पटना: 2022 नीतीश और लालू परिवार की नजदीकियों के लिए भी जाना जाएगा. बिहार में नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव की दोस्ती आज की नहीं बरसों पुरानी है. लालू प्रसाद और नीतीश कुमार दोनों जेपी आंदोलन से निकले नेता हैं. छात्र आंदोलन से अपनी पहचान बनाने वाले दोनों नेता कभी एक ही पार्टी में हुआ करते थे लेकिन महत्वाकांक्षा ने नीतीश कुमार को लालू से अलग कर दिया. (Friendship of CM Nitish Lalu Yadav )
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लालू और नीतीश की दोस्ती की चर्चा: बीजेपी की सहायता से 2005 में लालू प्रसाद यादव को सत्ता से बाहर किया गया लेकिन 2015 में एक बार फिर से नीतीश और लालू की दोस्ती चर्चा में रही. हालांकि यह दोस्ती 2017 में टूट गई, जब नीतीश एक बार फिर से बीजेपी के साथ गठबंधन कर एनडीए में शामिल हो गए. लेकिन 2022 में एक बार फिर से लालू और नीतीश की दोस्ती खूब चर्चा में रही.
कभी लालू को सत्ता से बाहर करने में निभाई थी अहम भूमिका: लालू प्रसाद के बेटे तेजस्वी यादव को लेकर नीतीश कुमार जिस प्रकार से बयान दे रहे हैं वह भी चर्चा में है. लालू राबड़ी के कुशासन से बिहार को बाहर निकालने का दावा करने वाले नीतीश कुमार कभी लालू प्रसाद यादव की पार्टी में ही उनके साथ थे. बाद में अलग होकर नीतीश कुमार ने अपनी अलग पार्टी बना ली. समता पार्टी के बाद नीतीश ने जनता दल यूनाइटेड का गठन किया और बीजेपी के साथ तालमेल में लालू प्रसाद यादव को सत्ता से बाहर करने में अपनी बड़ी भूमिका निभाई.
2015 में इनकी दोस्ती को जनता ने स्वीकारा: 2015 में नीतीश और लालू की दोस्ती खूब चर्चा में रही. नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाए जाने से नाराज नीतीश बीजेपी से 2013 में ही अलग हो गये. 2014 लोकसभा के चुनाव में अलग लड़े और केवल 2 लोकसभा सीट जीत पाए. उसके बाद ही नीतीश लालू के नजदीक चले गए. 2015 में नीतीश कुमार और लालू प्रसाद मिलकर विधानसभा चुनाव लड़े और प्रचंड बहुमत से चुनाव जीतकर सरकार भी बनायी. लेकिन यह दोस्ती 2 सालों में ही दरकने लगी.
तेजस्वी को सीएम नीतीश ने घोषित किया उत्तराधिकारी: 2017 में फिर से नीतीश लालू से अलग हो गए और बीजेपी के साथ बिहार में एनडीए की सरकार बना ली. 2022 में फिर से लालू नीतीश की दोस्ती चर्चा में रही क्योंकि नीतीश कुमार एक बार फिर से बीजेपी से अलग होकर आरजेडी के साथ महागठबंधन की सरकार में हैं. यहां तक की लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव को उत्तराधिकारी तक घोषित कर दिया है.
दोस्ती पर बयानबाजी भी हुई खूब: वहीं लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की दोस्ती को लेकर राजनीतिक बयानबाजी भी खूब हुई. नीतीश ने तेजस्वी को आगे करने की बात जबस कही है तबसे आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल पड़ा. राजद और जदयू के नेता लालू प्रसाद और नीतीश कुमार के एक साथ आने से एक बड़ा मैसेज जाने की बात कहते नजर आए तो बीजेपी ने इस दोस्ती पर जमकर सवाल दागे हैं और इसे सत्ता के लिए समझौता करार दिया है.
"लालू और नीतीश के साथ आने से पूरे देश की राजनीति में परिवर्तन दिख रहा है. सात दलों के गठबंधन ने बीजेपी को सत्ता से बेदखल कर दिया है ये जनता को बताने का काम किया है. हमने दिखा दिया कि अगर एकजुटता रहेगी तो भारतीय जनता पार्टी को परास्त करना कोई मुश्किल काम नहीं है."- एजाज अहमद, आरजेडी प्रवक्ता
"यह सामाजिक न्याय की सरकार है. सभी को सम्मान देने का काम सरकार कर रही है. नीतीश कुमार के प्रयासों से बिहार सामाजिक और आर्थिक क्रांति की ओर तीव्र गति से बढ़ रहा है."- परिमल राज, जदयू प्रवक्ता
"बिहार के लोग जानते हैं कि राज्य हित में नहीं दोनों सत्ता के लिये एक साथ हुए हैं. नीतीश कुमार को अपनी कुर्सी की चिंता है तो लालू प्रसाद यादव को अपने दोनों बेटों की चिंता है."- विनोद शर्मा, बीजेपी प्रवक्ता
2024 पर है फोकस: लालू परिवार से नजदीकियां बिहार में इफ्तार पार्टी के दौरान ही बढ़नी शुरू हुई थी. अगस्त में नीतीश कुमार ने फिर से पाला बदलते हुए महागठबंधन के साथ सरकार बना ली. तेजस्वी यादव को फिर से उपमुख्यमंत्री बनाया और अब उन्हें उत्तराधिकारी भी घोषित कर चुके हैं. 2025 के लिए यह घोषणा है. जदयू के नेता इस घोषणा से फिलहाल असहज हैं लेकिन उससे पहले 2024 लोकसभा का चुनाव होना है. नीतीश और लालू विपक्षी एकजुटता अभियान भी चला रहे हैं और जदयू की नजर अभी 2024 पर है. ऐसे नीतीश कुमार पहले भी तीन बार पाला बदल चुके हैं इसलिए नीतीश लालू की दोस्ती कब तक बनी रहती है यह भी देखना दिलचस्प होगा. फिलहाल 2022 दोनों दिग्गज नेताओं की दोस्ती के लिए याद किया जाएगा.