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शिक्षक दिवस विशेष : सैकड़ों जिंदगियां रोशन कर रही हैं अर्चना देव, देश-विदेश तक मिल चुका है सम्मान - महादलित में शिक्षा

गुरुकुल के तर्ज पर शिक्षिका अर्चना देव बांस के वृक्ष की छाव में खुले आसमान के नीचे महादलित टोले के 200 के करीब बच्चों के बीच निशुल्क शिक्षा का अलख बिखेड़ रही हैं. शिक्षिका अर्चना देव ने बताया कि भले ही उन्होंने शादी नहीं की. लेकिन इस गुरुकुल में पढ़ने वाले महादलित टोले के बच्चे उनकी संतान हैं.

Archana Dev
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Published : Sep 5, 2020, 5:50 PM IST

पूर्णिया: भारतीय संस्कृति में आदि काल से ही शिक्षक को ईश्वर का दर्जा प्राप्त है. ऐसा कहा जाता हैं कि गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊंचा है. शिक्षिका की प्रेरणाओं से भरी ऐसी ही एक कहानी पूर्णिया से सामने आई है. जहां 65 साल की एक शिक्षिका पेंशन के रुपये के सहारे महादलित टोलों के नौनिहालों का जीवन रोशन कर रही हैं.

महादलित टोले में शिक्षा की अलख
हम बात कर रहे हैं जिला मुख्यालय से 17 किलोमीटर दूर जिले के रानीपतरा स्थित चांदी पंचायत में आने वाले उस महादलित टोले की है. जहां मिडिल स्कूल चांदी में प्रधान शिक्षिका के पद से अवकाश प्राप्त कर चुकी 65 वर्षीय अर्चना देव बीते 4 सालों से नौनिहालों को मुफ्त शिक्षा देकर सैकड़ों जीवन रोशन कर रही हैं. गुरुकुल की तर्ज पर शिक्षिका अर्चना देव बांस के वृक्ष की छाव में खुले आसमान के नीचे महादलित टोले के 200 के करीब बच्चों के बीच निशुल्क शिक्षा का अलख जला रही हैं.

अर्चना देव, शिक्षिका
अर्चना देव, शिक्षिका

शिष्य सेवा के लिए नहीं की शादी
शिक्षिका अर्चना ने सांसारिक भोग-विलासों से दूर होकर जीवन जीने की ठानी और विवाह जीवन से परहेज का फैसला लिया. मध्य विद्यालय चांदी के 42 वषों की सच्ची सेवा के दौरान शिक्षण अधिगम में एक से बढ़कर एक प्रयास किया. हालांकि शिक्षा के प्रति अखंड समर्पण की ये कहानी असल में तब पूरी हुई, जब साल 2015 में अर्चना देव प्रधान शिक्षा के पद से सेवानिवृत्त हुई और महादलित टोले के बच्चों को शिक्षा के मुख्य धारा से जोड़ने के लिए अनूठे गुरुकुल सेवा की शुरुआत की.

बांस के वृक्ष की छाव में गुरुकुल
वृक्ष की छाव में गुरुकुल

राष्ट्रपति पुरस्कार से लेकर नेपाल रत्न का सफर
शिक्षा जगत में सच्ची सेवा के लिए अर्चना देव कई बड़े सम्मान हासिल कर चुकी हैं. साल 2011 में सीएम नीतीश कुमार के हाथों शिक्षा में अविस्मरणीय योगदान के लिए राजकीय शिक्षा सम्मान मिला. तो वहीं, साल 2013 में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने शिक्षा में उल्लेखनीय भूमिका के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार दिया. इसके बाद 2013 में ही नेपाल सरकार द्वारा शिक्षा सेवा के लिए गोल्ड मेडल व साल 2018 में नेपाल के उपराष्ट्रपति परमानंद मिश्र के हाथों शिक्षा रत्न पुरस्कार मिला.

क्या कहती हैं शिक्षिका अर्चना देव
शिक्षिका अर्चना देव ने बताया कि भले ही उन्होंने शादी नहीं की. लेकिन इस गुरुकुल में पढ़ने वाले महादलित टोले के बच्चे उनकी संतान हैं. उनका कहना है कि महादलित टोले के आर्थिक, सामाजिक और शारीरिक रूप से कमजोर होने के साथ ही दिव्यांग और अनाथ बच्चें जब तक मुख्य धारा में शामिल होकर अपने सपने को पूरे नहीं कर लेते. तब तक उनकी मुहिम जारी रहेगी.

देखें रिपोर्ट

पेंशन के सारे रुपये बच्चों पर करती हैं खर्च
छात्रा पुष्पलता ने बताया कि शिक्षिका अर्चना अपने पेंशन के सारे रुपये बच्चों की जरूरतें पूरा करने में लगाती हैं. किताब-कॉपी, कलम के अलावा दूसरे जरूरतों को वे भली-भांति समझती हैं. वे कई बच्चों को मैट्रिक व इंटर की पढ़ाई करा रही हैं. इस दौरान परीक्षा फी और रजिस्ट्रेशन फी से जुड़ी सभी जरूरतों को बखूबी पूरा कर रही हैं. यही वजह है कि सभी बच्चों के लिए महज वे एक शिक्षिका नहीं बल्कि उनके लिए कोई भगवान व उनके अपने पैरेंट्स के सामान हैं.

पूर्णिया: भारतीय संस्कृति में आदि काल से ही शिक्षक को ईश्वर का दर्जा प्राप्त है. ऐसा कहा जाता हैं कि गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊंचा है. शिक्षिका की प्रेरणाओं से भरी ऐसी ही एक कहानी पूर्णिया से सामने आई है. जहां 65 साल की एक शिक्षिका पेंशन के रुपये के सहारे महादलित टोलों के नौनिहालों का जीवन रोशन कर रही हैं.

महादलित टोले में शिक्षा की अलख
हम बात कर रहे हैं जिला मुख्यालय से 17 किलोमीटर दूर जिले के रानीपतरा स्थित चांदी पंचायत में आने वाले उस महादलित टोले की है. जहां मिडिल स्कूल चांदी में प्रधान शिक्षिका के पद से अवकाश प्राप्त कर चुकी 65 वर्षीय अर्चना देव बीते 4 सालों से नौनिहालों को मुफ्त शिक्षा देकर सैकड़ों जीवन रोशन कर रही हैं. गुरुकुल की तर्ज पर शिक्षिका अर्चना देव बांस के वृक्ष की छाव में खुले आसमान के नीचे महादलित टोले के 200 के करीब बच्चों के बीच निशुल्क शिक्षा का अलख जला रही हैं.

अर्चना देव, शिक्षिका
अर्चना देव, शिक्षिका

शिष्य सेवा के लिए नहीं की शादी
शिक्षिका अर्चना ने सांसारिक भोग-विलासों से दूर होकर जीवन जीने की ठानी और विवाह जीवन से परहेज का फैसला लिया. मध्य विद्यालय चांदी के 42 वषों की सच्ची सेवा के दौरान शिक्षण अधिगम में एक से बढ़कर एक प्रयास किया. हालांकि शिक्षा के प्रति अखंड समर्पण की ये कहानी असल में तब पूरी हुई, जब साल 2015 में अर्चना देव प्रधान शिक्षा के पद से सेवानिवृत्त हुई और महादलित टोले के बच्चों को शिक्षा के मुख्य धारा से जोड़ने के लिए अनूठे गुरुकुल सेवा की शुरुआत की.

बांस के वृक्ष की छाव में गुरुकुल
वृक्ष की छाव में गुरुकुल

राष्ट्रपति पुरस्कार से लेकर नेपाल रत्न का सफर
शिक्षा जगत में सच्ची सेवा के लिए अर्चना देव कई बड़े सम्मान हासिल कर चुकी हैं. साल 2011 में सीएम नीतीश कुमार के हाथों शिक्षा में अविस्मरणीय योगदान के लिए राजकीय शिक्षा सम्मान मिला. तो वहीं, साल 2013 में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने शिक्षा में उल्लेखनीय भूमिका के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार दिया. इसके बाद 2013 में ही नेपाल सरकार द्वारा शिक्षा सेवा के लिए गोल्ड मेडल व साल 2018 में नेपाल के उपराष्ट्रपति परमानंद मिश्र के हाथों शिक्षा रत्न पुरस्कार मिला.

क्या कहती हैं शिक्षिका अर्चना देव
शिक्षिका अर्चना देव ने बताया कि भले ही उन्होंने शादी नहीं की. लेकिन इस गुरुकुल में पढ़ने वाले महादलित टोले के बच्चे उनकी संतान हैं. उनका कहना है कि महादलित टोले के आर्थिक, सामाजिक और शारीरिक रूप से कमजोर होने के साथ ही दिव्यांग और अनाथ बच्चें जब तक मुख्य धारा में शामिल होकर अपने सपने को पूरे नहीं कर लेते. तब तक उनकी मुहिम जारी रहेगी.

देखें रिपोर्ट

पेंशन के सारे रुपये बच्चों पर करती हैं खर्च
छात्रा पुष्पलता ने बताया कि शिक्षिका अर्चना अपने पेंशन के सारे रुपये बच्चों की जरूरतें पूरा करने में लगाती हैं. किताब-कॉपी, कलम के अलावा दूसरे जरूरतों को वे भली-भांति समझती हैं. वे कई बच्चों को मैट्रिक व इंटर की पढ़ाई करा रही हैं. इस दौरान परीक्षा फी और रजिस्ट्रेशन फी से जुड़ी सभी जरूरतों को बखूबी पूरा कर रही हैं. यही वजह है कि सभी बच्चों के लिए महज वे एक शिक्षिका नहीं बल्कि उनके लिए कोई भगवान व उनके अपने पैरेंट्स के सामान हैं.

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