पूर्णिया: जिद और जुनून कुछ कर गुजरने की हो, तो फिर मंजिल खुद रास्ता दिखाती है. इन पंक्तियों को पूर्णिया निवासी सिमरन (Volleyball Girl Simran) ने सच कर दिखाया है. उसकी बस एक ही जिद थी कि वह एक वॉलीबॉल प्लेयर बने. लिहाजा खेल की बारीकियां सीखने के लिए वह खुद अपनी ट्रेनर बन गई. इस खेल का जुनून उसपर कुछ एसा सवार हुआ कि आगे कुछ और दिखा ही नहीं. खुद को बेहतर वॉलीबॉल प्लेयर बनाने के लिए जी तोड़ मेहनत की और अब वॉलीबॉल स्टेट अंडर-14 टीम में अपनी जगह बना ली है.
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सिमरन ने बनाई टीम में जगह: यह एक ऐसी कहानी है जिसमें एक छात्रा ने अपने अपने जिद की वजह से अपने सपनों की उडान भरी. उस स्कूल गर्ल सिमरन ने जुनून और जज्बे के आगे मुश्किलों ने घुटने टेक दिए. 14 वर्षीय सिमरन ने बताया कि मुझे बस खेलना था. इसके अलावा मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था. इस सपने को पूरा करने के लिए एक टीम की जरूरत थी. हमारे जिले पूर्णिया में वॉलीबॉल के लिए अंडर 14 की टीम भी नहीं थी. तभी मैने ठाना कि अब अपना कैरियर इस खेल में बनाना है.
मेरी जिद्द से मां ने भी दिया साथ: मैंने अपनी मां को बताया कि मुझे इस खेल में अपनी जिंदगी संवारना है. इस जिद्द के कारण मां ने पूरा साथ दिया. इसके साथ ही बखूबी हौसला बढ़ाया. इसके बाद वे घर-घर जाकर टीम के लिए खिलाड़ियों को इकट्ठा करने निकल गई. कई दरवाजे बंद हो गए, वहीं इस खेल में साथ के लिए कई लोगों ने मुझे गले लगाया. जहां असफल होती थी वहीं पर मेरी मां हमारे साथ खड़ी रहती थी. कई लड़कियों के परिवार वालों को समझाती कि मेरी बेटी खेल रही है.
कई लोगों को खेलने के लिए किया प्रोत्साहित: उन्हें किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं होगी. मैं इसकी गारंटी लेती हूं. वॉलीबॉल टीम की चेकलिस्ट में शामिल लड़कियों ने उनसे जुड़ना शुरू किया. स्कूल ग्राउंड से लेकर पुलिस लाइन स्थित प्ले ग्राउंड में उन्होंने प्रैक्टिस शुरू की. उनकी मेहनत और कोशिश सफल हुई. वॉलीबॉल स्टेट अंडर-14 टीम में उनका चयन हुआ. इसके साथ ही सिमरन को अब नेशनल टीम में जगह मिलेगी.
जिलास्तर पर हुआ चयन: सिमरन कहती हैं कि जब मैं पांचवी में पढ़ती थी. तभी से हमें इस खेल में जबरदस्त दिलचस्पी थी. मैं टीवी पर इसके मूव्स देखा करती थी. यूट्यूब से इसकी बारीकियां सीखती रही. इसी का नतीजा रहा कि स्कूल के कलस्टर गेम में सिमरन ने बेहतरीन प्रदर्शन किया. समय बीतने के साथ ही उसने प्रशिक्षण के लिए प्ले ग्राउंड का चयन किया. ट्रेनर से मिली और फिर जिलास्तर पर लड़कियों की टीम खड़ी की. उसके बाद बेगूसराय में जिलास्तरीय मैच में उनका प्रदर्शन जबरदस्त रहा. तभी उनका सेलेक्शन नेशनल के लिए हुआ. वहां से वह जम्मू कश्मीर गई और वहां लाजवाब प्रदर्शन किया. अब सिमरन का सेलेक्शन वॉलीबॉल स्टेट अंडर-14 टीम के लिए हो गया. जिसके बाद न सिर्फ सिमरन बल्कि उनका परिवार फूले नहीं समां रहा.
बेटे और बेटी में फर्क नहीं: सिमरन की मां सरिता कुमारी ने कहा कि मैं बेटे और बेटी में कोई फर्क नहीं करती हूं. हमें यहीं लगता है कि जो काम बेटा कर सके, वह काम बेटी भी कर सकती है. हमारी बेटी को वॉलीबॉल में करियर बनाना था. मैंने और मेरे पति अमोद कुमार सिंह ने कभी इसे मना नहीं किया. इस छूट की वजह से आज रिजल्ट सभी लोगों के सामने है. इसलिए मैं सभी मां से अपील करना चाहती हूं कि खेल में भी बच्चियां करियर बना सकती है. बस आपके सपोर्ट की जरूरत है. बेटियों को उड़ान भरने से नहीं रोकें, यह आपका नाम बेटे जैसी ही रोशन करेगी.
" मेरी नजर में बेटे और बेटी में कोई अंतर नहीं है. हमें यहीं लगता है कि जो काम बेटा कर सके, वह काम बेटी भी कर सकती है. हमारी बेटी को वॉलीबॉल में करियर बनाना था. मैंने और मेरे पति अमोद कुमार सिंह ने कभी इसे मना नहीं किया".-सरिता कुमारी, सिमरन की मां