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CM नीतीश के सामने आया 'कालापानी' का मामला, तुरंत गृह सचिव को मिलाया फोन, जानें पूरा मामला - Azaadi Ka Amrit Mahotsav

जनता दरबार (Janta Darbar) में एक फरियादी ने देश की आजादी के लिए काला पानी की सजा काटते हुए अपने प्राणों को न्योछावर करने वाले शहीदों की शहादत नहीं मनाए जाने और दुर्दशा की जानकारी दी, जिस पर सीएम नीतीश (CM Nitish Kumar) ने क्या कुछ कहा, पढ़िए ये रिपोर्ट..

जनता दरबार
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Published : Sep 6, 2021, 5:27 PM IST

पटना: सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) के जनता दरबार (Janta Darbar) में फरियादी अपनी फरियाद लेकर पहुंच रहे हैं. मुख्यमंत्री के जनता दरबार में मुजफ्फरपुर (Muzaffarpur) का एक शख्स पहुंचा और देश की आजादी के लिए काला पानी की सजा काटते हुए अपने प्राणों को न्योछावर करने वाले वीर सपूतों की शहादत नहीं मनाए जाने और दुर्दशा के बारे में मुख्यमंत्री को बताया.

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जनता दरबार में फरियादी ने सीएम से कहा कि मुजफ्फरपुर में बड़कागांव एक जगह है. जहां 1857 में जब पहली लड़ाई हुई थी, तो अंग्रेजों का वो गढ़ माना जाता था. इस दौरान बाबू वीर कुंवर सिंह का साथ देने पर अंग्रेजों ने उनके साथ कई लोगों को काला पानी की सजा देते हुए अंडमान निकोबार भेज दिया था.

देखें वीडियो

''तत्कालीन सांसद रघुवंश प्रसाद सिंह, न्यू इंडिया फाउंडेशन और प्रशासन के द्वारा उनकी याद में गांव में एक संग्रहालय, पुस्तकालय और शहीदों का स्मारक बनाया गया. जिसके बाद उन्हीं के प्रस्ताव पर जिलाधिकारी धर्मेंद्र सिंह ने 7 जनवरी 2017 को भारत सरकार से अनुशंसा करते हुए कहा कि इनको शहीदों की सूची में शामिल किया जाए. भारत सरकार ने अनुशंसा के बाद शहीदों की सूची में सभी का नाम शामिल कर लिया. लेकिन, आज तक शहीदों को ना तो शहीद का दर्जा दिया गया और ना ही शहीद स्थल को विकसित किया गया. 1942 से लेकर आज तक वहां कुछ विकसित नहीं किया गया है.''- फरियादी

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इस पर सीएम नीतीश ने फरियाद सुनकर कहा कि आप ही तो बता रहे हो कि सब कुछ हो गया तो और क्या चाहिए. आप ही ने तो बताया कि सभी का नाम शहीदों की सूची में शामिल कर लिया गया है. जिस पर फरियादी ने कहा कि जो वहां शहीद हुए थे उनके लिए शहादत दिवस भी तो मनना चाहिए. इस पर सीएम ने कहा कि ये तो कोई बात नहीं होती है. हर गांव में कोई शहादत दिवस मनता है. शहादत दिवस तो देशभर में मनता है. जिसके बाद सीएम नीतीश ने मामले को डीएम से दिखवाने का आश्वासन देते हुए उनसे फरियाद पत्र ले लिया, जिसके बाद फरियादी वहां से उठकर चला गया.

एक ओर जहां देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है. ऐसे में आजादी के दौरान बिहार में शहादत से जुड़े मामले की गंभीरता को देखते हुए सीएम नीतीश कुमार फरियादी के जाने के बाद भी उसके फरियाद पत्र को देखते रहे और अगले फरियादी को बीच में ही रोकते हुए फोन लगाकर गृह सचिव को कहा कि अभी जो नौजवान गया है ये बता रहा है कि मुजफ्फरपुर के बड़कागांव में लोगों ने देश की आजादी के लिए शहादत दी थी, उन्हें शहादत का दर्जा तो मिल गया है, लेकिन इस मामले को देख लीजिए और वहां के डीएम को भी कह दीजिए.

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बता दें कि 1857 को किसान आंदोलन के दौरान 27 योद्धाओं ने अहम भूमिका निभाई थी. बाबू वीर कुंवर सिंह के नेतृत्व में आंदोलन किया गया था. अंग्रेजों के शासन का मुख्य केंद्र मड़वन प्रखंड का बड़कागांव था. बड़कागांव के किसान इस आंदोलन में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ के कूद पड़े थे. नील की खेती और किसानों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ इन क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों पर हमला कर दिया था. नील गोदाम और उनकी कोठियों पर आग लगा दी थी. इन क्रांतिकारियों को अंग्रेजों ने कालापानी की सजा दी. सजा काटने के लिए सभी को पोर्टब्लेयर भेज दिया गया. अंडमान निकोबार के पोर्टब्लेयर में सजा काटने गए ये क्रांतिकारी वापस अपनी मातृभूमि नहीं लौट सके. और इन गुमनाम शहीदों का नाम इतिहास के पन्नों में खो कर रह गया.

तत्कालीन सांसद स्व. रघुवंश प्रसाद सिंह और न्यू इंडिया फाउंडेशन ने इनको इतिहास में जगह दिलाने की कोशिश शुरू की. अंतत: डीएम धर्मेंद्र सिंह ने 7 जनवरी 2017 को गृह विभाग को अनुशंसा भेज दी कि वारिस अली को शहीद का दर्जा दिया जाए जिसके बाद मड़वन के बड़कागांव और तिरहुत के कालापानी की सजा पाने वाले इन जांबाजों का नाम सेल्यूलर जेल की कैदी की सूची में शामिल करते हुए इन्हें स्वतंत्रता सेनानी माना गया. अब जल्द ही इन सेनानियों का नाम भी सेल्यूलर जेल के दीवार पर अंकित किया जाएगा.

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पटना: सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) के जनता दरबार (Janta Darbar) में फरियादी अपनी फरियाद लेकर पहुंच रहे हैं. मुख्यमंत्री के जनता दरबार में मुजफ्फरपुर (Muzaffarpur) का एक शख्स पहुंचा और देश की आजादी के लिए काला पानी की सजा काटते हुए अपने प्राणों को न्योछावर करने वाले वीर सपूतों की शहादत नहीं मनाए जाने और दुर्दशा के बारे में मुख्यमंत्री को बताया.

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जनता दरबार में फरियादी ने सीएम से कहा कि मुजफ्फरपुर में बड़कागांव एक जगह है. जहां 1857 में जब पहली लड़ाई हुई थी, तो अंग्रेजों का वो गढ़ माना जाता था. इस दौरान बाबू वीर कुंवर सिंह का साथ देने पर अंग्रेजों ने उनके साथ कई लोगों को काला पानी की सजा देते हुए अंडमान निकोबार भेज दिया था.

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''तत्कालीन सांसद रघुवंश प्रसाद सिंह, न्यू इंडिया फाउंडेशन और प्रशासन के द्वारा उनकी याद में गांव में एक संग्रहालय, पुस्तकालय और शहीदों का स्मारक बनाया गया. जिसके बाद उन्हीं के प्रस्ताव पर जिलाधिकारी धर्मेंद्र सिंह ने 7 जनवरी 2017 को भारत सरकार से अनुशंसा करते हुए कहा कि इनको शहीदों की सूची में शामिल किया जाए. भारत सरकार ने अनुशंसा के बाद शहीदों की सूची में सभी का नाम शामिल कर लिया. लेकिन, आज तक शहीदों को ना तो शहीद का दर्जा दिया गया और ना ही शहीद स्थल को विकसित किया गया. 1942 से लेकर आज तक वहां कुछ विकसित नहीं किया गया है.''- फरियादी

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इस पर सीएम नीतीश ने फरियाद सुनकर कहा कि आप ही तो बता रहे हो कि सब कुछ हो गया तो और क्या चाहिए. आप ही ने तो बताया कि सभी का नाम शहीदों की सूची में शामिल कर लिया गया है. जिस पर फरियादी ने कहा कि जो वहां शहीद हुए थे उनके लिए शहादत दिवस भी तो मनना चाहिए. इस पर सीएम ने कहा कि ये तो कोई बात नहीं होती है. हर गांव में कोई शहादत दिवस मनता है. शहादत दिवस तो देशभर में मनता है. जिसके बाद सीएम नीतीश ने मामले को डीएम से दिखवाने का आश्वासन देते हुए उनसे फरियाद पत्र ले लिया, जिसके बाद फरियादी वहां से उठकर चला गया.

एक ओर जहां देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है. ऐसे में आजादी के दौरान बिहार में शहादत से जुड़े मामले की गंभीरता को देखते हुए सीएम नीतीश कुमार फरियादी के जाने के बाद भी उसके फरियाद पत्र को देखते रहे और अगले फरियादी को बीच में ही रोकते हुए फोन लगाकर गृह सचिव को कहा कि अभी जो नौजवान गया है ये बता रहा है कि मुजफ्फरपुर के बड़कागांव में लोगों ने देश की आजादी के लिए शहादत दी थी, उन्हें शहादत का दर्जा तो मिल गया है, लेकिन इस मामले को देख लीजिए और वहां के डीएम को भी कह दीजिए.

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बता दें कि 1857 को किसान आंदोलन के दौरान 27 योद्धाओं ने अहम भूमिका निभाई थी. बाबू वीर कुंवर सिंह के नेतृत्व में आंदोलन किया गया था. अंग्रेजों के शासन का मुख्य केंद्र मड़वन प्रखंड का बड़कागांव था. बड़कागांव के किसान इस आंदोलन में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ के कूद पड़े थे. नील की खेती और किसानों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ इन क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों पर हमला कर दिया था. नील गोदाम और उनकी कोठियों पर आग लगा दी थी. इन क्रांतिकारियों को अंग्रेजों ने कालापानी की सजा दी. सजा काटने के लिए सभी को पोर्टब्लेयर भेज दिया गया. अंडमान निकोबार के पोर्टब्लेयर में सजा काटने गए ये क्रांतिकारी वापस अपनी मातृभूमि नहीं लौट सके. और इन गुमनाम शहीदों का नाम इतिहास के पन्नों में खो कर रह गया.

तत्कालीन सांसद स्व. रघुवंश प्रसाद सिंह और न्यू इंडिया फाउंडेशन ने इनको इतिहास में जगह दिलाने की कोशिश शुरू की. अंतत: डीएम धर्मेंद्र सिंह ने 7 जनवरी 2017 को गृह विभाग को अनुशंसा भेज दी कि वारिस अली को शहीद का दर्जा दिया जाए जिसके बाद मड़वन के बड़कागांव और तिरहुत के कालापानी की सजा पाने वाले इन जांबाजों का नाम सेल्यूलर जेल की कैदी की सूची में शामिल करते हुए इन्हें स्वतंत्रता सेनानी माना गया. अब जल्द ही इन सेनानियों का नाम भी सेल्यूलर जेल के दीवार पर अंकित किया जाएगा.

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