पटना: बिहार सरकार ने निर्णय लिया था कि 5 अप्रैल 2016 से राज्य में पूर्ण शराबबंदी कानून लागू होगा. इसके बाद विपक्ष ने सड़क से लेकर सदन तक सरकार को घेरने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार केंद्र सरकार से भी मांग कर बैठे कि पूरे देश में शराबबंदी कानून लागू होना चाहिए.
शराबबंदी को लेकर विपक्ष अब भी लगातार सत्ता पर हमलावर रहता है. इनका हमेशा से यही आरोप रहा है कि शराबबंदी महज दिखावा है जो कालाधंधा करने का एक जरिया है. असल में शराबबंदी पूर्णतः फेल साबित हुई है.
जब कम पड़ गए थे जेल...
वहीं शराबबंदी की जमीनी हकीकत टटोलने के लिए आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो इस कानून के तहत अब तक करीबन ढाई लाख लोग जेल जा चुके हैं. शायद आपको शराबबंदी का वो शुरुआती दौर याद हो जब शराब पीने के आरोप में लोग खूब जेल जाया करते थे. एक समय ऐसा आया था कि जेलों में कैदियों को रखने की कैपेसिटी कम पड़ गई थी. क्योंकि शराबी और अवैध धंधेबाज इस तेज धार वाले कानून की चपेट में धड़ल्ले से आ रहे थे.
शुरुआती दौर में जब शराबबंदी कानून लागू हुआ था, उस समय कड़े प्रावधान थे. इस वजह से बिहार की जेलो में क्षमता से अत्यधिक कैदी हो गए थे. कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद कानून में संशोधन किया गया था. दरअसल उस वक्त जिस वाहन या घर से शराब बरामद होती उस पूरे घर या वाहन को ही सील और जब्त कर लिया जाता था.
59 जेल में भरे हैं कैदी
अब जेल आईजी मिथिलेश कुमार की मानें तो जब से शराबबंदी कानून लागू हुआ है तब से अब तक करीब ढाई लाख लोग जेल की हवा खा चुके हैं. काफी लोग ऐसे भी हैं जो शराबबंदी कानून उल्लंघन मामले में एक नहीं बल्कि कई बार जेल जा चुके हैं. उन्होंने ईटीवी भारत से फोन पर बातचीत के दौरान बताया कि बिहार में छोटे-बड़े मिलाकर कुल 59 जेल हैं, जिसमें से 8 को सेंट्रल जेल का दर्जा दिया गया है. बिहार की जेलो में लगभग 45 हजार कैदियों को रखने की क्षमता है, जो इस समय कोविड-19 के दौरान भरे हुए हैं.
जेल आईजी ने बताया कि अभी तत्काल में 8 हजार कैदी शराब पीने या बेचने के मामले में जेल में बंद हैं. साथ ही उन्होंने कहा कि इन कैदियों को कितने दिन में रिहा करना है यह कोर्ट तय करता है. सामान्य दिनों में जब न्यायालय सुचारू रूप से चल रहा था तब महीने भर सजा काटने के बाद इन्हें अदालत के आदेश पर रिहा कर दिया जाता था. कोरोना महामारी में कोर्ट की कार्यवाही भी प्रभावित होने और लॉकडाउन की वजह से कैदी ज्यादा हो गए हैं. इस वजह से काफी सारे मामले भी अभी कोर्ट में लंबित हैं.
ये हैं आंकड़ें-
कोरोना पैंडेमिक के दौरान जेल प्रशासन ने निर्णय लिया है कि नए आ रहे कैदियों को सबसे पहले 14 दिनों तक क्वारंटीन किया जाए. इसके बाद ही सामान्य कैदियों के साथ रखा जाए. बिहार की 59 जेलों में पुरुष कैदियों को रखने की क्षमता 43 हजार 97 है. वहीं, महिला कैदी की क्षमता 18 हजार 23 है. बिहार सरकार कारा विभाग के अनुसार इन जेलों में कुल 44 हजार 9 सौ 20 लोगों को रखने की क्षमता है, जिसमें बिहार सरकार के आंकड़ों के मुताबिक के 1 अप्रैल 2020 तक 37 हजार 6 सौ 15 पुरुष कैदी हैं. कुल महिला कैदी 1 हजार 367 हैं. वहीं कुल कैदियों की संख्या 38 हजार 9 सौ 82 है.
- बिहार में छोटे-बड़े कुल 59 जेल
- 8 जेलों को सेंट्रल जेल का दर्जा
- पुरुष कैदियों को रखने की क्षमता 43,097
- महिला कैदियों को रखने की क्षमता 1,823
- कारा विभाग के अनुसार कुल 44, 920 लोगों के रखने की क्षमता
- 1 अप्रैल 2020 तक 37,615 पुरुष कैदी
- 1,367 महिला कैदी
- 38, 982 कुल कैदी
क्या कहते हैं डीजीपी?
शराबबंदी कानून को लेकर बिहार के डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे की मानें तो बिहार पुलिस इसको मिशन के रूप में लेती है. पुलिस को गुप्त सूचना मिलने पर त्वरित कार्रवाई की जाती है. उन्होंने कहा कि जब से शराबबंदी कानून लागू हुआ है लाखों लोगों को पर मुकदमा दर्ज कर उन्हें जेल भेजा गया है. साथ ही संलिप्त पाए गए सैकड़ों पुलिसकर्मियों पर भी कार्रवाई की गई है.
उन्होंने कहा कि शराबबंदी कानून के बाद से राज्य में अनुशासन को बल मिला है. इसलिए अराजकता में भी कमी आई है. पहले लोग नशे में धुत होकर बड़े-बड़े जुलूसों में आते थे. शराब पीकर कई तरह की अराजकता और अपराध को अंजाम देते थे. लेकिन ये सब अब बहुत हद तक नियंत्रित हो गया है. उन्होंने कहा कि समाज के लोगों को एक साफ-सुथरी दिशा भी मिली है.
लोगों को जागरूक करने की आवश्यकता
इसके साथ ही उन्होंने कहा कि लोगों को जागरूक करने की भी सख्त आवश्यकता है. जब लोग खुद जागरूक हो जाएंगे तो इन गतिविधियों पर खुद पूर्ण प्रतिबंध लग जाएगा. उन्होंने कहा कि बिहार में 200 जनसभाएं कर हमने खुद लोगों को जागरूक किया. जब शराब बंद नहीं हुई थी तो गरीबों ने अपनी आधी कमाई शराब में लुटाई. लेकिन अब हालात बदल गए हैं.
डीजीपी ने बताया कि हमारी डीजी सेल में हर दिन गुप्त सूचनाएं आती हैं जिसके आधार पर छापेमारी कर लोगों की गिरफ्तारी की जाती है. समाज में दो-चार परसेंट ऐसे लोग हैं जो कानून तोड़ रहे हैं. इनकी वजह से पूरा समाज गंदा हो रहा है. उन्होंने यह भी कहा कि जब शराब बंदी नहीं हुई थी तब एक जुलूस को नियंत्रण में रखने के लिए सैकड़ों जवान तैनात करने पड़ते थे लेकिन अब दस में ही काम चल जाता है.