पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) इन दिनों चर्चा में बने हुए हैं. कभी राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाए जाने को लेकर तो कभी उपराष्ट्रपति के उम्मीदवार (Nitish Kumar Can Become Vice President) बनाए जाने को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है. हालांकि नीतीश कुमार खुद इन अटकलों का खंडन भी करते रहे हैं लेकिन इसके बावजूद जिस तरह की परिस्थिति बन रही है राजनीतिक जानकार भी कहते हैं कि नीतीश कुमार सहज नहीं है. क्यों असहज हैं सूबे के मुखिया विस्तार से जानें..
बीजेपी से असहज हैं सीएम नीतीश ?: पिछले कुछ समय से बीजेपी और जदयू (Tension between JDU and BJP) के बीच की खाई बढ़ती जा रही है. जातीय जनगणना, यूपी चुनाव, विशेष राज्य के दर्जे की मांग जैसे मुद्दों ने नीतीश कुमार और बीजेपी के बीच की तल्खी बढ़ा दी है. वहीं बिहार विधानसभ चुनाव परिणाम में जदयू तीसरे नंबर की पार्टी बन गई. इसके बाद से ही एनडीए में अंदरखाने नीतीश को धीरे-धीरे साइड लाइन करने की सुगबुगाहट भी होने लगी थी. हालांकि बीजेपी के पास बिहार में सीएम का कोई चेहरा ना होने के कारण नीतीश कुमार को आजतक तवज्जो मिलता रहा लेकिन अब कहा जा रहा है कि नीतीश आने वाले समय की तैयारी में जुट गए हैं. वहीं विपक्ष का भी कहना है कि नीतीश सेफ पैसेज चाहते हैं.
राजनीतिक बयानबाजी से परेशानी: वहीं कई तरह के कयासों के बीच जदयू की तरफ से बार-बार कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार 2025 तक के लिए मुख्यमंत्री हैं इसलिए बिहार में मुख्यमंत्री की वैकेंसी नहीं है. बीजेपी नेताओं के बयान कई बार नीतीश कुमार और जदयू को असहज कर देता है. सहयोगी बीजेपी की तरफ से बार बार बोला जाता है कि जदयू को कम सीट आने के बाद भी नीतीश कुमार को हम लोगों ने मुख्यमंत्री बनाया है.
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जदयू ने कहा- 'नीतीश पर जनता का भरोसा': 2020 विधानसभा चुनाव में जदयू के तीसरे नंबर पर आने के बाद भी नीतीश कुमार मुख्यमंत्री तो बन गए लेकिन कई मौकों पर बीजेपी नेताओं के तेवर और बयान से नीतीश कुमार के लिए असहज स्थिति पैदा हो जाती है. इन दिनों नीतीश कुमार कई तरह की चर्चाओं में भी बने हुए हैं. विपक्ष की ओर से कभी राष्ट्रपति उम्मीदवार तो कभी उपराष्ट्रपति बनने की चर्चा भी खूब होती रही. राज्यसभा जाने को लेकर भी चर्चा हुई. ऐसे तो मुख्यमंत्री ने सफाई भी दी और पार्टी के नेता भी कह रहे हैं कि 2025 तक के लिए जनता ने नीतीश कुमार के चेहरे पर ही एनडीए को वोट दिया है और सरकार बनी है. नीतीश कहीं जाने वाले नहीं हैं. बिहार में मुख्यमंत्री की कुर्सी भी खाली नहीं है.
"जनता ने नीतीश कुमार को जनाधार दिया है. उनके नाम पर मोहर लगायी गयी है. जनता को तो पता था कि अगर एनडीए जीतेगी तो मुख्यमंत्री कौन होंगे. उनका नाम लेकर हमलोग जनता के बीच में गए थे. 2020 में जनता का जो विश्वास मिला उसी आधार पर आज सरकार चल रही है. नीतीश कुमार पर जनता का भरोसा है इसलिए 2025 तक बिहार में कोई वैकेंसी नहीं है." - संजय झा, जल संसाधन मंत्री, बिहार
"2020 में बिहार विधानसभा का चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ा गया था. एनडीए घटक दल ने उनके चेहरे पर चुनाव लड़ा था. जनाधार नीतीश कुमार को ही मिला है. आज जो भी लोग बोल रहे हैं वो बेमतलब का बोल रहे हैं. 2025 तक का जनाधार सीएम नीतीश कुमार को मिला है."- उमेश कुशवाहा, प्रदेश अध्यक्ष जदयू
'बीजेपी ने नीतीश को बनाया सीएम': वहीं बीजेपी नेताओं के बयानों से कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. बीजेपी प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने कहा कि जदयू को 2020 में कम सीट आने के बाद भी हम लोगों ने जनता से जो वादा किया था उसके हिसाब से नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया है. जबकि खुद नीतीश कुमार मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहते थे. यह 2025 तक के लिए है. बोलने के लिए तो लोग कई तरह की बात बोल देते हैं.
"किसी को कोई गारंटी देने की आवश्यकता नहीं है. चुनाव से पहले नीतीश कुमार जी घोषित नेता थे. उन्हीं के नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया था. जदयू को सीटें कम आई. नीतीश कुमार सीएम नहीं बनना चाहते थे. भाजपा ने कहा कि जनता से वादा था इसलिए आप ही को सीएम बनना है. नीतीश कुमार 2025 तक के लिए सीएम हैं."- प्रेम रंजन पटेल, प्रवक्ता बीजेपी
'सेफ पैसेज चाहते हैं सीएम': आरजेडी की तरफ से लगातार सरकार गिरने के दावे होते रहे हैं. विपक्ष को अभी भी अंदेशा है कि बीजेपी नीतीश कुमार को बहुत दिनों तक मुख्यमंत्री बने रहने नहीं देगी और इसीलिए नीतीश कुमार सेफ पैसेज चाहते हैं. चिराग पासवान की पार्टी के प्रवक्ता चंदन सिंह का तो यहां तक कहना है कि बीजेपी का जिस प्रकार से दबाव है नीतीश कुमार पलटी भी मार सकते हैं. वहीं आरजेडी के वरिष्ठ नेता वृषिण पटेल का कहना है कि जनता मान चुकी है कि नीतीश कुमार का पहले का चेहरा बदल चुका है.
"नीतीश कुमार का जो पहले का चेहरा था वो बदल गया है इस बात को जनता मान चुकी है. नीतीश अब कर्पूरी ठाकुर, सामाजिक न्याय और धर्म निरपेक्षता की पाठशाला से अलग हो चुके हैं. इनके मित्र कब तक इनके चेहरे को बर्दाश्त करेंगे."- वृषिण पटेल, वरिष्ठ नेता आरजेडी
राजद की इफ्तार पार्टी में पहुंचे थे सीएम: बता दें कि शुक्रवार को पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के आवास पर राजद द्वारा दावत-ए-इफ्तार का आयोजन किया गया था, जिसमें नीतीश कुमार भी शामिल हुए थे. नीतीश कुमार अपने आवास से निकलकर पैदल ही राबड़ी आवास पहुंच गए थे. वहां उन्होंने राबड़ी देवी के साथ-साथ मीसा भारती, तेजस्वी यादव, तेज प्रताप यादव और तेजस्वी की पत्नी राजश्री से भी मुलाकात की थी.
तो इन कारणों से असहज महसूस कर रहे नीतीश: बीजेपी के नेता कई तरह से नीतीश कुमार पर दबाव बना रहे हैं. विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा के साथ जिस प्रकार से विवाद हुआ नीतीश कुमार को झुकना पड़ा था. बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष संजय जयसवाल ने तो जदयू नेताओं के रवैये पर खुलेआम बयान दिया था और कहा था कि मुख्यमंत्री की कुर्सी भी जा सकती है. कानून व्यवस्था को लेकर भी बीजेपी नीतीश सरकार पर सवाल खड़े कर चुकी है. बिहार में योगी मॉडल और नीतीश मॉडल का एक नया शगूफा छोड़ा गया जो अभी भी चर्चाओं के केंद्र में है. संजय जयसवाल ने शराबबंदी कानून में संशोधन के पीछे भी बीजेपी के दबाव को कारण बता दिया था. विशेष राज्य के दर्जे पर तो मुख्यमंत्री के बयान का खंडन उपमुख्यमंत्री ने ही कर दिया था और यह भी कहा था कि विशेष राज्य के दर्जे की जरूरत नहीं है, विशेष पैकेज मिल ही रहा है. जातीय जनगणना पर भी बीजेपी तैयार नहीं हो रही है. नीतीश कुमार की कार्यशैली रही है कि अपने हिसाब से फैसले रहते हैं लेकिन 2020 चुनाव के रिजल्ट के बाद से परिस्थिति बदली है. बदलती परिस्थियां नीतीश कुमार के असहज होने का एक बड़ा कारण है. पहले की तरह नीतीश कुमार अब फैसले नहीं ले पा रहे हैं.
शुभचिंतकों की कमी: असल में बिहार विधानसभा में अब बीजेपी बड़े भाई की भूमिका में नजर आना चाहती है. विधानसभा में मुकेश सहनी के तीन विधायक के शामिल होने के बाद बीजेपी और सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी है. जदयू से बीजेपी का 32 सीटों का फैसला हो चुका है और यह भी एक बड़ा कारण है नीतीश कुमार के असहज होने का. माना जाता है कि बिहार में सुशील मोदी को साइड किए जाने के बाद नीतीश की परेशानी और बढ़ी. बीजेपी में कोई ऐसा बड़ा नेता नहीं है जिसके माध्यम से बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व से सीएम नीतीश अपनी बात मनवा सके क्योंकि बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व में अरुण जेटली के जाने के बाद नीतीश कुमार का कोई शुभचिंतक फिलहाल नहीं है.
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