पूर्णिया: शनिवार को जिले में बड़े ही धूमधाम से मिथिला संस्कृति का प्रमुख पर्व चौठचंद्र मनाया गया. दिन भर के निर्जला व्रत के बाद शाम होते ही घर की महिलाएं एक जगह जमा हुई. भगवान गणेश और उदीयमान चंद्रमा की पूजा-अर्चना की. चौठचंद्र पर्व से जुड़ी पौराणिक कथाओं का पाठ किया. पारंपरिक गीत गाकर पूरे विधि-विधान से ईश्वर की उपासना की गई.
करते हैं चंद्रमा की पूजा- अर्चना
दरअसल छठ में जिस तरह भगवान भास्कर की उपासना की जाती है. ठीक उसी तरह गणेश चतुर्थी को मनाया जाने वाला यह पर्व चौठचंद्र एक ऐसा त्योहार है, जिसमें चांद की पूजा की जाती है. दरसअल यह पूर्व बप्पा के आगमन की खुशी के लिए मिथिलांचल, सीमांचल और कोसी के इलाके में मनाया जाता है.
घर की सुख-समृद्धि के लिए रखा जाता है व्रत
व्रतियों ने बताया कि सूर्यास्त और चंद्रोदय के समय व्रती घर के आंगन में सबसे पहले कच्चे चावल को पीसकर रंगोली बनाती हैं. जिस पर पूजा-पाठ की सामग्री रखकर भगवान गणपति और चांद की पूजा की परंपरा है. जिसे घर की बुजुर्ग महिलाएं निभाती हैं. घर की बुजुर्ग स्त्री आंगन में बांस के बने बर्तन में सभी पूजन सामग्री रखकर चंद्रमा को अर्पित करती हैं. वहीं घर की अन्य महिला सदस्य पारंपरिक गीत गाकर भगवान गणपति और चंद्रमा की आराधना करती हैं.
इसी रोज भगवान गणपति ने चंद्रमा को दिया था श्राप
व्रत से जुड़ी मान्यताओं के पीछे ऐसी कहानियां हैं कि चांद को इसी दिन भगवान गणपति ने श्राप दिया था. इस कारण इस दिन चांद को देखने से कलंक लगने का भय होता है. कहा जाता है कि गणेश को देख कर चांद ने अपनी सुंदरता पर घमंड करते हुए उनका मजाक उड़ाया था. इस पर भगवान गणेश ने क्रोधित होकर उसे श्राप दिया कि उस चांद को समाज से कल कलंकित होना पड़ेगा. जिसके बाद चांद लज्जित होने लगा और श्राप से मुक्ति पाने के लिए भादो के चतुर्थी तिथि को गणेश पूजा की. जिसके बाद भगवान गणेश ने चंद्रमा को कलंक से मुक्त किया. तब से मिथिला परंपरा का यह पर्व सीमांचल और कोसी में मनाया जाता रहा है.
उत्साह में डूबे नजर आए घर के सभी सदस्य
हर साल की तरह ही महिलाओं ने पूरे विधि विधान के साथ चौठचंद्र का त्योहार मनाया. वहीं महिला सदस्य से लेकर पुरुष सदस्य नए और रंगीले वस्त्रों में सजे-संवरे नजर आए. इस दौरान घर के बड़े-बुजुर्गों से लेकर बच्चें तक खासे उत्साहित दिखे. हालांकि इस बार साफ-तौर पर त्योहार पर कोरोना की मार दिखाई पड़ी. सामुदायिक जुटान के बजाए सभी अपने-अपने घरों में यह त्योहार मनाए.