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कांग्रेस को लगातार दरकिनार कर रहा RJD, क्या बिहार में अकेले चलने की है तैयारी?

बिहार में 24 सीट पर एमएलसी चुनाव (Bihar MLC Elections) को लेकर राष्ट्रीय जनता दल ने अकेले 23 सीटों पर लड़ने का फैसला किया है, जबकि महागठबंधन में उनकी सहयोगी सीपीआई के हिस्से में एक सीट आई है. हालांकि आरजेडी नेता कांग्रेस से अलग होने की बात नहीं मानते, लेकिन सच्चाई ये भी है कि पिछले दो चुनावों से बिहार में कांग्रेस और आरजेडी के बीच तनातनी तो है. ऐसे में सवाल लाजिमी है कि क्या कांग्रेस के बगैर आरजेडी अपने दम पर बिहार में एनडीए का सामना कर सकता है? पढ़ें खास रिपोर्ट...

आरजेडी और कांग्रेस के बीच गठबंधन टूटा
आरजेडी और कांग्रेस के बीच गठबंधन टूटा
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Published : Feb 7, 2022, 7:45 PM IST

पटना: बिहार विधान परिषद चुनाव (Bihar Legislative Council Election) में आरजेडी और कांग्रेस के बीच गठबंधन (Alliance Between RJD and Congress) नहीं होगा. पिछले साल तारापुर और कुशेश्वरस्थान उपचुनाव के बाद लगातार ये दूसरा साल होगा, जब आरजेडी ने किसी चुनाव में कांग्रेस से दूरी बना रखी हो. हालांकि ये भी सच है कि जब-जब दोनों दलों ने अलग-अलग होकर चुनाव लड़ा है, खामियाजा दोनों को भुगतना पड़ा है. इस बात को जानते हुए भी आखिर क्यों आरजेडी ने अपने 'स्वभाविक' पार्टनर से दूरी बनाई है, क्या पार्टी ने तय कर लिया है कि अंजाम जो भी हो लेकिन वह अकेले ही एनडीए का मुकाबला करेगी.

ये भी पढ़ें: बिहार में टूटा महागठबंधन, लालू यादव ने किया ऐलान- अकेले MLC चुनाव लड़ेगी RJD

बिहार में कांग्रेस को दरकिनार करने का आरजेडी राजद का यह कोई पहला मामला नहीं है. पिछले साल जब बिहार विधानसभा की 2 सीटों पर उपचुनाव हुए तो आरजेडी ने उस वक्त भी कांग्रेस से किनारा करते हुए दोनों सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिए, जबकि कुशेश्वरस्थान सीट पहले कांग्रेस के हिस्से में रही थी. दोनों दलों के बीच तब भी जमकर विवाद हुआ था. अब एक बार फिर कांग्रेस और आरजेडी के बीच का विवाद चरम पर है. कांग्रेस नेता इसे आरजेडी की मनमानी बता रहे हैं. साथ ही ये भी कह रहे हैं कि हमारे बिना आरजेडी जब भी चुनाव लड़ेगा, निराशा ही हाथ लगेगी.

इस बारे में कांग्रेस एमएलसी प्रेमचंद्र मिश्र कहते हैं कि आरजेडी एक तरफ केंद्र में साथ चलने की बात करता है, वहीं दूसरी तरफ बिहार में अलग रास्ता अख्तियार कर लेता है. यह कहां तक उचित है. अपने सहयोगी को आप अपनी मनमर्जी से नहीं घुमा सकते हैं. अकेले-अकेले चुनाव लड़ने पर नुकसान भी उठाना पड़ता है.

"राजद एक तरफ केंद्र में साथ चलने की बात करता है दूसरी तरफ बिहार में अलग रास्ता अख्तियार कर लेता है. यह कहां तक उचित है. अपने सहयोगी को आप अपनी मनमर्जी से नहीं घुमा सकते हैं. अकेले चुनाव लड़ने पर उन्हें भी नुकसान उठाना पड़ता है"- प्रेमचंद्र मिश्र, विधान पार्षद, कांग्रेस

उधर, आरजेडी प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह (RJD State President Jagdanand Singh) ने कहा कि महागठबंधन पूरी तरह एकजुट है. कांग्रेस से हम अलग नहीं हैं. दोनों दल अपनी-अपनी मजबूती के लिहाज से बिहार विधान परिषद के चुनाव में उतर रहे हैं, इसमें कहीं कोई गलत बात नहीं है. जहां तक भविष्य की बात है तो भविष्य से पहले वर्तमान में भी हम एक साथ हैं. उन्होंने कहा कि जनहित और राष्ट्रहित के मुद्दे पर कांग्रेस और आरजेडी में कहीं कोई अंतर नहीं है. इसलिए यह कहना गलत है कि हम दोनों अलग-अलग हैं.

"महागठबंधन पूरी तरह एकजुट है कांग्रेस से हम अलग नहीं हैं. दोनों दल अपनी-अपनी मजबूती के लिहाज से बिहार विधान परिषद के चुनाव में उतर रहे हैं, इसमें कहीं कोई गलत नहीं है. जहां तक भविष्य की बात है तो भविष्य से पहले वर्तमान में भी हम एक साथ हैं"- जगदानंद सिंह, प्रदेश अध्यक्ष, आरजेडी

वहीं. वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय कहते हैं कि जब-जब कांग्रेस और आरजेडी अलग-अलग चुनाव लड़े हैं, तब-तब दोनों को नुकसान उठाना पड़ा है. आरजेडी स्वाभाविक रूप से बिहार में बड़ी पार्टी है लेकिन उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि कांग्रेस उसकी स्वाभाविक सहयोगी है. बिना कांग्रेस के आरजेडी बिहार में अपना भविष्य नहीं टटोल सकता. खासकर जब सरकार बनाने की बारी आएगी, तब बिना कांग्रेस के सरकार बन ही नहीं सकती. वे कहते हैं कि इस बार जब दोनों दल विधान परिषद चुनाव में उतर रहे हैं तो निश्चित तौर पर अलग-अलग चुनाव लड़ने का खामियाजा भी आरजेडी को उठाना पड़ेगा. वोटों का समीकरण कुछ इस तरह का है कि एक तरफ बीजेपी है तो दूसरी तरफ कांग्रेस है. दोनों राष्ट्रीय दलों को माइनस करके कोई भी क्षेत्रीय दल आगे बढ़ने की नहीं सोच सकता. अल्पसंख्यक हो या फिर सवर्ण समाज, कही न कहीं कांग्रेस के पास इन दोनों का बड़ा जनाधार है.

"जब-जब कांग्रेस और आरजेडी अलग-अलग चुनाव लड़े हैं, तब-तब दोनों को नुकसान उठाना पड़ा है. आरजेडी स्वाभाविक रूप से बिहार में बड़ी पार्टी है लेकिन उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि कांग्रेस उसकी स्वाभाविक सहयोगी है. बिना कांग्रेस के आरजेडी बिहार में अपना भविष्य नहीं टटोल सकता. खासकर जब सरकार बनाने की बारी आएगी, तब बिना कांग्रेस के सरकार बन ही नहीं सकती. विधान परिषद चुनाव में अलग-अलग लड़ने का नुकसान आरजेडी को भी होगा"- रवि उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार

ये भी पढ़ें: MLC चुनाव : ETV BHARAT की खबर पर लगी मुहर, 23 सीटों पर RJD और एक पर CPI उम्मीदवार

आपको याद दिलाएं कि 2020 के चुनाव में जब आरजेडी और कांग्रेस ने एक साथ मिलकर चुनाव लड़ा तो एकजुट विपक्ष ने एनडीए को कड़ी टक्कर दी लेकिन वर्ष 2021 में 2 सीटों के लिए उपचुनाव में दोनों अलग-अलग चुनाव लड़े. नतीजों से यह स्पष्ट हो गया कि अगर दोनों दल मिलकर लड़ते तो कम से कम एक सीट महागठबंधन के पाले में आ सकती थी. अब एक बार फिर जब विधान परिषद चुनाव में दोनों अलग-अलग लड़ रहे हैं तो यह कयास लग रहे हैं कि दोनों के अलग लड़ने का फायदा एनडीए को मिल सकता है. भविष्य की राजनीति की ओर देखें तो बिहार में बिना कांग्रेस के आरजेडी की राह मुश्किल होगी. इस बात को उनके नेता स्वीकार भी करते हैं. यही वजह है कि वरिष्ठ नेता कांग्रेस को लेकर काफी संभलकर बयान दे रहे हैं. आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव (RJD President Lalu Yadav) भी दिल्ली में कह चुके हैं कि केंद्र में हम कांग्रेस के साथ हैं.

ये भी पढ़ें: BJP का कांग्रेस को तंज भरा संदेशः 'RJD कर रही है बेइज्जत, अलग होकर कायम करें अपना वजूद'

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पटना: बिहार विधान परिषद चुनाव (Bihar Legislative Council Election) में आरजेडी और कांग्रेस के बीच गठबंधन (Alliance Between RJD and Congress) नहीं होगा. पिछले साल तारापुर और कुशेश्वरस्थान उपचुनाव के बाद लगातार ये दूसरा साल होगा, जब आरजेडी ने किसी चुनाव में कांग्रेस से दूरी बना रखी हो. हालांकि ये भी सच है कि जब-जब दोनों दलों ने अलग-अलग होकर चुनाव लड़ा है, खामियाजा दोनों को भुगतना पड़ा है. इस बात को जानते हुए भी आखिर क्यों आरजेडी ने अपने 'स्वभाविक' पार्टनर से दूरी बनाई है, क्या पार्टी ने तय कर लिया है कि अंजाम जो भी हो लेकिन वह अकेले ही एनडीए का मुकाबला करेगी.

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बिहार में कांग्रेस को दरकिनार करने का आरजेडी राजद का यह कोई पहला मामला नहीं है. पिछले साल जब बिहार विधानसभा की 2 सीटों पर उपचुनाव हुए तो आरजेडी ने उस वक्त भी कांग्रेस से किनारा करते हुए दोनों सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिए, जबकि कुशेश्वरस्थान सीट पहले कांग्रेस के हिस्से में रही थी. दोनों दलों के बीच तब भी जमकर विवाद हुआ था. अब एक बार फिर कांग्रेस और आरजेडी के बीच का विवाद चरम पर है. कांग्रेस नेता इसे आरजेडी की मनमानी बता रहे हैं. साथ ही ये भी कह रहे हैं कि हमारे बिना आरजेडी जब भी चुनाव लड़ेगा, निराशा ही हाथ लगेगी.

इस बारे में कांग्रेस एमएलसी प्रेमचंद्र मिश्र कहते हैं कि आरजेडी एक तरफ केंद्र में साथ चलने की बात करता है, वहीं दूसरी तरफ बिहार में अलग रास्ता अख्तियार कर लेता है. यह कहां तक उचित है. अपने सहयोगी को आप अपनी मनमर्जी से नहीं घुमा सकते हैं. अकेले-अकेले चुनाव लड़ने पर नुकसान भी उठाना पड़ता है.

"राजद एक तरफ केंद्र में साथ चलने की बात करता है दूसरी तरफ बिहार में अलग रास्ता अख्तियार कर लेता है. यह कहां तक उचित है. अपने सहयोगी को आप अपनी मनमर्जी से नहीं घुमा सकते हैं. अकेले चुनाव लड़ने पर उन्हें भी नुकसान उठाना पड़ता है"- प्रेमचंद्र मिश्र, विधान पार्षद, कांग्रेस

उधर, आरजेडी प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह (RJD State President Jagdanand Singh) ने कहा कि महागठबंधन पूरी तरह एकजुट है. कांग्रेस से हम अलग नहीं हैं. दोनों दल अपनी-अपनी मजबूती के लिहाज से बिहार विधान परिषद के चुनाव में उतर रहे हैं, इसमें कहीं कोई गलत बात नहीं है. जहां तक भविष्य की बात है तो भविष्य से पहले वर्तमान में भी हम एक साथ हैं. उन्होंने कहा कि जनहित और राष्ट्रहित के मुद्दे पर कांग्रेस और आरजेडी में कहीं कोई अंतर नहीं है. इसलिए यह कहना गलत है कि हम दोनों अलग-अलग हैं.

"महागठबंधन पूरी तरह एकजुट है कांग्रेस से हम अलग नहीं हैं. दोनों दल अपनी-अपनी मजबूती के लिहाज से बिहार विधान परिषद के चुनाव में उतर रहे हैं, इसमें कहीं कोई गलत नहीं है. जहां तक भविष्य की बात है तो भविष्य से पहले वर्तमान में भी हम एक साथ हैं"- जगदानंद सिंह, प्रदेश अध्यक्ष, आरजेडी

वहीं. वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय कहते हैं कि जब-जब कांग्रेस और आरजेडी अलग-अलग चुनाव लड़े हैं, तब-तब दोनों को नुकसान उठाना पड़ा है. आरजेडी स्वाभाविक रूप से बिहार में बड़ी पार्टी है लेकिन उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि कांग्रेस उसकी स्वाभाविक सहयोगी है. बिना कांग्रेस के आरजेडी बिहार में अपना भविष्य नहीं टटोल सकता. खासकर जब सरकार बनाने की बारी आएगी, तब बिना कांग्रेस के सरकार बन ही नहीं सकती. वे कहते हैं कि इस बार जब दोनों दल विधान परिषद चुनाव में उतर रहे हैं तो निश्चित तौर पर अलग-अलग चुनाव लड़ने का खामियाजा भी आरजेडी को उठाना पड़ेगा. वोटों का समीकरण कुछ इस तरह का है कि एक तरफ बीजेपी है तो दूसरी तरफ कांग्रेस है. दोनों राष्ट्रीय दलों को माइनस करके कोई भी क्षेत्रीय दल आगे बढ़ने की नहीं सोच सकता. अल्पसंख्यक हो या फिर सवर्ण समाज, कही न कहीं कांग्रेस के पास इन दोनों का बड़ा जनाधार है.

"जब-जब कांग्रेस और आरजेडी अलग-अलग चुनाव लड़े हैं, तब-तब दोनों को नुकसान उठाना पड़ा है. आरजेडी स्वाभाविक रूप से बिहार में बड़ी पार्टी है लेकिन उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि कांग्रेस उसकी स्वाभाविक सहयोगी है. बिना कांग्रेस के आरजेडी बिहार में अपना भविष्य नहीं टटोल सकता. खासकर जब सरकार बनाने की बारी आएगी, तब बिना कांग्रेस के सरकार बन ही नहीं सकती. विधान परिषद चुनाव में अलग-अलग लड़ने का नुकसान आरजेडी को भी होगा"- रवि उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार

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आपको याद दिलाएं कि 2020 के चुनाव में जब आरजेडी और कांग्रेस ने एक साथ मिलकर चुनाव लड़ा तो एकजुट विपक्ष ने एनडीए को कड़ी टक्कर दी लेकिन वर्ष 2021 में 2 सीटों के लिए उपचुनाव में दोनों अलग-अलग चुनाव लड़े. नतीजों से यह स्पष्ट हो गया कि अगर दोनों दल मिलकर लड़ते तो कम से कम एक सीट महागठबंधन के पाले में आ सकती थी. अब एक बार फिर जब विधान परिषद चुनाव में दोनों अलग-अलग लड़ रहे हैं तो यह कयास लग रहे हैं कि दोनों के अलग लड़ने का फायदा एनडीए को मिल सकता है. भविष्य की राजनीति की ओर देखें तो बिहार में बिना कांग्रेस के आरजेडी की राह मुश्किल होगी. इस बात को उनके नेता स्वीकार भी करते हैं. यही वजह है कि वरिष्ठ नेता कांग्रेस को लेकर काफी संभलकर बयान दे रहे हैं. आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव (RJD President Lalu Yadav) भी दिल्ली में कह चुके हैं कि केंद्र में हम कांग्रेस के साथ हैं.

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