बारे में महिला टीचर से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि बच्चों ने बनाया है। अब सवाल यह है कि अगर बच्चों ने गलत मैथ ब्लैकबोर्ड पर बनाया तो क्लास में मौजूद टीचर उसे सही क्यों नहीं कराया। जबकि टीचर भी इस चीज को मानती हैं कि बच्चों मैं शिक्षा की काफी कमी है। हालांकि स्कूल में मौजूद महिला प्रिंसिपल अपने शिक्षा विभाग के अधिकारी का नाम तक नहीं जानती है और नाही उन्हें जिलाधिकारी के नाम की जानकारी है। अब सवाल यह है कि आखिर जब टीचर को ही अधूरा ज्ञान है तो वह बच्चे को कहां से पूरा ज्ञान दे पाएंगी।


Conclusion:जाहिर है बिहार में गिरते शिक्षा व्यवस्था को जल्द से जल्द सुधारा जाए। वरना बच्चों के लिए लिए काफी खतरनाक साबित हो सकता है और उनके भविष्य भी दांव पर लग सकते हैं।
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