पूर्णिया: कोरोना वायरस को लेकर पूरे देश में लॉक डाउन हैं. इस वजह से बड़ी संख्या में लोग दिल्ली जैसे बड़े शहरों से निकलकर वापस बिहार की और लौटने लगे. इसके बाद संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए बिहार सरकार ने बिहार के बाहर से वापस आने वाले लोगों के लिए क्वारेंटाइन सेंटर बनाने और बाहर से आने वाले लोगों को इन सेंटरों मे 14 दिनों तक रखने का निर्देश जारी किया. हालांकि, सरकार ने अपने आदेश में क्वारेंटाइन सेंटर को सभी सुविधाओं से लैस होने की बात कही थी. लेकिन, धरातल पर सरकार के दावे कुछ और ही नजर आते हैं.
दालकोला से 1500 प्रवासी बिहारी आए वापस
सरकारी आंकड़ो के अनुसार 22 मार्च से अब तक बिहार में 1500 से भी अधिक प्रवासी मजदूर देश के दूसरे राज्यों से वापस आ चुके हैं. इनमें अधिकांश दिल्ली,पश्चिम बंगाल ,पंजाब, राजस्थान, हैदराबाद, कर्नाटक ,केरल, गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र समेत कई दूसरे अन्य राज्यों से शामिल हैं. प्रदेश के सरकार के निर्देश पर गौर करें तो सभी मजदूरों की स्क्रीनिंग और टेस्टिंग के बाद फिट पाए जाने के बावजूद उन्हें क्वारंटाइन सेंटर में रखा जना था. लेकिन, ईटीवी भारत की पड़ताल में सभी सरकारी दावे खोखले साबित हुए. शुक्रवार को ईटीवी भारत की टीम जिला मुख्यालय से तकरीबन 35 किलोमीटर दूर पश्चिम बंगाल की सीमा से लगे बायसी प्रखंड के कवैया पंचायत स्थित पहुंची. यह केंद्र सीमा आपदा राहत केंद्र है. यहां पर प्रवासी बिहारियों को अवासन और भोजन, रेगुलर चेकअप की सुविधा की बात कही जा रही थी. लेकिन, सेंटर पर सन्नाटा पसरा नजर आया.
एक भी लोग नहीं था क्वारंटाइन सेंटर में मौजूद
सरकारी आंकड़े के मुताबिक 15 सौ प्रवासी बिहारी मजदूर पश्चिम बंगाल दालकोला चेकपोस्ट से वापस बिहार आए थे. राज्य सरकार के निर्देश के मुताबिक यहां स्क्रीनिंग और टेस्टिंग के बाद सभी मजदूरों को रखा 14 दिनों तक रखा जाना था. केंद्र पर भोजन के लिए रसोइए और मेडिकल चेकअप के लिए मेडिकल टीम भी मौजूद होनी चाहिए थी. लेकिन, क्वारेंटाइन सेंटर पर कहीं कोई प्रवासी मजदूर और कैंप अधिकारी नजर नहीं आए.
इस बाबत सीमा आपदा राहत कैम्प में तैनात होमगार्ड के जवानों ने बताया कि यहां प्रवासी बिहारी तो आते हैं. लेकिन, किसी को एक दिन के लिए भी इस क्वारेंटाइन सेंटर में रखा नहीं गया है. मजदूरों को लेकर एक बस आती है और उसे लेकर वापस चली जाती है. इस दौरान उनके साथ मेडिकल टीम रहती है. प्रवासी बिहारीयों की बसें खुलते ही कैंप में तैनात सभी अधिकारी भी यहां से निकल जाते हैं.