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शिक्षक दिवस स्पेशल: पेंशन के पैसों से नौनिहालों का जीवन संवार रही हैं अर्चना

आज के जमाने में जब लोग पैसे के लिए क्या नहीं कर गुजरते हैं. वहीं, एक ऐसी अवकाश प्राप्त शिक्षिका हैं जो अपने शिष्यों की शिक्षा के लिए पेंशन के पूरे पैसे खर्च कर देती हैं. पढ़ें यह प्रेरक रिपोर्ट.

शिक्षक दिवस स्पेशल
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Published : Sep 5, 2021, 9:57 AM IST

पूर्णिया: गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पांय, बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय. भारतीय संस्कृति में आदि काल से ही शिक्षक को ईश्वर का दर्जा प्राप्त है. गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊंचा है. लिहाजा इस शिक्षक दिवस (Teachers Day) पर गुरु स्मरण के बीच ईटीवी भारत आपको एक शिक्षिका की प्रेरक कहानी बताने जा रहा है. 66 साल की वह शिक्षिका अपने पेंशन के पैसों से महादलित टोलों के नौनिहालों का जीवन रोशन कर रही हैं.

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हम बात कर रहे हैं जिला मुख्यालय से 17 किलोमीटर दूर रानीपतरा स्थित चांदी पंचायत में आने वाले उस महादलित टोले की. जहां मिडिल स्कूल चांदी में प्रधान शिक्षिका के पद से अवकाश प्राप्त कर चुकीं 66 वर्षीय अर्चना देव बीते 6 सालों से नौनिहालों को मुफ्त शिक्षा देकर सैकड़ों जीवन रोशन कर रही हैं. गुरुकुल की तर्ज पर शिक्षिका अर्चना देव बांस की छाव में खुले आसमान के नीचे महादलित टोले के करीब 200 बच्चों में निशुल्क शिक्षा दे रही हैं.

शिक्षिका अर्चना ने सांसारिक भोग-विलासों से दूर होकर जीवन जीने की ठानी और विवाह जीवन से परहेज का फैसला लिया. मध्य विद्यालय चांदी के 42 वषों की सच्ची सेवा के दौरान शिक्षण अधिगम में एक से बढ़कर एक प्रयास किया. हालांकि शिक्षा के प्रति अखंड समर्पण की ये कहानी असल में तब पूरी हुई, जब साल 2015 में अर्चना देव प्रधान शिक्षिका के पद से सेवानिवृत्त हुईं. उसके बाद महादलित टोले के बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए अनूठे गुरुकुल सेवा की शुरुआत की.

ये भी पढ़ें: ये है बिहार की 'जुगाड़ वाली एंबुलेंस', अस्पताल ने मुंह मोड़ा तो चुनना पड़ा ये रास्ता

शिक्षा जगत में सच्ची सेवा के लिए अर्चना देव कई बड़े सम्मान हासिल कर चुकी हैं. साल 2011 में सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) के हाथों शिक्षा में अविस्मरणीय योगदान के लिए राजकीय शिक्षा सम्मान मिला था. साल 2013 में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने शिक्षा में उल्लेखनीय भूमिका के लिए उन्हें पुरस्कृत किया था. 2013 में ही नेपाल सरकार द्वारा शिक्षा सेवा के लिए गोल्ड मेडल व साल 2018 में नेपाल के उपराष्ट्रपति परमानंद मिश्र के हाथों शिक्षा रत्न पुरस्कार मिला.

शिक्षिका अर्चना देव ने बताया कि भले ही उन्होंने शादी नहीं की, लेकिन इस गुरुकुल में पढ़ने वाले महादलित टोले के बच्चे उनकी संतान हैं. उनका कहना है कि महादलित टोले के आर्थिक, सामाजिक और शारीरिक रूप से कमजोर एवं दिव्यांग और अनाथ बच्चे जब तक मुख्य धारा में शामिल होकर अपने सपने को पूरा नहीं कर लेते, तब तक उनकी मुहिम जारी रहेगी.

छात्रा पुष्पलता ने बताया कि शिक्षिका अर्चना अपने पेंशन के सारे रुपये बच्चों की जरूरतें पूरा करने में लगाती हैं. किताब, कॉपी, कलम के अलावा दूसरी जरुरतों को वे समझती हैं. वे कई बच्चों को मैट्रिक व इंटर की पढ़ाई करा रही हैं. इस दौरान परीक्षा फी और रजिस्ट्रेशन फी से जुड़ी सभी जरुरतों को बखूबी पूरा करती हैं. यही वजह है कि सभी बच्चों के लिए महज वे एक शिक्षिका नहीं बल्कि उनके लिए भगवान व उनके अपने पैरेंट्स के सामान हैं.

ये भी पढ़ें: अलर्ट: भागलपुर में फिर डरा रही गंगा, बीते 24 घंटे में जलस्तर में 6 सेंटीमीटर की वृद्धि

पूर्णिया: गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पांय, बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय. भारतीय संस्कृति में आदि काल से ही शिक्षक को ईश्वर का दर्जा प्राप्त है. गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊंचा है. लिहाजा इस शिक्षक दिवस (Teachers Day) पर गुरु स्मरण के बीच ईटीवी भारत आपको एक शिक्षिका की प्रेरक कहानी बताने जा रहा है. 66 साल की वह शिक्षिका अपने पेंशन के पैसों से महादलित टोलों के नौनिहालों का जीवन रोशन कर रही हैं.

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हम बात कर रहे हैं जिला मुख्यालय से 17 किलोमीटर दूर रानीपतरा स्थित चांदी पंचायत में आने वाले उस महादलित टोले की. जहां मिडिल स्कूल चांदी में प्रधान शिक्षिका के पद से अवकाश प्राप्त कर चुकीं 66 वर्षीय अर्चना देव बीते 6 सालों से नौनिहालों को मुफ्त शिक्षा देकर सैकड़ों जीवन रोशन कर रही हैं. गुरुकुल की तर्ज पर शिक्षिका अर्चना देव बांस की छाव में खुले आसमान के नीचे महादलित टोले के करीब 200 बच्चों में निशुल्क शिक्षा दे रही हैं.

शिक्षिका अर्चना ने सांसारिक भोग-विलासों से दूर होकर जीवन जीने की ठानी और विवाह जीवन से परहेज का फैसला लिया. मध्य विद्यालय चांदी के 42 वषों की सच्ची सेवा के दौरान शिक्षण अधिगम में एक से बढ़कर एक प्रयास किया. हालांकि शिक्षा के प्रति अखंड समर्पण की ये कहानी असल में तब पूरी हुई, जब साल 2015 में अर्चना देव प्रधान शिक्षिका के पद से सेवानिवृत्त हुईं. उसके बाद महादलित टोले के बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए अनूठे गुरुकुल सेवा की शुरुआत की.

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शिक्षा जगत में सच्ची सेवा के लिए अर्चना देव कई बड़े सम्मान हासिल कर चुकी हैं. साल 2011 में सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) के हाथों शिक्षा में अविस्मरणीय योगदान के लिए राजकीय शिक्षा सम्मान मिला था. साल 2013 में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने शिक्षा में उल्लेखनीय भूमिका के लिए उन्हें पुरस्कृत किया था. 2013 में ही नेपाल सरकार द्वारा शिक्षा सेवा के लिए गोल्ड मेडल व साल 2018 में नेपाल के उपराष्ट्रपति परमानंद मिश्र के हाथों शिक्षा रत्न पुरस्कार मिला.

शिक्षिका अर्चना देव ने बताया कि भले ही उन्होंने शादी नहीं की, लेकिन इस गुरुकुल में पढ़ने वाले महादलित टोले के बच्चे उनकी संतान हैं. उनका कहना है कि महादलित टोले के आर्थिक, सामाजिक और शारीरिक रूप से कमजोर एवं दिव्यांग और अनाथ बच्चे जब तक मुख्य धारा में शामिल होकर अपने सपने को पूरा नहीं कर लेते, तब तक उनकी मुहिम जारी रहेगी.

छात्रा पुष्पलता ने बताया कि शिक्षिका अर्चना अपने पेंशन के सारे रुपये बच्चों की जरूरतें पूरा करने में लगाती हैं. किताब, कॉपी, कलम के अलावा दूसरी जरुरतों को वे समझती हैं. वे कई बच्चों को मैट्रिक व इंटर की पढ़ाई करा रही हैं. इस दौरान परीक्षा फी और रजिस्ट्रेशन फी से जुड़ी सभी जरुरतों को बखूबी पूरा करती हैं. यही वजह है कि सभी बच्चों के लिए महज वे एक शिक्षिका नहीं बल्कि उनके लिए भगवान व उनके अपने पैरेंट्स के सामान हैं.

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