पटना: आरजेडी ने इस बार लालू की गैरहाजिरी में लोकसभा चुनाव का सारा दारोमदार तेजस्वी यादव को सौंप दिया था. सिर्फ राष्ट्रीय जनता दल ही नहीं बल्कि बिहार में महागठबंधन का नेतृत्व भी तेजस्वी यादव के हाथ में ही था. मांझी, कुशवाहा और शरद यादव समेत तमाम दिग्गज तेजस्वी के नेतृत्व में ही चुनाव लड़े. लेकिन इस पहली ही लड़ाई में बुरी तरह फेल हो गए तेजस्वी.
करारी हार का ठीकरा तेजस्वी के माथे
लोकसभा चुनाव के नतीजों ने बिहार में सभी विपक्षी दलों को झकझोर कर रख दिया है. कांग्रेस ने तो अपने खाते में एक जीत दर्ज भी कर ली, लेकिन बिहार में विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली. बिहार में तेजस्वी ना सिर्फ राजद बल्कि पूरे महागठबंधन का नेतृत्व कर रहे थे. उन्हें महागठबंधन की ओर से भविष्य का सीएम भी प्रोजेक्ट किया जाता रहा है. ऐसे में गठबंधन की इतनी बड़ी हार पर अब विपक्ष इस करारी हार के लिए तेजस्वी को ही जिम्मेदार मान रहे हैं.
धुरंधर हो गए धाराशाई
तेजस्वी के नेतृत्व में चुनाव लड़ रहे तमाम दिग्गज, चाहे वह पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी हों या पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा या फिर शरद यादव, सभी चुनाव हार गए . बीजेपी नेता मानते हैं कि तेजस्वी यादव के पास ना तो अनुभव है और ना ही काम करने की क्षमता. उन्हें तो बस लालू यादव का बेटा होने के कारण विरासत में ही सब कुछ बैठे-बिठाए मिल गया. अब तो उन्हें अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी बचाने की कवायद करनी चाहिए.
बैकफुट पर RJD
राजद नेता अब बैकफुट पर हैं. हार के कारणों की समीक्षा के लिए 28 और 29 मई को अहम बैठक बुलाई गई है. राजद नेता यह जरूर मानते हैं कि तेजस्वी की सभाओं में बहुत भीड़ उमड़ी और पार्टी के पास बड़ा वोट बैंक भी है, लेकिन यह भीड़ वोट में परिवर्तित क्यों नहीं हो पाई. इस बात की समीक्षा भी जरूर होगी.
सदन में RJD के एक भी सांसद नहीं
सोलहवीं लोक सभा में राजद के पास 4 सांसद थे. वहीं कांग्रेस के 2 सांसद लोकसभा में थे. लेकिन इस बार राजद का तो सूपड़ा ही साफ हो गया. जबकि कांग्रेस बमुश्किल 1 सीट पर जीत हासिल कर पाई. अब देखना है कि तेजस्वी के नेतृत्व में महागठबंधन के तमाम दल आगे भी साथ रहते हैं या फिर कोई नया नेतृत्व सामने आता है.