पूर्णिया: महान कथाकार फणीश्वरनाथ रेणु का जन्म 4 मार्च 1921 को बिहार के पूर्णिया जिले के औराही हिंगना गांव में हुआ था. हालांकि विभाजन के बाद रेणु का ये गांव पूर्णिया से कटकर अररिया जिले के फारबिसगंज क्षेत्र में चला गया. रेणु की रचनाओं में आम आदमी और गांवों का जीवनचरित्र आईने की तरह झलकता है.
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स्वाधीनता संग्राम में लिया हिस्सा
आंचलिकता और सामाजिक यथार्थ से फणीश्वरनाथ रेणु की रचनाएं भरी पड़ी हैं. कहते हैं कि रेणु आंचलिकता का प्रधान क्षेत्र तात्कालीन पूर्णिया जिला था. जो बंगाल और नेपाल की संस्कृति का सम्मिश्रण है. यही वजह भी रही महान कथा सम्राट रेणु की प्रारंभिक शिक्षा अररिया जिले के फारबिसगंज में हुई. वहीं, इसके ठीक बाद वे नेपाल चले गए. वहां विराट नगर आदर्श विद्यालय से मैट्रिक परीक्षा पास की. काशी हिंदू विश्वविद्यालय से इंटरमीडिएट में उत्तीर्ण हुए और 1942 में गांधीजी के आह्वान पर स्वाधीनता संग्राम में कूद पड़े.
आंचलिकता के जादूगर रेणु
हालांकि, आंचलिकता के जादूगर फणीश्वरनाथ रेणु से जुड़ी अनसुनी कहानियां जानने ईटीवी भारत की टीम रेणु की 7 संतानों में से एक सबसे छोटी बेटी वाहिदा राय के पास पहुंची. पूर्णिया कटिहार सीमा पर बसे कवैया गांव में ब्याही वाहिदा कहती हैं कि पैतृक गांव औराही हिंगना में रेणु को लोग फनीश्वरा कहकर पुकारते थे. वो और उनके 6 अन्य भाई बहन उन्हें बाबूजी कहकर पुकारते थे.
माटी और परिवार से जुड़े थे रेणु
वाहिदा ने बताया कि माटी और परिवार से जुड़े होने के कारण वे अक्सर औराही आते थे. कंधे पर लदे थैले में खूब सारी टॉफियां होती थी, जिसे वे बच्चों के बांटते आते थे. वाहिदा बताती हैं के वे इसलिए गांव के बच्चों के बीच पटना वाले दादा कहकर पुकारे जाते थे.
फणीश्वरनाथ ने की थी 3 शादियां
उन्होंने बताया कि फणीश्वरनाथ रेणु ने 3 शादियां की थी. उनकी पहली शादी कटिहार के हसनगंज के बलुआ में रहने वाली रेखा देवी से हुई. पहली पत्नी के देहांत के बाद उनकी दूसरी शादी भी कटिहार के हसनगंज प्रखंड में रहने वाली पद्मा रेणु से हुई, जिनसे उन्हें 7 संतानें थी. बाद में उन्होंने लतिका रेणु के साथ शादी रचाई, लतिका पीएमसीएच में नर्स थी. हालांकि, लतिका से इन्हें कोई संतान नहीं थी.
पत्नी पद्मा से था ज्यादा लगाव
वाहिदा कहती हैं कि रेणु तीनों पत्नियों में पद्मा रेणु के अधिक निकट थे. कटिहार के महमदिया गांव की रहने वाली पद्मा फणीश्वरनाथ रेणु की दूसरी पत्नी थी. जिसने उन्हें 3 बेटे और 4 बेटियां थी. तीनों बहनों में वो सबसे छोटी थी. भाइयों में सबसे बड़े पदम्पराग राय बेनु थे. जो अररिया के फारबिसगंज से पूर्व विधायक भी रह चुके हैं.
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सात संतानों के पिता थे रेणु
नवनीता सिन्हा रेणु की दूसरी संतान, निवेदिता तीसरी, अपराजिता राय अप्पू चौथी, अन्नपूर्णा राय पांचवी तो खुद वहीदा राय बहनों में सबसे छोटी और छठी संतान थी. जबकि दक्षिणेश्वर प्रसाद राय सभी 4 भाइयों में सबसे छोटे और आखिरी संतान थे.
''रेणु को औराही हिंगना से बेहद लगाव था. वे लाख व्यस्तता के बाद भी हर 6 माह पर गांव आया करते थे. उनके गांव आने की खबर जैसे ही गांवों में गूंजती उनके भाई बहनों के साथ ही गांव के बच्चे 4 किलोमीटर दूर मझेली जा पहुंचते थे. हाथ में थैली लादे यहां से वो पैदल घर तक आते और बच्चों से बातें करते थे. टॉफियां बांटती वो तस्वीर आज भी आंखों के सामने बोल पड़ती हैं''- वहीदा राय, रेणु की छोटी बेटी
'मारे गए गुलफाम' पर बनी फिल्म तीसरी कसम
वे कहती हैं कि 'मारे गए गुलफाम' जिस पर बाद में गीतकार शैलेंद्र ने बासु भट्टाचार्य के निर्देशन में फिल्म तीसरी कसम बनाई. जब इसके फिल्मांकन से जुड़ा प्रस्ताव निर्देशक ने रेणु के समक्ष रखा, तो उन्होंने बगैर देरी के औराही हिंगना को चुना. जिसके बाद फिल्म तीसरी कसम की शूटिंग औराही हिंगना में शुरू हुई. फिल्म में रेणु के वास्तविक घर, गांव और खेत खलिहानों के दृश्य दिखाई देते हैं. ये उनके बाबूजी फणीश्वरनाथ रेणु का गांव और परिवार प्रेम ही था.
''गांव में फिल्म तीसरी कसम की शूटिंग चल रही थी, इसी वक्त रेणु की दूसरी पत्नी पद्मा रेणु ने बेटी को जन्म देने की बात समूचे गांव में फैल गई. कुछ ही देर में बेटी के जन्म लेने की खबर शूटिंग टीम और फणीश्वरनाथ रेणु तक पहुंची. जिसके बाद रेणु और तीसरी कसम की शूटिंग टीम ने उनका नाम वाहिदा रख दिया. इस वाकये के कारण वाहिदा को रेणु खूब मानते थे''- सरबोला देवी, रेणु की भाभो
''रेणु न सिर्फ एक महान कथाकार थे,बल्कि सामाजिक और राजनीतिक जीवन में भी उनका सक्रिय हस्तक्षेप रहता था. भारत के स्वाधीनता संग्राम के साथ ही नेपाल में राजशाही के विरुद्ध और लोकतंत्र कायम करने के लिए चले आंदोलन में भी सक्रियता से भाग लिया. भारतीय स्वाधीनता संग्राम में वह जेल भी गए थे''- भागवत प्रसाद मंडल, रेणु के छोटे दामाद'
कृतियों में भारत के गांवों की कहानी
भागवत प्रसाद मंडल कहते हैं कि उनकी कृतियों में बिहार के एक गांव की कहानी नहीं, बल्कि भारत के लाखों गांवों की कहानी मिलती है. पश्चिमी विद्वानों का मानना था कि भारत का ग्रामीण परिवेश लोकतंत्र को बाधित करेगा. उन्हें लोकतंत्र की सफलता पर संदेह था. मगर रेणु तो गांव के ही लोकतांत्रिक कहानी कहते थे.
रेणु की प्रसिद्ध कथा साहित्य
- मैला आंचल, पंचलाइट, ठेस
- जुलूस, परती परिकथा, लाल पान की बेगम
देशप्रेम से ओतप्रोत रहे हैं रेणु
उन्होंने बताया कि रेणु शुरुआत से ही देशप्रेम से ओतप्रोत रहे हैं. उन्होंने मैला आंचल में ये आजादी झूठी है का नारा दिया. जब बिहार में आंदोलन शुरू हुआ, तो 4 नवंबर 1974 को पटना में प्रदर्शनकारियों और आंदोलन के नेता लोकनायक जयप्रकाश नारायण पर पुलिस की लाठियां चली, तब रेणु शांत नहीं बैठे. वो न सिर्फ आंदोलन में कूद पड़े, बल्कि उन्होंने पद्मश्री अलंकरण भी तत्कालीन राष्ट्रपति को पत्र के साथ लौटा दिया.
पद्मश्री को पापश्री कहकर लौटाया
पत्र में उन्होंने पद्मश्री अलंकरण को पापश्री तक कह दिया. यही नहीं उन्होंने बिहार के राज्यपाल को अलग से एक पत्र लिखकर बिहार सरकार से उन्हें हर महीने मिलने वाली 300 की वृत्ति को भी लौटा दिया. 11 अप्रैल 1977 को महान कथाकार फणीश्वरनाथ रेणु का पटना में दुःखद और असामयिक निधन हो गया. रेणु की प्रसिद्ध कथा साहित्य- मैला आंचल, पंचलाइट, ठेस, जुलूस, परती परिकथा, लाल पान की बेगम हैं.
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11 अप्रैल 1977 में दुनिया को कहा अलविदा
बिहार में 1974 में हुई संपूर्ण क्रांति के दौरान फणीश्वरनाथ रेणु की मुलाकात जयप्रकाश नारायण से हुई और उनसे उनका भावनात्मक संबंध बन गया था. वर्ष 1977 में 22 मार्च को आपातकाल खत्म हुआ, तो प्रसन्न मन से रेणु ने अपना एक ऑपरेशन कराया. जिसके बाद वो अचेतावस्था में चले गए. इसी हालात में 11 अप्रैल 1977 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया.