पटना: मंगलवार को 10 मुहर्रम है. इस दिन से इस्लाम धर्म के नए साल की शुरुआत होती है. मुस्लिम समुदाय के लोग इस दिन को मातम के रुप में मनाते हैं. ऐसी मान्यता है कि मुहर्रम इस्लामी महीने की 10 तारीख को इमाम हुसैन की शहादत हुई थी. इसलिए इस दिन मातम मनाया जाता है.
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मुहर्रम के दिन मुसलमान जुलूस निकालकर हुसैन की शहादत को याद करते हैं. इस दिन रोजा रखने का भी रिवाज है. कहा जाता है कि 10वें मोहर्रम के दिन ही इस्लाम की रक्षा के लिए हजरत इमाम हुसैन ने अपने प्राण त्याग दिए थे. वैसे तो मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर का महीना है लेकिन आमतौर पर लोग 10वें मोहर्रम को सबसे ज्यादा तरीजह देते हैं.
क्यों मनाया जाता है मुहर्रम?
इस्लामिक मान्यता के अनुसार इराक में यजीद नाम का जालिम बादशाह इंसानियत का दुश्मन था. यजीद खुद को खलीफा मानता था, लेकिन अल्लाह पर उसका कोई विश्वास नहीं था. वह चाहता था कि हजरत इमाम हुसैन उसके खेमे में शामिल हो जाएं. लेकिन. हुसैन को यह मंजूर नहीं था. उन्होंने यजीद के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया था.
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खुशी त्याग कर मनाते हैं शोक
पैगंबर-ए इस्लाम हजरत मोहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन को कर्बला में परिवार और दोस्तों के साथ शहीद कर दिया गया था. जिस महीने हुसैन और उनके परिवार को शहीद किया गया था वह मुहर्रम का ही महीना था. उनके परिवार पर हुए जुर्म और अहिंसा के खिलाफ मुहर्रम मनाया जाता है. मुहर्रम के महीने में मुसलमान शोक मनाते हैं और अपनी हर खुशी का त्याग कर देते हैं.