पटना: जनता दल यूनाइटेड (Janta Dal United) में ऐसे तो पार्टी में अभी सभी पुराने पद धारक काम कर रहे हैं. यहां तक कि नागालैंड में जो चुनाव हो रहा है, उसकी भी सूची राष्ट्रीय महासचिव अफाक खान के सिग्नेचर से हो रही है. जो पहले से बने हुए हैं. लेकिन उपेंद्र कुशवाहा के मामले में पार्टी दोहरी नीति अपना रही है. सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) के कभी नजदीकी रहे प्रेम कुमार मणि का कहना है कि पार्टी में अब लोकतंत्र नहीं रहा है. पार्टी नेता आप से नाराज हैं तो जो वह फैसला लेंगे वही सही है.
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उपेंद्र कुशवाहा को लेकर JDU में मचा घमासान : कभी नीतीश कुमार के नजदीकी रहे प्रेम कुमार मणि को भी जदयू से बाहर का रास्ता दिखाया गया था. प्रेम कुमार मणि का कहना है कि यदि राजनीतिक पार्टियों में आपका नेता से रंज है तो आपको हटा दिया जाएगा. आपसे खुश हैं तो आप महत्वपूर्ण भूमिका में हैं. वो आरसीपी सिंह का उदाहरण भी देते हैं, कि वो राष्ट्रीय अध्यक्ष थे तो सब ठीक था. लेकिन मतभेद के बाद उनके साथ क्या हुआ?, पार्टी में उनकी कोई औकात नहीं रह गई. नेता के प्रति समर्पित नहीं हैं तो कितने ही बड़े पद पर क्यों न हो जाए?, चाहो वो संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष ही क्यों ना हो, आज पेंडुलम की तरह डोल रहे हैं.
'जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह मौखिक कार्रवाई कर रहे हैं, लिखित रूप से कुछ कर नहीं रहे हैं. जबकि सच्चाई यही है की पार्टी में आज भी जो पहले के पद धारक हैं, वही काम कर रहे हैं. उन्हीं के सिग्नेचर से लेटर निकल रहा है. नागालैंड चुनाव में पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव आफाक खान के लेटर से ही सूची जारी हो रही है. प्रवक्ता भी वही हैं. जदयू की तरफ से उपेंद्र कुशवाहा शहीद ना हो जाए, इससे बचा जा रहा है और उसका बड़ा कारण है कि उपेंद्र कुशवाहा, कुशवाहा समाज के बड़े नेता हैं. पार्टी को डर है कि कुशवाहा वोट उनके साथ चला जाएगा.' - रवि उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार
'कुशवाहा समाज को कई बड़े नेता हैं' : वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय आगे कहते हैं कि कुशवाहा के कारण ही आज कई दलों में कुशवाहा नेता उभरकर सामने आए हैं. आरजेडी में आलोक मेहता, बीजेपी में सम्राट चौधरी इसका उदाहरण है. जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह के नजदीकी माने जाने वाले पार्टी के मुख्य प्रवक्ता नीरज कुमार उपेंद्र कुशवाहा को लेकर कुछ बोलने से बच रहे हैं. नीरज का कहना है कि पार्टी के नेता नीतीश कुमार हैं. उनके साथ सभी नेता और कार्यकर्ता हैं. वहीं जदयू में प्रखंड अध्यक्ष से लेकर राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव काफी पहले संपन्न हो चुका है. लेकिन न तो प्रदेश में कार्यकारिणी का गठन हुआ है और ना ही राष्ट्रीय कार्यकारिणी का ही गठन हुआ है.
उपेंद्र कुशवाहा को लेकर असमंजस में JDU : पार्टी में पुरानी कार्यकारिणी को भंग नहीं किया गया है, जो पुरानी कार्यकारिणी है, चाहे वह प्रकोष्ठ अध्यक्ष हो या सदस्य या फिर संगठन में जो महत्वपूर्ण पदों पर लोग हैं, सारा काम वही कर रहे हैं. ऐसे में उपेंद्र कुशवाहा को लेकर पार्टी जो रणनीति अपना रही है उसका बड़ा कारण यह है कि जदयू उपेंद्र कुशवाहा को शहीद नहीं होना देना चाहती है, जिससे लव कुश वोट पर असर पड़े. और इसीलिए ऐसा एक्शन कर रही है कि उपेंद्र कुशवाहा खुद मजबूर होकर पार्टी से बाहर हो जाएं. पार्टी उसी रणनीति पर अब काम कर रही है.
उपेंद्र कुशवाहा को लेकर पार्टी में मचा घमासान : गौरतलब है कि जदयू में उपेंद्र कुशवाहा को लेकर घमासान मचा हुआ है. एक तरफ राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह और प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा कह रहे हैं कि वो अब जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष पद पर नहीं हैं. अब वह केवल एक प्राथमिक सदस्य रह गए हैं. जबकि उपेंद्र कुशवाहा कह रहे हैं कि- 'हम कागज पर संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. लेकिन मौखिक रूप से मैं पार्टी में किसी पद पर नहीं हूं. यही तो मैं कह रहा था कि मुझे झुनझुना थमा दिया गया है.'