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पूर्णिया: किसानों पर लॉकडाउन और मौसम की दोहरी मार, 5 साल पीछे गया मक्के का बाजार

लॉकडाउन और बेमौसम बारिश के कारण मक्के के किसानों को काफी क्षति हुई है. साथ ही मक्के का समर्थन मूल्य घटकर महज 1100-1200 रुपये प्रति क्विंटल पर सिमट गया, जिससे बची-खुची उम्मीदें भी पूरी तरह समाप्त हो गई.

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Published : May 24, 2020, 4:32 PM IST

purnea
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पूर्णिया: जिले को देश भर में मक्का उत्पादन के लिए जाना जाता है. यहां अधिकांश भू-भाग पर मक्के की फसल होती है. सरकारी आंकड़े के मुताबिक देश में 30 फीसदी से भी अधिक मक्के का उत्पादन सीमांचल और कोसी के 6 जिलों से होता है. इसमें जिले के किसानों की भागीदारी तकरीबन 7 फीसदी है. हालांकि इस बार लॉकडाउन, आंधी और बारिश ने किसानों की फसलों को पूरी तरह तबाह कर दिया है, इस कारण किसान चिंतित हैं.

दरअसल मक्के की खेती करने वाले किसानों की मानें तो इस किसानों को कृषि विभाग से तो भरपूर सहयोग मिला, लेकिन जिस पर सबसे ज्यादा उम्मीदें टिकीं थी. उस मौसम ने ही साथ छोड़ दिया. जिन दो महीनों में मक्के की फसलों की कटाई की जाती है. वे घरों में कैद रहें. जब छूट मिली मजदूरों ने फसलों की कटाई से साफ मना कर दिया. आंधी के कारण मक्का की फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गई.

Maize farming
मक्के की फसल बर्बाद

35 हजार किसान प्रभावित
सरकारी आंकड़े के मुताबिक जिले के सभी 14 प्रखंड बारिश और आंधी से पूरी तरह प्रभावित हैं. वहींं, 40 फीसदी से भी अधिक क्षति का कृषि विभाग ने अनुमान जताया है. इनमें बायसी, कसबा, रुपौली, डगरुआ, पूर्णिया पूर्व ,बनमनखी, धमदाहा और अमौर शामिल हैं. इन प्रखण्डों में ज्यादातर किसानों की फसलें पूरी तरह बर्बाद हो चुकी है. इस कारण मुनाफे की सारी गुंजाईश समाप्त हो चुकी है. वहीं, सरकारी आंकड़ों के मुताबिक फसल क्षति के आवेदनों के मुताबिक तकरीबन 35 हजार किसान इससे प्रभावित हैं.

Maize farming
फसल बर्बाद होने से किसान परेशान

औने-पौने दाम पर बिक रही किसानों की फसल
किसानों का कहना है कि ये मुसीबत टली भी नहीं थी कि मक्के का समर्थन मूल्य घटकर महज 1100-1200 रुपए प्रति क्विंटल पर सिमट गया, जिससे बची-कूची उम्मीदें भी पूरी तरह समाप्त हो गई. बाजार में उनके मक्के को लॉकडाउन की बेबसी और मौसम की मार के बाद फसलों की गुणवत्ता का हवाला देकर औने-पौने दामों पर मक्के को खरीदा जा रहा है.

देखें रिपोर्ट

'किसानों को दिया जाएगा अनुदान'
कृषि पदाधिकारी शंकर कुमार झा ने बताया कि इस बार 59 हजार हेक्टेयर में मक्के की खेती के आंकड़े हैं. वहींं औसतन उत्पादन के आंकड़े 105 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. उत्पादन की क्षमता 6-7 लाख टन की है, लेकिन इस बार मक्के की 9150 हेक्टेयर में भारी क्षति हुई है. अब तक 33500 से अधिक किसानों ने कृषि इनपुट अनुदान के तहत मक्के की फसल क्षति के लिए ऑनलाइन आवेदन भरा है. सैकड़ों किसानों की शिकायत के बाद 25 मई तक आवेदन की प्रक्रिया में इजाफा किया गया है.

देशभर में मक्के के उत्पादन का तकरीबन 30 फीसद सीमांचल और कोसी के 6 जिलों से होता है. इसमें जिले की भागीदारी 7 फीसद के करीब है. वहींं, सीमांचल और कोसी के इन जिलों में बीते कुछ सालों में पूर्णिया ने मक्के के उत्पादन में 59 हजार हेक्टेयर के बढ़त कायम कर रखी है. प्रति हेक्टेयर यह आंकड़ा 80 -150 क्विंटल के करीब है.

समर्थन मूल्य में भारी गिरावट
बीते 6 सालों के मक्के के समर्थन मूल्य पर एक नजर दौड़ाए तो- 2015 में - (1000- 1150 ) रुपए प्रति क्विंटल, 2016 में- (1150-1250), 2017 में (1250-1400), 2018 में (1500- 1600), 2019 में (1800-2000) 2020 में अब (लुढ़ककर 1000-1100) यानी सीधे 5 साल पीछे (1000- 1150 ) रुपए प्रति क्विंटल पर पहुंच गया है.

पूर्णिया: जिले को देश भर में मक्का उत्पादन के लिए जाना जाता है. यहां अधिकांश भू-भाग पर मक्के की फसल होती है. सरकारी आंकड़े के मुताबिक देश में 30 फीसदी से भी अधिक मक्के का उत्पादन सीमांचल और कोसी के 6 जिलों से होता है. इसमें जिले के किसानों की भागीदारी तकरीबन 7 फीसदी है. हालांकि इस बार लॉकडाउन, आंधी और बारिश ने किसानों की फसलों को पूरी तरह तबाह कर दिया है, इस कारण किसान चिंतित हैं.

दरअसल मक्के की खेती करने वाले किसानों की मानें तो इस किसानों को कृषि विभाग से तो भरपूर सहयोग मिला, लेकिन जिस पर सबसे ज्यादा उम्मीदें टिकीं थी. उस मौसम ने ही साथ छोड़ दिया. जिन दो महीनों में मक्के की फसलों की कटाई की जाती है. वे घरों में कैद रहें. जब छूट मिली मजदूरों ने फसलों की कटाई से साफ मना कर दिया. आंधी के कारण मक्का की फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गई.

Maize farming
मक्के की फसल बर्बाद

35 हजार किसान प्रभावित
सरकारी आंकड़े के मुताबिक जिले के सभी 14 प्रखंड बारिश और आंधी से पूरी तरह प्रभावित हैं. वहींं, 40 फीसदी से भी अधिक क्षति का कृषि विभाग ने अनुमान जताया है. इनमें बायसी, कसबा, रुपौली, डगरुआ, पूर्णिया पूर्व ,बनमनखी, धमदाहा और अमौर शामिल हैं. इन प्रखण्डों में ज्यादातर किसानों की फसलें पूरी तरह बर्बाद हो चुकी है. इस कारण मुनाफे की सारी गुंजाईश समाप्त हो चुकी है. वहीं, सरकारी आंकड़ों के मुताबिक फसल क्षति के आवेदनों के मुताबिक तकरीबन 35 हजार किसान इससे प्रभावित हैं.

Maize farming
फसल बर्बाद होने से किसान परेशान

औने-पौने दाम पर बिक रही किसानों की फसल
किसानों का कहना है कि ये मुसीबत टली भी नहीं थी कि मक्के का समर्थन मूल्य घटकर महज 1100-1200 रुपए प्रति क्विंटल पर सिमट गया, जिससे बची-कूची उम्मीदें भी पूरी तरह समाप्त हो गई. बाजार में उनके मक्के को लॉकडाउन की बेबसी और मौसम की मार के बाद फसलों की गुणवत्ता का हवाला देकर औने-पौने दामों पर मक्के को खरीदा जा रहा है.

देखें रिपोर्ट

'किसानों को दिया जाएगा अनुदान'
कृषि पदाधिकारी शंकर कुमार झा ने बताया कि इस बार 59 हजार हेक्टेयर में मक्के की खेती के आंकड़े हैं. वहींं औसतन उत्पादन के आंकड़े 105 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. उत्पादन की क्षमता 6-7 लाख टन की है, लेकिन इस बार मक्के की 9150 हेक्टेयर में भारी क्षति हुई है. अब तक 33500 से अधिक किसानों ने कृषि इनपुट अनुदान के तहत मक्के की फसल क्षति के लिए ऑनलाइन आवेदन भरा है. सैकड़ों किसानों की शिकायत के बाद 25 मई तक आवेदन की प्रक्रिया में इजाफा किया गया है.

देशभर में मक्के के उत्पादन का तकरीबन 30 फीसद सीमांचल और कोसी के 6 जिलों से होता है. इसमें जिले की भागीदारी 7 फीसद के करीब है. वहींं, सीमांचल और कोसी के इन जिलों में बीते कुछ सालों में पूर्णिया ने मक्के के उत्पादन में 59 हजार हेक्टेयर के बढ़त कायम कर रखी है. प्रति हेक्टेयर यह आंकड़ा 80 -150 क्विंटल के करीब है.

समर्थन मूल्य में भारी गिरावट
बीते 6 सालों के मक्के के समर्थन मूल्य पर एक नजर दौड़ाए तो- 2015 में - (1000- 1150 ) रुपए प्रति क्विंटल, 2016 में- (1150-1250), 2017 में (1250-1400), 2018 में (1500- 1600), 2019 में (1800-2000) 2020 में अब (लुढ़ककर 1000-1100) यानी सीधे 5 साल पीछे (1000- 1150 ) रुपए प्रति क्विंटल पर पहुंच गया है.

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