पूर्णियाः लॉकडाउन में दूसरे राज्यों से प्रदेश लौटे प्रवासी मजदूरों के लिए शुरू की गई मत्स्य पालन की केज कल्चर तकनीक ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है. इस तकनीक के तहत पैगनिसियस और सिल्वर कार्प मछलियां विकसित की जा रही है. बाजारों में इन उन्नत नस्ल की मछलियों की डिमांड भी काफी है. एक तिहाई मछली की बिक्री से लागत का 50 फीसदी निकल जा रहा है. मत्स्य विभाग के मुताबिक सभी केजों से 20 लाख के मुनाफे का अनुमान है. इस मुनाफे से गदगद मछुआरे सरकार का शुक्रिया अदा करते नहीं थक रहे हैं.
'12 लाख लागत 40 लाख मुनाफा'
जिले के डगरुआ प्रखंड स्थित दरियापुर गांव से लगे चंदेश्वरी जलकर में शुरू किए गए केज कल्चर तकनीक इससे जुड़े दो दर्जन मछुआरों को मोटा मुनाफा दे रही है. उत्पादन शुरू करने के एक महीने बाद अधिकांश मछलियां 800 ग्राम की हो चुकी हैं. मछुआरों के मुताबिक एक तिहाई हिस्से की बिक्री से ही लागत के आधे रुपए हाथ में आ जाते हैं. केज कल्चर में विकसित किए गए 6 लाख रुपए की मछलियों की बिक्री अब तक हो चुकी है. लिहाजा उत्पादित 21 क्विंटल मछलियों की बिक्री से कम से कम 40 लाख के मुनाफे का अनुमान है.
स्थानीय बाजार में मछली की है भारी मांग
मछुआरे बताते हैं कि इस मुनाफे को धंधे से जुड़े 18 मछुआरों के बीच बांटा जाएगा. यह मुनाफा लागत के 12 लाख रुपए को छोड़कर है. उन्होंने कहा कि स्थानीय बाजार में ही इन उन्नत पैगनिसियस और सिल्वर कॉर्प मछलियों की इतनी भारी डिमांड है कि मांग के बावजूद जिले और राज्य से बाहर इसकी सप्लाई नहीं हो पा रही है. आलम यह है की अधिकांश खरीदार खुद जलकर तक पंहुच रहे हैं. लिहाजा ट्रांसपोर्ट का खर्च भी शून्य है. यही वजह है कि इस तकनीक से इन्हें उम्मीद से अधिक मुनाफा हो रहा है. वहीं खरीदारों की मानें मछलियों का बेहतर स्वाद उन्हें इसकी ओर खींच लाता है.
सीएम को शुक्रिया कहना नहीं भूले किसान
गौरतलब है कि लॉकडाउन की अवधि में दूसरे राज्यों से प्रदेश लौटे मजदूरों को सरकार की विभिन्न योजनाओं से जोड़ा गया. इसी में एक मत्स्य पालन की केज कल्चर तकनीक भी शामिल है. इसका मकसद कोरोना काल में दूसरे राज्यों से लौटे मजदूरों को स्थानीय स्तर पर रोजगार का अवसर उपलब्ध कराना और इनके जीवन स्तर में सुधार लाना है. लिहाजा योजना का लाभ पाकर मछुआरे काफी खुश हैं. ऐसे में मछुआरे सीएम का शुक्रिया अदा करना भी नहीं भूल रहे हैं.