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'तेजू भैया' का हर अंदाज निराला है, बिहार की राजनीति भी खाती है 'हिचकोले'

बिहार के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री व राजद विधायक तेज प्रताप यादव अपनी विशेष शैली के कारण सूबे की राजनीति में चर्चा के केंद्र में रहते हैं. राजद सुप्रीमो लालू यादव (RJD Supremo Lalu Yadav) के बाद तेजप्रताप यादव बेबाक और खास अंदाज में अपनी बात रखते हैं. इसी मुद्दे पर आइये, पढ़ें ये विशेष रिपोर्ट..

Tej Pratap Yadav
Tej Pratap Yadav
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Published : Jul 14, 2021, 1:04 PM IST

पटना: राजद सुप्रीमो लालू यादव (RJD supremo Lalu Yadav) के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव (Tej Pratap Yadav) ठेठ लालू अंदाज को लेकर चलते हैं और उसकी छाप भी कई जगह दिख जाती है. तेज प्रताप की हर बात वैसे नेताओं के लिए हंसी और ठहाके जैसी हो जाती है जो बड़ी गंभीर राजनीति की बात करते हैं. लेकिन जिस राजनीति को तेज प्रताप हंसी-हंसी में कर जाते हैं, उसका जवाब दे पाना बड़े-बड़े राजनेताओं के बस के बाहर की बात हो जा रही है.

ये भी पढ़ें: नाव पर कुर्सी और उस पर तेजप्रताप... लालू पूछे- 'का हाल बा'

मथुरा में जा कर पूजा करने की बात हो या फिर दूसरे तरह के कपड़े पहनकर कोई छवि बनाने की, तेज प्रताप का यह अंदाज बिहार की राजनीति (Bihar Politics) में बिल्कुल अलग है. यही नहीं, राजनेता होते हुए भी तेज प्रताप ने एलआर ब्रांड को बिहार में स्थापित करने के लिए जिस अगरबत्ती को बनाया है, उसने बिहार की सियासत को राजनीतिक रंग में घोलकर धुंआ-धुंआ कर दिया.

तेज प्रताप यादव बाढ़ का जायजा लेने अपने विधानसभा क्षेत्र हसनपुर पहुंचे तो वहां लालू यादव का पूरा अंदाज देखने को मिला. नाव पर कुर्सी लगाई और उस पर बैठ गए. रास्ते में भैंस चरा रहा एक व्यक्ति मिला तो फोन लगाकर अपने पिता से उसकी बात करवा दी. चर्चा यहीं से शुरू हुई कि तेज में पिता का राजनीतिक अक्स दिखता है. बिहार की राजनीति में लालू यादव का एक अपना अंदाज है.

लालू का यही अंदाज उन्हें दूसरे राजनेताओं से अलग भी करता था. हालांकि की बदली सियासत में अरिस्टोक्रेट टाइप की हुई राजनीति में लग्जरी गाड़ियों का काफिला और दबंग चेहरे की सियासत ने बहुत कुछ बदला. लेकिन गांव की सियासत करने वाले नेताओं की कमी भी साथ-साथ खड़ी कर दी.

तेज प्रताप जिस अंदाज में रहते हैं और जो उनका जवाब होता है, कई बार स्थिति ऐसी बन जाती है कि उनकी पार्टी के लोग ही असहज हो जाते हैं. तेज प्रताप इससे कभी अलग नहीं जाते. मुद्दों को उठाने में हर मंच पर बेबाक रहते हैं और यही वजह है कि राजद के 25 वें स्थापना दिवस पर जगदानंद सिंह को मंच से ही कह दिए कि लगता है कि चाचा जगदानंद हमसे नाराज रहते हैं. सियासत में तेज प्रताप यह भी नहीं सोचते कि जो बयान दे रहे हैं, उसके कल राजनीतिक मायने क्या होंगे. लेकिन अपनी बेदाग छवि से किसी भी विषय को बोलने में अगर ठेठ बिहारी भाषा में कहा जाए तो 'गर्दा उड़ा' देते हैं.

तेजप्रताप का हर रंग बड़ा अनोखा होता है. हसनपुर अपने विधानसभा क्षेत्र में पहुंचे थे. वहां बाढ़ प्रभावित इलाकों का भ्रमण करने के दौरान नाव पर कुर्सी लगाकर बैठ गए. एक चरवाहा मिला तो फोन लगाकर लालू यादव से उसकी बात करवा दी. अब इस पर भी सियासत हंसेगी या हंस करके सियासत होगी लेकिन बड़ा सवाल यही है कि विपक्ष तेज प्रताप की इस जमीनी राजनीति का क्या जवाब देगा.

पटना में बैठकर होने वाली सियासत और बयानबाजी को अलग कर दें तो सियासत के जिस रंग को तेज प्रताप ने दिया है. अगर हर राजनेता इसी तरह से जमीन पर उतर जाए तो जनता की पीड़ा व फरियाद नेता तक जरूर पहुंच जाएगी. तेज प्रताप सबसे अलग इसलिए भी दिख रहे हैं कि बाढ़ और कोरोना का हवाला देकर राजनेता घर से बाहर नहीं निकल रहे हैं.

जबकि तेज प्रताप ने जिस रंग को दिखाया है, विपक्ष को इसका उत्तर देने के लिए कई नेताओं को नाव पर बैठाना होगा. भैंस चराने वालों से बात करवानी होगी और शायद पार्टी के अध्यक्ष को यह पूछना होगा कि 'का हो, का हाल बा' तभी तेज प्रताप के विपक्षी उनकी इस सियासत का जवाब दे पाएंगे. नहीं तो ठंडे घर में बैठकर बंद कमरे की सियासत तो बिहार में चल ही रही है.

तेज प्रताप का एक और अंदाज भी काफी चर्चा में है. राजनीति जनहित की होनी चाहिए और राजनेता के लिए आवश्यक भी है. जनहित के लिए अगर कोई व्यवसाय किया जाए और वह भी राजनेता करें तो हर स्थिति में यह सरकार के लिए बेहतर होता है. नीतीश सरकार (CM Nitish Kumar) को सभी विधायकों को कोई निर्देश देना चाहिए की वे लोग उद्यमी बने और अपने क्षेत्र में बिहार के लोगों को रोजगार दें. तेज प्रताप ने अगरबत्ती बनाई तो कुछ लोगों के रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे.

अब बिहार में कई सालों से रोजगार का सृजन नहीं हो रहा और राजनीति का रोजगार काफी तेजी से ऊपर उठ रहा है. ऐसे में राजनीति करने वाले अगर रोजगार में आ जाए तो बिहार का भला हो सकता है. तेज प्रताप ने इसे करके दिखा दिया. विपक्षी भी कम से कम अगरबत्ती का जवाब मोमबत्ती बनाकर दे दें तो बिहार में विकास का एक नया उजाला आने वाले समय में देखा जा सकता है.

बिहार में जितने विपक्षी दल हैं, उनके लिए तेज प्रताप यादव एक मुद्दा जरूर हैं लेकिन तेज प्रताप यादव अपने काम से जिन मुद्दों को खड़ा कर रहे हैं उसका जवाब शायद ही विपक्ष के पास हो. बिहार में रोजगार नहीं है तो अगरबत्ती ही सही. कुछ लोगों को ही सही लेकिन रोजगार का अवसर तो दे ही दिया.

बिहार में बाढ़ है तो सबको नहीं लेकिन अपने विधानसभा क्षेत्र का दौरा कर यह बता दिया कि उनके बीच हैं. तेज प्रताप की इस राजनीति को सही नजरिए से उन नेताओं को जरूर सोचना चाहिए जो वोट मांगने जनता के बीच तो जाते हैं लेकिन जब जनता को उनकी जरूरत होती है तो जाने से कतराते हैं.

पटना: राजद सुप्रीमो लालू यादव (RJD supremo Lalu Yadav) के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव (Tej Pratap Yadav) ठेठ लालू अंदाज को लेकर चलते हैं और उसकी छाप भी कई जगह दिख जाती है. तेज प्रताप की हर बात वैसे नेताओं के लिए हंसी और ठहाके जैसी हो जाती है जो बड़ी गंभीर राजनीति की बात करते हैं. लेकिन जिस राजनीति को तेज प्रताप हंसी-हंसी में कर जाते हैं, उसका जवाब दे पाना बड़े-बड़े राजनेताओं के बस के बाहर की बात हो जा रही है.

ये भी पढ़ें: नाव पर कुर्सी और उस पर तेजप्रताप... लालू पूछे- 'का हाल बा'

मथुरा में जा कर पूजा करने की बात हो या फिर दूसरे तरह के कपड़े पहनकर कोई छवि बनाने की, तेज प्रताप का यह अंदाज बिहार की राजनीति (Bihar Politics) में बिल्कुल अलग है. यही नहीं, राजनेता होते हुए भी तेज प्रताप ने एलआर ब्रांड को बिहार में स्थापित करने के लिए जिस अगरबत्ती को बनाया है, उसने बिहार की सियासत को राजनीतिक रंग में घोलकर धुंआ-धुंआ कर दिया.

तेज प्रताप यादव बाढ़ का जायजा लेने अपने विधानसभा क्षेत्र हसनपुर पहुंचे तो वहां लालू यादव का पूरा अंदाज देखने को मिला. नाव पर कुर्सी लगाई और उस पर बैठ गए. रास्ते में भैंस चरा रहा एक व्यक्ति मिला तो फोन लगाकर अपने पिता से उसकी बात करवा दी. चर्चा यहीं से शुरू हुई कि तेज में पिता का राजनीतिक अक्स दिखता है. बिहार की राजनीति में लालू यादव का एक अपना अंदाज है.

लालू का यही अंदाज उन्हें दूसरे राजनेताओं से अलग भी करता था. हालांकि की बदली सियासत में अरिस्टोक्रेट टाइप की हुई राजनीति में लग्जरी गाड़ियों का काफिला और दबंग चेहरे की सियासत ने बहुत कुछ बदला. लेकिन गांव की सियासत करने वाले नेताओं की कमी भी साथ-साथ खड़ी कर दी.

तेज प्रताप जिस अंदाज में रहते हैं और जो उनका जवाब होता है, कई बार स्थिति ऐसी बन जाती है कि उनकी पार्टी के लोग ही असहज हो जाते हैं. तेज प्रताप इससे कभी अलग नहीं जाते. मुद्दों को उठाने में हर मंच पर बेबाक रहते हैं और यही वजह है कि राजद के 25 वें स्थापना दिवस पर जगदानंद सिंह को मंच से ही कह दिए कि लगता है कि चाचा जगदानंद हमसे नाराज रहते हैं. सियासत में तेज प्रताप यह भी नहीं सोचते कि जो बयान दे रहे हैं, उसके कल राजनीतिक मायने क्या होंगे. लेकिन अपनी बेदाग छवि से किसी भी विषय को बोलने में अगर ठेठ बिहारी भाषा में कहा जाए तो 'गर्दा उड़ा' देते हैं.

तेजप्रताप का हर रंग बड़ा अनोखा होता है. हसनपुर अपने विधानसभा क्षेत्र में पहुंचे थे. वहां बाढ़ प्रभावित इलाकों का भ्रमण करने के दौरान नाव पर कुर्सी लगाकर बैठ गए. एक चरवाहा मिला तो फोन लगाकर लालू यादव से उसकी बात करवा दी. अब इस पर भी सियासत हंसेगी या हंस करके सियासत होगी लेकिन बड़ा सवाल यही है कि विपक्ष तेज प्रताप की इस जमीनी राजनीति का क्या जवाब देगा.

पटना में बैठकर होने वाली सियासत और बयानबाजी को अलग कर दें तो सियासत के जिस रंग को तेज प्रताप ने दिया है. अगर हर राजनेता इसी तरह से जमीन पर उतर जाए तो जनता की पीड़ा व फरियाद नेता तक जरूर पहुंच जाएगी. तेज प्रताप सबसे अलग इसलिए भी दिख रहे हैं कि बाढ़ और कोरोना का हवाला देकर राजनेता घर से बाहर नहीं निकल रहे हैं.

जबकि तेज प्रताप ने जिस रंग को दिखाया है, विपक्ष को इसका उत्तर देने के लिए कई नेताओं को नाव पर बैठाना होगा. भैंस चराने वालों से बात करवानी होगी और शायद पार्टी के अध्यक्ष को यह पूछना होगा कि 'का हो, का हाल बा' तभी तेज प्रताप के विपक्षी उनकी इस सियासत का जवाब दे पाएंगे. नहीं तो ठंडे घर में बैठकर बंद कमरे की सियासत तो बिहार में चल ही रही है.

तेज प्रताप का एक और अंदाज भी काफी चर्चा में है. राजनीति जनहित की होनी चाहिए और राजनेता के लिए आवश्यक भी है. जनहित के लिए अगर कोई व्यवसाय किया जाए और वह भी राजनेता करें तो हर स्थिति में यह सरकार के लिए बेहतर होता है. नीतीश सरकार (CM Nitish Kumar) को सभी विधायकों को कोई निर्देश देना चाहिए की वे लोग उद्यमी बने और अपने क्षेत्र में बिहार के लोगों को रोजगार दें. तेज प्रताप ने अगरबत्ती बनाई तो कुछ लोगों के रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे.

अब बिहार में कई सालों से रोजगार का सृजन नहीं हो रहा और राजनीति का रोजगार काफी तेजी से ऊपर उठ रहा है. ऐसे में राजनीति करने वाले अगर रोजगार में आ जाए तो बिहार का भला हो सकता है. तेज प्रताप ने इसे करके दिखा दिया. विपक्षी भी कम से कम अगरबत्ती का जवाब मोमबत्ती बनाकर दे दें तो बिहार में विकास का एक नया उजाला आने वाले समय में देखा जा सकता है.

बिहार में जितने विपक्षी दल हैं, उनके लिए तेज प्रताप यादव एक मुद्दा जरूर हैं लेकिन तेज प्रताप यादव अपने काम से जिन मुद्दों को खड़ा कर रहे हैं उसका जवाब शायद ही विपक्ष के पास हो. बिहार में रोजगार नहीं है तो अगरबत्ती ही सही. कुछ लोगों को ही सही लेकिन रोजगार का अवसर तो दे ही दिया.

बिहार में बाढ़ है तो सबको नहीं लेकिन अपने विधानसभा क्षेत्र का दौरा कर यह बता दिया कि उनके बीच हैं. तेज प्रताप की इस राजनीति को सही नजरिए से उन नेताओं को जरूर सोचना चाहिए जो वोट मांगने जनता के बीच तो जाते हैं लेकिन जब जनता को उनकी जरूरत होती है तो जाने से कतराते हैं.

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