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Vishwakarma Puja 2022: आज है विश्वकर्मा पूजा, जानें पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और महत्व

सृजन के देवता भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने के कई महत्व हैं. विश्वकर्मा जयंती पर पूजा करने की विधि, मुहूर्त सहित पौराणिक मान्यताओं को यहां विस्तार से पढे़ं...

Vishwakarma Puja 2022
Vishwakarma Puja 2022
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Published : Sep 17, 2022, 9:38 AM IST

पटनाः देवताओं के शिल्पी, निर्माण और सृजन के देवता (God Of Creation) कहे जाने वाले भगवान विश्वकर्मा (Lord Vishwakarma Puja 2022) की पूजा हर साल की भांति इस साल भी 17 सितंबर को यानि आज है. शनिवार को चंद्रमा वृष राशि में होंगे. राहुकाल 17 सितंबर को 9 बजे से 10 बजकर 30 मिनट तक रहेगा. विश्वकर्मा पूजा शुभ मुहूर्त चौघड़िया सुबह 7 बजकर 38 से 9 बजकर 11 मिनट तक है और लाभ चौघड़िया दोपहर 1 बजकर 47 से 3 बजकर 20 मिनट तक रहेगा.

इसे भी पढ़ें- सहारनपुर में मुस्लिम ने शिवलिंग पर किया जलाभिषेक, मंत्रोच्चारण का वीडियो आया सामने

आज के दिन विशेष तौर पर औजारों, निर्माण कार्य से जुड़ी मशीनों, दुकानों, कारखानों आदि की पूजा की जाती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा की कृपा से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, व्यापार में तरक्की और उन्नति होती है. जो भी कार्य प्रारंभ किए जाते हैं, वे पूरे होते हैं. भगवान विश्वकर्मा को संसार का पहला इंजीनियर भी कहा जाता है.

विश्वकर्मा पूजा का मुहूर्त: 17 सितंबर को एक घंटे 30 मिनट तक राहुकाल रहेगा. इस दौरान विश्वकर्मा पूजन की मनाही है. आदि शिल्पी की जयंती पर राहुकाल की शुरुआत पूर्वाह्न 7 बजकर 38 से 9 बजकर 11 तक कर सकते हैं. वाहनों की पूजा राहुकाल के बाद 12 बजकर 15 मिनट से 1 बजकर 46 तक कर सकते हैं. वहीं कल कारखाने में भी विश्वकर्मा पूजा का समय दोपहर 12 से 1 बजकर 46 तक शुभ रहेगा.

विश्वकर्मा पूजा के लिए अपने कामकाज में उपयोग में आने वाली मशीनों को साफ करना चाहिए. फिर स्नान करके भगवान विष्णु के साथ विश्वकर्माजी की प्रतिमा की विधिवत पूजा करनी चाहिए. ऋतुफल, मिष्ठान्न, पंचमेवा, पंचामृत का भोग लगाना चाहिए. दीप-धूप आदि जलाकर दोनों देवताओं की आरती उतारनी चाहिए. इससे मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.

भगवान विश्वकर्मा के जन्म को लेकर शास्त्रों में अलग-अलग कथाएं प्रचलित हैं. वराह पुराण के अनुसार ब्रह्माजी ने विश्वकर्मा को धरती पर उत्पन्न किया. वहीं विश्वकर्मा पुराण के अनुसार, आदि नारायण ने सर्वप्रथम ब्रह्माजी और फिर विश्वकर्मा जी की रचना की. भगवान विश्वकर्मा के जन्म को देवताओं और राक्षसों के बीच हुए समुद्र मंथन से भी जोड़ा जाता है.

इस तरह भगवान विश्वकर्मा के जन्म को लेकर शास्त्रों में जो कथाएं मिलती हैं, उससे ज्ञात होता है कि विश्वकर्मा एक नहीं कई हुए हैं और समय-समय पर अपने कार्यों और ज्ञान से वो सृष्टि के विकास में सहायक हुए हैं.

पटनाः देवताओं के शिल्पी, निर्माण और सृजन के देवता (God Of Creation) कहे जाने वाले भगवान विश्वकर्मा (Lord Vishwakarma Puja 2022) की पूजा हर साल की भांति इस साल भी 17 सितंबर को यानि आज है. शनिवार को चंद्रमा वृष राशि में होंगे. राहुकाल 17 सितंबर को 9 बजे से 10 बजकर 30 मिनट तक रहेगा. विश्वकर्मा पूजा शुभ मुहूर्त चौघड़िया सुबह 7 बजकर 38 से 9 बजकर 11 मिनट तक है और लाभ चौघड़िया दोपहर 1 बजकर 47 से 3 बजकर 20 मिनट तक रहेगा.

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आज के दिन विशेष तौर पर औजारों, निर्माण कार्य से जुड़ी मशीनों, दुकानों, कारखानों आदि की पूजा की जाती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा की कृपा से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, व्यापार में तरक्की और उन्नति होती है. जो भी कार्य प्रारंभ किए जाते हैं, वे पूरे होते हैं. भगवान विश्वकर्मा को संसार का पहला इंजीनियर भी कहा जाता है.

विश्वकर्मा पूजा का मुहूर्त: 17 सितंबर को एक घंटे 30 मिनट तक राहुकाल रहेगा. इस दौरान विश्वकर्मा पूजन की मनाही है. आदि शिल्पी की जयंती पर राहुकाल की शुरुआत पूर्वाह्न 7 बजकर 38 से 9 बजकर 11 तक कर सकते हैं. वाहनों की पूजा राहुकाल के बाद 12 बजकर 15 मिनट से 1 बजकर 46 तक कर सकते हैं. वहीं कल कारखाने में भी विश्वकर्मा पूजा का समय दोपहर 12 से 1 बजकर 46 तक शुभ रहेगा.

विश्वकर्मा पूजा के लिए अपने कामकाज में उपयोग में आने वाली मशीनों को साफ करना चाहिए. फिर स्नान करके भगवान विष्णु के साथ विश्वकर्माजी की प्रतिमा की विधिवत पूजा करनी चाहिए. ऋतुफल, मिष्ठान्न, पंचमेवा, पंचामृत का भोग लगाना चाहिए. दीप-धूप आदि जलाकर दोनों देवताओं की आरती उतारनी चाहिए. इससे मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.

भगवान विश्वकर्मा के जन्म को लेकर शास्त्रों में अलग-अलग कथाएं प्रचलित हैं. वराह पुराण के अनुसार ब्रह्माजी ने विश्वकर्मा को धरती पर उत्पन्न किया. वहीं विश्वकर्मा पुराण के अनुसार, आदि नारायण ने सर्वप्रथम ब्रह्माजी और फिर विश्वकर्मा जी की रचना की. भगवान विश्वकर्मा के जन्म को देवताओं और राक्षसों के बीच हुए समुद्र मंथन से भी जोड़ा जाता है.

इस तरह भगवान विश्वकर्मा के जन्म को लेकर शास्त्रों में जो कथाएं मिलती हैं, उससे ज्ञात होता है कि विश्वकर्मा एक नहीं कई हुए हैं और समय-समय पर अपने कार्यों और ज्ञान से वो सृष्टि के विकास में सहायक हुए हैं.

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