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प्रभारी कुलपतियों के भरोसे विश्वविद्यालयों में चलाया जा रहा काम, शिक्षा व्यवस्था हो रही प्रभावित - आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय

बिहार के 14 विश्वविद्यालयों में से 5 में कुलपति के पद खाली हैं. प्रभारी कुलपतियों के भरोसे काम चलाया जा रहा है. इसके चलते शिक्षा व्यवस्था प्रभावित हो रही है. राजभवन और सरकार जिस प्रकार से कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर काम कर रही है इस पर शिक्षा विशेषज्ञ सवाल खड़े कर रहे हैं.

raj bhawan
राजभवन
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Published : Apr 13, 2021, 9:27 PM IST

पटना: बिहार के कई विश्वविद्यालयों में कुलपति के पद लंबे समय से रिक्त पड़े हैं और प्रभारी कुलपतियों के भरोसे विश्वविद्यालयों का काम चलाया जा रहा है. विश्वविद्यालयों में वीसी ही नहीं प्रो वीसी का पद भी लंबे समय से खाली पड़े हैं. बिहार के 14 विश्वविद्यालयों में से 5 विश्वविद्यालयों में कुलपति का पद प्रभार में चल रहा है. राजभवन और सरकार जिस प्रकार से कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर काम कर रही है. इस पर शिक्षा विशेषज्ञ सवाल खड़े कर रहे हैं.

यह भी पढ़ें- पूर्णिया विश्वविद्यालय में कोरोना विस्फोट, एक साथ 9 मरीज मिलने से हड़कंप

vice chancellor post vacant
ईटीवी भारत इन्फोग्राफिक्स

इन्हें मिला है प्रभार
पाटलिपुत्र नया विश्वविद्यालय है इसके बावजूद इसमें कुलपति का पद काफी समय से खाली पड़ा है. ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सुरेंद्र प्रताप सिंह को इस विश्वविद्यालय का प्रभार दिया गया है. नालंदा खुला विश्वविद्यालय के कुलपति का पद का प्रभार बीआर अंबेडकर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर एच. एन. पांडे को दिया गया है.

मुंगेर विश्वविद्यालय के कुलपति का प्रभार तिलकामांझी विश्वविद्यालय भागलपुर के कुलपति प्रोफेसर नीलिमा गुप्ता को दिया गया है. पूर्णिया विश्वविद्यालय के कुलपति का प्रभार प्रोफेसर आर. एन. यादव को दिया गया है. वहीं, आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति का प्रभार प्रोफेसर एस. करीम को दिया गया है. दोनों विश्वविद्यालयों में प्रो वीसी को ही यह प्रभार दिया गया है. ऊपर के तीनों विश्वविद्यालय में प्रो वीसी का पद भी लंबे समय से खाली पड़ा है.

देखें रिपोर्ट
डायरेक्टर का पद भी है खाली
बिहार के प्रमुख शोध संस्थान एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट में 2 साल से डायरेक्टर का पद खाली है. दो बार प्रक्रिया शुरू हुई, लेकिन योग्य उम्मीदवार सरकार को नहीं मिला. शिक्षा क्षेत्र के विशेषज्ञों के अनुसार विश्वविद्यालयों में वीसी के पद रिक्त होने के कारण शैक्षणिक और अन्य गतिविधियों पर खासा असर पड़ता है.
पद खाली रहने का असर
कुलपति के नहीं रहने से एकेडमिक कैलेंडर पर असर पड़ता है.
  • विश्वविद्यालय के प्रशासनिक गतिविधियों पर असर पड़ता है.
  • शिक्षक और कर्मचारी के कामकाज से लेकर प्रमोशन पर भी असर पड़ता है.
  • विश्वविद्यालय और उससे संबंधित कॉलेजों से जुड़े बड़े फैसले प्रभारी कुलपति नहीं ले पाते हैं.
  • प्रभारी कुलपतियों को वित्तीय अधिकार नहीं होता.
  • कोई भी बड़ा फैसला लेने से पहले राजभवन से अनुमति लेनी होती है, अधिकांश कुलपति इससे बचते हैं.

सिर्फ बिहार में है ऐसी स्थिति
"यह स्थिति केवल बिहार में ही है. दूसरे राज्यों में ऐसी स्थिति पैदा ही नहीं होती है. कोलकाता यूनिवर्सिटी में कभी भी कुलपति का पद खाली नहीं होता है. खाली होने से काफी पहले कुलपति नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू हो जाती है, लेकिन बिहार में हमेशा किसी न किसी विश्वविद्यालय में कुलपति का पद रिक्त रहता है.- प्रो रणधीर, पूर्व प्रोफेसर, पटना विश्वविद्यालय

Professor Randhir
प्रोफेसर रणधीर

"नीतीश सरकार उच्च शिक्षा को लेकर गंभीर नहीं है. कुलपति का पद लंबे समय से खाली पड़ा है लेकिन इनके बीच कोई सामंजस्य नहीं बन पा रहा है. जब तक सामंजस्य नहीं बनेगा तब तक कुलपति का पद खाली रहेगा."- भाई वीरेंद्र, प्रवक्ता, राजद

Bhai Virendra
राजद प्रवक्ता भाई वीरेंद्र
पद खाली रहने का यह है कारण
शिक्षाविद कहते हैं कि चयन प्रक्रिया के बाद भी यह तय नहीं है कि कुलपति की नियुक्ति हो जाए. क्योंकि आवेदन करने वालों में से यदि सरकार के मनपसंद लोग नहीं मिले या फिर सत्ता में शामिल दलों के मनपसंद के नहीं हुए तो उनमें से किसी का चयन होना संभव नहीं है. ऐसे में फिर से चयन प्रक्रिया शुरू होती है. लंबे समय तक कुलपति के पद रिक्त रहने का यह बड़ा कारण है.

बिहार के सबसे पुराने शोध संस्थान एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. पिछले 2 साल से यहां निदेशक का पद खाली पड़ा है. पूरी प्रक्रिया के बाद भी निदेशक की नियुक्ति नहीं हो सकी, क्योंकि पसंद का व्यक्ति नहीं मिला. यही स्थिति विश्वविद्यालयों में भी होती है.

वीसी नियुक्ति के लिए चल रही प्रक्रिया
कुछ विश्वविद्यालयों में चयन प्रक्रिया चल रही है, लेकिन कुछ मैं अभी तक शुरू भी नहीं हुई है. जिन विश्वविद्यालयों में प्रक्रिया शुरू हुई है उसमें सिर्फ आवेदन लिया गया है. अभी सेलेक्शन कमेटी के गठन से लेकर इंटरव्यू तक का लंबा फेज शुरू होना है. ऐसे में जब सभी विश्वविद्यालयों में सत्र शुरू होने वाला है और कोरोना संक्रमण का समय है, तय है कि स्थायी कुलपति के लिए विश्वविद्यालयों को अभी और इंतजार करना पड़ेगा.

यह भी पढ़ें- कोरोना के चलते स्कूल-कॉलेज बंद, हाजिरी के लिए 20-30 KM सफर करने को मजबूर हैं शिक्षक

यह भी पढ़ें- लड़कियों की शिक्षा से बही बदलाव की बयार, सामाजिक बदलाव में बेटियां निभा रहीं अहम भूमिका

पटना: बिहार के कई विश्वविद्यालयों में कुलपति के पद लंबे समय से रिक्त पड़े हैं और प्रभारी कुलपतियों के भरोसे विश्वविद्यालयों का काम चलाया जा रहा है. विश्वविद्यालयों में वीसी ही नहीं प्रो वीसी का पद भी लंबे समय से खाली पड़े हैं. बिहार के 14 विश्वविद्यालयों में से 5 विश्वविद्यालयों में कुलपति का पद प्रभार में चल रहा है. राजभवन और सरकार जिस प्रकार से कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर काम कर रही है. इस पर शिक्षा विशेषज्ञ सवाल खड़े कर रहे हैं.

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vice chancellor post vacant
ईटीवी भारत इन्फोग्राफिक्स

इन्हें मिला है प्रभार
पाटलिपुत्र नया विश्वविद्यालय है इसके बावजूद इसमें कुलपति का पद काफी समय से खाली पड़ा है. ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सुरेंद्र प्रताप सिंह को इस विश्वविद्यालय का प्रभार दिया गया है. नालंदा खुला विश्वविद्यालय के कुलपति का पद का प्रभार बीआर अंबेडकर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर एच. एन. पांडे को दिया गया है.

मुंगेर विश्वविद्यालय के कुलपति का प्रभार तिलकामांझी विश्वविद्यालय भागलपुर के कुलपति प्रोफेसर नीलिमा गुप्ता को दिया गया है. पूर्णिया विश्वविद्यालय के कुलपति का प्रभार प्रोफेसर आर. एन. यादव को दिया गया है. वहीं, आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति का प्रभार प्रोफेसर एस. करीम को दिया गया है. दोनों विश्वविद्यालयों में प्रो वीसी को ही यह प्रभार दिया गया है. ऊपर के तीनों विश्वविद्यालय में प्रो वीसी का पद भी लंबे समय से खाली पड़ा है.

देखें रिपोर्ट
डायरेक्टर का पद भी है खाली
बिहार के प्रमुख शोध संस्थान एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट में 2 साल से डायरेक्टर का पद खाली है. दो बार प्रक्रिया शुरू हुई, लेकिन योग्य उम्मीदवार सरकार को नहीं मिला. शिक्षा क्षेत्र के विशेषज्ञों के अनुसार विश्वविद्यालयों में वीसी के पद रिक्त होने के कारण शैक्षणिक और अन्य गतिविधियों पर खासा असर पड़ता है.
पद खाली रहने का असर
कुलपति के नहीं रहने से एकेडमिक कैलेंडर पर असर पड़ता है.
  • विश्वविद्यालय के प्रशासनिक गतिविधियों पर असर पड़ता है.
  • शिक्षक और कर्मचारी के कामकाज से लेकर प्रमोशन पर भी असर पड़ता है.
  • विश्वविद्यालय और उससे संबंधित कॉलेजों से जुड़े बड़े फैसले प्रभारी कुलपति नहीं ले पाते हैं.
  • प्रभारी कुलपतियों को वित्तीय अधिकार नहीं होता.
  • कोई भी बड़ा फैसला लेने से पहले राजभवन से अनुमति लेनी होती है, अधिकांश कुलपति इससे बचते हैं.

सिर्फ बिहार में है ऐसी स्थिति
"यह स्थिति केवल बिहार में ही है. दूसरे राज्यों में ऐसी स्थिति पैदा ही नहीं होती है. कोलकाता यूनिवर्सिटी में कभी भी कुलपति का पद खाली नहीं होता है. खाली होने से काफी पहले कुलपति नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू हो जाती है, लेकिन बिहार में हमेशा किसी न किसी विश्वविद्यालय में कुलपति का पद रिक्त रहता है.- प्रो रणधीर, पूर्व प्रोफेसर, पटना विश्वविद्यालय

Professor Randhir
प्रोफेसर रणधीर

"नीतीश सरकार उच्च शिक्षा को लेकर गंभीर नहीं है. कुलपति का पद लंबे समय से खाली पड़ा है लेकिन इनके बीच कोई सामंजस्य नहीं बन पा रहा है. जब तक सामंजस्य नहीं बनेगा तब तक कुलपति का पद खाली रहेगा."- भाई वीरेंद्र, प्रवक्ता, राजद

Bhai Virendra
राजद प्रवक्ता भाई वीरेंद्र
पद खाली रहने का यह है कारण
शिक्षाविद कहते हैं कि चयन प्रक्रिया के बाद भी यह तय नहीं है कि कुलपति की नियुक्ति हो जाए. क्योंकि आवेदन करने वालों में से यदि सरकार के मनपसंद लोग नहीं मिले या फिर सत्ता में शामिल दलों के मनपसंद के नहीं हुए तो उनमें से किसी का चयन होना संभव नहीं है. ऐसे में फिर से चयन प्रक्रिया शुरू होती है. लंबे समय तक कुलपति के पद रिक्त रहने का यह बड़ा कारण है.

बिहार के सबसे पुराने शोध संस्थान एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. पिछले 2 साल से यहां निदेशक का पद खाली पड़ा है. पूरी प्रक्रिया के बाद भी निदेशक की नियुक्ति नहीं हो सकी, क्योंकि पसंद का व्यक्ति नहीं मिला. यही स्थिति विश्वविद्यालयों में भी होती है.

वीसी नियुक्ति के लिए चल रही प्रक्रिया
कुछ विश्वविद्यालयों में चयन प्रक्रिया चल रही है, लेकिन कुछ मैं अभी तक शुरू भी नहीं हुई है. जिन विश्वविद्यालयों में प्रक्रिया शुरू हुई है उसमें सिर्फ आवेदन लिया गया है. अभी सेलेक्शन कमेटी के गठन से लेकर इंटरव्यू तक का लंबा फेज शुरू होना है. ऐसे में जब सभी विश्वविद्यालयों में सत्र शुरू होने वाला है और कोरोना संक्रमण का समय है, तय है कि स्थायी कुलपति के लिए विश्वविद्यालयों को अभी और इंतजार करना पड़ेगा.

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