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आखिर कब सुधरेगी सरकारी मदरसों की हालत, लापरवाह शिक्षकों पर है गरीब बच्चों की जिम्मेवारी - rohtas

मदरसे के प्रिंसिपल और यहां के पढ़ाने वाले टीचर अपनी ड्यूटी को लेकर लापरवाह हैं. इस मदरसे में नौ टीचर हैं. लेकिन जब ईटीवी के संवाददाता वहां पहुंचे तो उस वक्त महज दो टीचर ही मदरसे में मौजूद थे.

सरैया मदरसा
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Published : Apr 17, 2019, 10:57 AM IST

रोहतासः सूबे के मुखिया नीतीश कुमार अल्पसंख्यकों को लुभाने में लगे हैं. पिछले दिनों नीतीश कुमार ने मदरसा शिक्षकों के लिए एक बड़ा तोहफा दिया और कहा कि मदरसा के शिक्षकों को सरकारी स्कूल के समान वेतनमान दिया जाएगा. साथ ही सराकर का ये भी दावा है कि सूबे में अल्पसंख्यकों के लिए काफी कुछ किया गया है. लेकिन इन सब के बावजूद सरकारी मदरसे की स्थिति बद से बदतर है.

बदहाल मदरसा और बयान देते प्रिंसिपल

हम बात कर रहे हैं जिला मुख्यालय से तीस किलोमीटर दूर तिलौथू प्रखंड के सरैया मदरसे की. ये मदरसा बिहार स्टेट मदरसा एजुकेशन बोर्ड की तरफ से संचालित होता है. लेकिन इस मदरसे के टीचर लापरवाह नजर आते हैं. क्योंकि यहां ना तो समय से टीचर आते हैं और ना जाते हैं.

समय पर नहीं आते शिक्षक
इसकी पड़ताल करने के लिए हमारे ईटीवी के संवादाता जब मदरसा पहुंचे तो मदरसा के मेन गेट पर ताला जड़ा हुआ था. इसकी खबर जब मदरसा के प्रिंसिपल को लगी तो वह आनन-फानन में मदरसे के मेन गेट की चाबी लेकर दरवाजा खोल मदरसे के अंदर दाखिल हुए. इससे साफ जाहिर होता है कि मदरसे के प्रिंसिपल और यहां के पढ़ाने वाले टीचर अपनी ड्यूटी को लेकर कितने मुस्तैद हैं. इतना ही नहीं इस मदरसे में नौ टीचर हैं. लेकिन इस वक्त महज दो टीचर ही मदरसे में मौजूद थे. हालांकि प्रिंसिपल ने यह भी दावा किया कि यहां रोज मुकम्मल तौर पर पढ़ाई कराई जाती है.

नहीं मिलती फॉर्म भरने की रसीद
इस मदरसे में वोस्तानिया यानी आठवीं तक की पढ़ाई कराई जाती है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि इन बच्चों के फॉर्म भरने के नाम पर कितना पैसा लिया जाता है. मदरसे के प्रिंसिपल ने बताया कि बच्चों को फीस की रसीद पहले से ही नहीं दी जाती है. इसकी जानकारी किसी को नहीं है. मदरसे के प्रिंसिपल बच्चों को इसके बदले में कोई रसीद नहीं देते हैं. अब ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर इन मदरसों की हालत कब सुधरेगी.

रोहतासः सूबे के मुखिया नीतीश कुमार अल्पसंख्यकों को लुभाने में लगे हैं. पिछले दिनों नीतीश कुमार ने मदरसा शिक्षकों के लिए एक बड़ा तोहफा दिया और कहा कि मदरसा के शिक्षकों को सरकारी स्कूल के समान वेतनमान दिया जाएगा. साथ ही सराकर का ये भी दावा है कि सूबे में अल्पसंख्यकों के लिए काफी कुछ किया गया है. लेकिन इन सब के बावजूद सरकारी मदरसे की स्थिति बद से बदतर है.

बदहाल मदरसा और बयान देते प्रिंसिपल

हम बात कर रहे हैं जिला मुख्यालय से तीस किलोमीटर दूर तिलौथू प्रखंड के सरैया मदरसे की. ये मदरसा बिहार स्टेट मदरसा एजुकेशन बोर्ड की तरफ से संचालित होता है. लेकिन इस मदरसे के टीचर लापरवाह नजर आते हैं. क्योंकि यहां ना तो समय से टीचर आते हैं और ना जाते हैं.

समय पर नहीं आते शिक्षक
इसकी पड़ताल करने के लिए हमारे ईटीवी के संवादाता जब मदरसा पहुंचे तो मदरसा के मेन गेट पर ताला जड़ा हुआ था. इसकी खबर जब मदरसा के प्रिंसिपल को लगी तो वह आनन-फानन में मदरसे के मेन गेट की चाबी लेकर दरवाजा खोल मदरसे के अंदर दाखिल हुए. इससे साफ जाहिर होता है कि मदरसे के प्रिंसिपल और यहां के पढ़ाने वाले टीचर अपनी ड्यूटी को लेकर कितने मुस्तैद हैं. इतना ही नहीं इस मदरसे में नौ टीचर हैं. लेकिन इस वक्त महज दो टीचर ही मदरसे में मौजूद थे. हालांकि प्रिंसिपल ने यह भी दावा किया कि यहां रोज मुकम्मल तौर पर पढ़ाई कराई जाती है.

नहीं मिलती फॉर्म भरने की रसीद
इस मदरसे में वोस्तानिया यानी आठवीं तक की पढ़ाई कराई जाती है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि इन बच्चों के फॉर्म भरने के नाम पर कितना पैसा लिया जाता है. मदरसे के प्रिंसिपल ने बताया कि बच्चों को फीस की रसीद पहले से ही नहीं दी जाती है. इसकी जानकारी किसी को नहीं है. मदरसे के प्रिंसिपल बच्चों को इसके बदले में कोई रसीद नहीं देते हैं. अब ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर इन मदरसों की हालत कब सुधरेगी.

Intro:रोहतास। सूबे के मुखिया नीतीश कुमार एक तरफ जहां अल्पसंख्यकों को लुभाने में लगे हैं। लेकिन इन सब के बावजूद सरकारी मदरसे की स्थिति बद से बदतर है।


Body:गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव से पहले पहले नीतीश कुमार अल्पसंख्यकों को साधने के लिए तरह-तरह की लुभावने दे रहे हैं। जहां पिछले दिनों नीतीश कुमार ने मदरसा शिक्षकों के लिए एक बड़ा तोहफा दिया और कहा कि मदरसा के शिक्षकों को वेतनमान का दर्जा दिया जाएगा। लेकिन हकीकत में सरकारी मदरसों की स्थिति बद से बदतर है। हम बात कर रहे हैं जिला मुख्यालय से तीस किलोमीटर दूर तिलौथू प्रखंड के सरैया मदरसे की ये मदरसा बिहार स्टेट मदरसा एजुकेशन बोर्ड की तरफ से संचालित होता है। लेकिन इस मदरसे के टीचर लापरवाह नजर आते हैं क्योंकि यहां ना तो समय से टीचर आते हैं और ना ही समय से टीचर जाते हैं। लिहाज़ा इसकी पड़ताल करने के लिए हमारे ईटीवी के संवादाता जब मदरसा पहुंचे तो मदरसा के मेन गेट पर ताला जड़ा हुआ था। लिहाज़ा इसकी खबर मदरसा के प्रिंसिपल को जब लगी तो वह आनन-फानन में मदरसे के मेन गेट का चाबी लेकर दरवाजा खोल मदरसे के अंदर दाखिल हुए। इससे साफ जाहिर होता है कि मदरसे के प्रिंसिपल और यहां के पढ़ाने वाले टीचर अपनी ड्यूटी को लेकर कितने मुस्तैद हैं। इस मदरसे में वस्तानिया यानी आठवीं तक की पढ़ाई कराई जाती है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है की इन बच्चों के फॉर्म भरने के नाम पर कितना पैसा लिया जाता है इसकी जानकारी किसी को नहीं है। क्योंकि मदरसे के प्रिंसिपल बच्चों को इसके बदले में कोई रसीद नहीं देते हैं। लिहाजा सवाल यह है कि क्या कोई मदरसा या स्कूल बिना रसीद के पैसे कैसे वसूल सकता है। इतना ही नहीं इस मदरसे में नौ टीचर पढ़ाने का काम करते हैं। लेकिन उस वक्त महज दो टीचर ही मदरसे में मौजूद थे। अब ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर इन मदरसों की हालत कब सुधरेगी।


Conclusion:वहीं मदरसे के प्रिंसिपल ने बताया कि बच्चों को फीस की रसीद पहले से ही नहीं दी जाती है। इसके बावजूद बच्चे से फॉर्म भरने के नाम पर पैसा लिया जाता है। हालांकि उन्होंने यह भी साफ किया कि यहां रोज मुकम्मल तौर पर पढ़ाई कराई जाती है।

बाइट। प्रिंसिपल
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