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जगदानंद सिंह के इस्तीफे के क्या हैं मायने..., क्या RJD में बड़े बदलाव की तैयारी में हैं तेजस्वी?

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Published : Jul 8, 2021, 6:32 PM IST

Updated : Jul 9, 2021, 7:02 PM IST

लालू यादव के जेल जाने के बाद से तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ही आरजेडी के तमाम बड़े फैसले लेते हैं. विधानसभा चुनाव भी पार्टी ने उनकी ही अगुवाई में ही लड़ा था, जिसकी लालू ने हाल में ही दिल खोलकर तारीफ भी की है. इसी के साथ अब चर्चा भी शुरू हो गई है कि क्या आने वाले वक्त में तेजस्वी को राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बनाया जा सकता है. क्योंकि लालू की सेहत भी ठीक नहीं रहती है और तेजस्वी की स्वीकार्यता भी पार्टी में मान ली गई है.

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पटना: आरजेडी के 25वें स्थापना दिवस (RJD Foundation Day) के अवसर पर तैयारी, चर्चा, भाषण, जिम्मेदारी और जवाबदेही का जो रंग दिखा, उससे एक बात तो साफ है कि तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने पूरी पार्टी की बागडोर संभाल ली है. हालांकि शुक्रवार को पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के इस्तीफे की खबर से भी कई तरह के राजनीतिक कयास लगाए जाने लगे. चर्चा इस बात की भी है कि क्या तेजस्वी पार्टी में बड़े बदलाव की तैयारी में हैं.

क्योंकि बताया जाता है कि तेजस्वी के नेतृत्व पर पार्टी के लोगों को भरोसा भी है और उनके नेतृत्व में लोग काम भी कर रहे हैं. पार्टी के अंदर उनकी नीतियों पर किसी को किसी तरह की दिक्कत नहीं है और पार्टी जिस तरीके से चल रही है, उसे खुद पार्टी बनाने वाले लालू यादव (Lalu Yadav) को भी किसी तरह का गुरेज नहीं है.

ये भी पढ़ें- RJD के स्थापना दिवस पर बोले लालू- आप लोग बढ़िया काम कर रहे हैं, आप लोगों को बधाई

लालू यादव की सेहत ठीक नहीं है, यह चेहरे से भी झलक रहा है और उनके भाषण से भी पता चल रहा है. पार्टी के अध्यक्षीय भाषण में उन्होंने कह दिया कि तेजस्वी ने जिस तरीके से पार्टी को संभाला है और जितनी मेहनत की है, मैं उनकी मेहनत के लिए उन्हें बधाई देता हूं. यहीं से बिहार में एक नई सियासत भी शुरू हो गई कि तेजस्वी यादव पार्टी की कमान अध्यक्ष के तौर पर कितने दिनों के बाद संभाल लेंगे.

राजनीतिक रूप से देखा जाए तो तेजस्वी यादव ने उम्र के लिहाज से जो राजनीति देखी है, वह निश्चित तौर पर दूसरे राजनीतिक नेताओं से छोटी हो सकती है लेकिन काम करने के नजरिए से देखा जाए तो जिस तरीके से तेजस्वी यादव ने राजद को देखा है, वह राजनीति के बड़े सफर की तरफ इशारा करता है.

तेजस्वी यादव सीधे तौर पर पार्टी के उन निर्णयों में तो दखल नहीं देते थे, जो लालू यादव के सामने होने पर होता था लेकिन उस चर्चा का हिस्सा जरूर बनते थे, जो पार्टी की नीतियों के लिए लालू यादव के साथ होता था. लालू के पुराने सहयोगी और आरजेडी परिवार में काफी घुले-मिले बिहार के एक पूर्व अधिकारी ने बताया कि तेजस्वी यादव की सबसे बड़ी खूबी है पार्टी की नीतियों को शालीनता से सुनना है और यही उनको पार्टी में सबसे अलग पहचान देती है.

ये भी पढ़ें- RJD के स्थापना दिवस पर बोले तेजस्वी- लालू नाम नहीं, बल्कि विचारधारा हैं, कैद नहीं कर सकते

तेजस्वी यादव अपने पिता लालू यादव से भले ही पार्टी की मजबूती को लेकर बहुत कुछ सीखे हों, लेकिन सरकारी कामकाज कैसे होता है, उसे कैसे किया जाता है और करवाना कैसे है. अगर तेजस्वी यादव को देखा जाए तो उस पर एक छाप उनके चहेते चाचा नीतीश कुमार की भी दिखती है. क्योंकि चाचा नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही तेजस्वी यादव पहली बार उप-मुख्यमंत्री के तौर पर बिहार सरकार में शामिल हुए और जो भी विभाग उन्हें मिले, उन विभागों का काम किया. जिसमें उद्देश्य बिल्कुल साफ था कि बिहार को अगर आगे बढ़ाना है तो नीतियों का स्पष्ट होना जरूरी है.

तेजस्वी यादव ने नीति को स्पष्ट कर राजनीति करने का जो एक मापदंड बनाया, उस पर उन्होंने खरा उतरने की कोशिश भी की है और उसे पार्टी ने लागू भी किए. एजेंडे पर टिके रहना सामान्य बात नहीं है. जो लोग महागठबंधन का हिस्सा थे, उसमें बात उपेंद्र कुशवाहा की रही हो या फिर जीतन राम मांझी की या फिर वीआईपी चीफ मुकेश साहनी की, ये तमाम लोग तेजस्वी के साथ थे, लेकिन बाद में अलग हो गए. खास बात ये रही कि एक साथ रहने पर भी इनके लिए स्पष्ट नीतियों का जो स्वरूप होना चाहिए, वह तेजस्वी ने बना रखा था और उससे तेजस्वी हटे भी नहीं.

राजनीतिक गलियारों में ये चर्चा पहले से ही रही है कि तेजस्वी यादव ही पार्टी चला रहे हैं. पार्टी में तेजस्वी की ही नीति चलती है. पार्टी का विधानसभा से लेकर सड़क तक क्या नीति होगी, यह भी तेजस्वी ही बताते हैं और नीतियां भी बनाते हैं. 25वीं वर्षगांठ के अवसर पर लालू यादव ने तेजस्वी यादव के इसी गुण का बखान किया. लालू यादव के इस बयान के बाद ही सियासी हलकों में इस बात की चर्चा शुरू हो गई है कि स्पष्ट तौर पर आरजेडी को लालू यादव के अध्यक्ष का उत्तराधिकारी मिल गया है.

लालू यादव ने दिल खोलकर के तेजस्वी का बखान किया और यह भी कहा कि जितने लोगों से तेजस्वी अकेले लड़े मैं तो डरा हुआ था कि क्या उससे यह निकल पाएगा, लेकिन मुझे खुशी है कि सिर्फ उससे तेजस्वी बाहर नहीं निकले, बल्कि पार्टी को मजबूती से खड़ा भी कर दिया.

ये भी पढ़ें- बोले लालू- 'तेजस्वी और हमारी पत्नी नहीं होतीं तो हमको रांची में ही खत्म कर देते'

सियासत में एक बात तो साफ रही है कि समाजवादियों के चेहरे की अगर बात की जाए तो कहते रहे हैं कि 'जब तक सड़क पर लड़ोगे नहीं सदन में टिक नहीं पाओगे'. तेजस्वी यादव ने अपने प्रतिद्वंद्वियों को सड़क पर लड़कर यह बता दिया कि उनमें सदन में भी टिकने की हिम्मत है और इसे लालू यादव ने प्रमाण पत्र भी दे दिया.

लालू यादव के इस बयान के बाद कि 'तेजस्वी ने सब को धूल चटा दिया पार्टी को मजबूत किए और सब से लड़ रहे हैं', यह साफ संकेत है कि पार्टी को मजबूती से खड़ा करने के लिए जो भी लड़ाई लड़नी है, उसमें सबसे मजबूत हाथ तेजस्वी हैं और तेजस्वी के हाथों में ही आने वाले समय में आरजेडी की बागडोर होगी, यह भी लगभग तय हो गया है.

दर्शन सियासत में किसी चीज का प्रसंग इसलिए भी उठ जाता है, क्योंकि राजनीति का नजरिया और लोगों की जरूरत शायद उसे समझने लगती है. लालू के तेजस्वी पर दिए गए बयान के बाद यह बात शुरू हो गई कि लालू का सेहत ठीक नहीं और राबड़ी देवी उनकी सेवा में हैं. ऐसे में पार्टी को मजबूती देना तेजस्वी के जिम्मे है.

हालांकि पार्टी के भीतर गतिरोध की बातें लगातार आती रही हैं और खासतौर से मीसा भारती, तेज प्रताप और वर्तमान में ट्विटर पर एक्टिव उनकी बेटी रोहिणी आचार्य का भी है कि शायद पार्टी स्तर पर भी उनकी दखल होती है, लेकिन लालू यादव के खुले मंच से इस बयान के बाद कि तेजस्वी पार्टी चला रहे हैं और सब से लड़ रहे हैं. परिवार के दूसरों लोगों की दखल और उनकी पार्टी में बड़ी भूमिका पर भी प्रश्न चिह्न लग गया है.

ये भी पढ़ें- हम आना चाह रहे थे लेकिन तेजस्वी बाजी मार लिए- तेज प्रताप

ऐसे में तेजस्वी ही पार्टी की कमान संभालेंगे यह बिल्कुल तय है, लेकिन लालू ने बड़े बेटे तेजप्रताप यादव (Tej Pratap Yadav) के लिए भी अपना स्नेह दिखा दिया कि बड़े बेटे को भी मेरी तरह बोलना आ गया है. हालांकि विपक्ष इस बात को लेकर जरूर चुटकीले अंदाज में बात कर रहा है, लेकिन एक बात तो साफ है कि लालू यादव ने तेजस्वी के लिए जिस अंदाज में चीजों को रखा है, आरजेडी अध्यक्ष के लिए नाम के ऐलान की औपचारिकता ही अब बाकी रह गई है.

पटना: आरजेडी के 25वें स्थापना दिवस (RJD Foundation Day) के अवसर पर तैयारी, चर्चा, भाषण, जिम्मेदारी और जवाबदेही का जो रंग दिखा, उससे एक बात तो साफ है कि तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने पूरी पार्टी की बागडोर संभाल ली है. हालांकि शुक्रवार को पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के इस्तीफे की खबर से भी कई तरह के राजनीतिक कयास लगाए जाने लगे. चर्चा इस बात की भी है कि क्या तेजस्वी पार्टी में बड़े बदलाव की तैयारी में हैं.

क्योंकि बताया जाता है कि तेजस्वी के नेतृत्व पर पार्टी के लोगों को भरोसा भी है और उनके नेतृत्व में लोग काम भी कर रहे हैं. पार्टी के अंदर उनकी नीतियों पर किसी को किसी तरह की दिक्कत नहीं है और पार्टी जिस तरीके से चल रही है, उसे खुद पार्टी बनाने वाले लालू यादव (Lalu Yadav) को भी किसी तरह का गुरेज नहीं है.

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लालू यादव की सेहत ठीक नहीं है, यह चेहरे से भी झलक रहा है और उनके भाषण से भी पता चल रहा है. पार्टी के अध्यक्षीय भाषण में उन्होंने कह दिया कि तेजस्वी ने जिस तरीके से पार्टी को संभाला है और जितनी मेहनत की है, मैं उनकी मेहनत के लिए उन्हें बधाई देता हूं. यहीं से बिहार में एक नई सियासत भी शुरू हो गई कि तेजस्वी यादव पार्टी की कमान अध्यक्ष के तौर पर कितने दिनों के बाद संभाल लेंगे.

राजनीतिक रूप से देखा जाए तो तेजस्वी यादव ने उम्र के लिहाज से जो राजनीति देखी है, वह निश्चित तौर पर दूसरे राजनीतिक नेताओं से छोटी हो सकती है लेकिन काम करने के नजरिए से देखा जाए तो जिस तरीके से तेजस्वी यादव ने राजद को देखा है, वह राजनीति के बड़े सफर की तरफ इशारा करता है.

तेजस्वी यादव सीधे तौर पर पार्टी के उन निर्णयों में तो दखल नहीं देते थे, जो लालू यादव के सामने होने पर होता था लेकिन उस चर्चा का हिस्सा जरूर बनते थे, जो पार्टी की नीतियों के लिए लालू यादव के साथ होता था. लालू के पुराने सहयोगी और आरजेडी परिवार में काफी घुले-मिले बिहार के एक पूर्व अधिकारी ने बताया कि तेजस्वी यादव की सबसे बड़ी खूबी है पार्टी की नीतियों को शालीनता से सुनना है और यही उनको पार्टी में सबसे अलग पहचान देती है.

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तेजस्वी यादव अपने पिता लालू यादव से भले ही पार्टी की मजबूती को लेकर बहुत कुछ सीखे हों, लेकिन सरकारी कामकाज कैसे होता है, उसे कैसे किया जाता है और करवाना कैसे है. अगर तेजस्वी यादव को देखा जाए तो उस पर एक छाप उनके चहेते चाचा नीतीश कुमार की भी दिखती है. क्योंकि चाचा नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही तेजस्वी यादव पहली बार उप-मुख्यमंत्री के तौर पर बिहार सरकार में शामिल हुए और जो भी विभाग उन्हें मिले, उन विभागों का काम किया. जिसमें उद्देश्य बिल्कुल साफ था कि बिहार को अगर आगे बढ़ाना है तो नीतियों का स्पष्ट होना जरूरी है.

तेजस्वी यादव ने नीति को स्पष्ट कर राजनीति करने का जो एक मापदंड बनाया, उस पर उन्होंने खरा उतरने की कोशिश भी की है और उसे पार्टी ने लागू भी किए. एजेंडे पर टिके रहना सामान्य बात नहीं है. जो लोग महागठबंधन का हिस्सा थे, उसमें बात उपेंद्र कुशवाहा की रही हो या फिर जीतन राम मांझी की या फिर वीआईपी चीफ मुकेश साहनी की, ये तमाम लोग तेजस्वी के साथ थे, लेकिन बाद में अलग हो गए. खास बात ये रही कि एक साथ रहने पर भी इनके लिए स्पष्ट नीतियों का जो स्वरूप होना चाहिए, वह तेजस्वी ने बना रखा था और उससे तेजस्वी हटे भी नहीं.

राजनीतिक गलियारों में ये चर्चा पहले से ही रही है कि तेजस्वी यादव ही पार्टी चला रहे हैं. पार्टी में तेजस्वी की ही नीति चलती है. पार्टी का विधानसभा से लेकर सड़क तक क्या नीति होगी, यह भी तेजस्वी ही बताते हैं और नीतियां भी बनाते हैं. 25वीं वर्षगांठ के अवसर पर लालू यादव ने तेजस्वी यादव के इसी गुण का बखान किया. लालू यादव के इस बयान के बाद ही सियासी हलकों में इस बात की चर्चा शुरू हो गई है कि स्पष्ट तौर पर आरजेडी को लालू यादव के अध्यक्ष का उत्तराधिकारी मिल गया है.

लालू यादव ने दिल खोलकर के तेजस्वी का बखान किया और यह भी कहा कि जितने लोगों से तेजस्वी अकेले लड़े मैं तो डरा हुआ था कि क्या उससे यह निकल पाएगा, लेकिन मुझे खुशी है कि सिर्फ उससे तेजस्वी बाहर नहीं निकले, बल्कि पार्टी को मजबूती से खड़ा भी कर दिया.

ये भी पढ़ें- बोले लालू- 'तेजस्वी और हमारी पत्नी नहीं होतीं तो हमको रांची में ही खत्म कर देते'

सियासत में एक बात तो साफ रही है कि समाजवादियों के चेहरे की अगर बात की जाए तो कहते रहे हैं कि 'जब तक सड़क पर लड़ोगे नहीं सदन में टिक नहीं पाओगे'. तेजस्वी यादव ने अपने प्रतिद्वंद्वियों को सड़क पर लड़कर यह बता दिया कि उनमें सदन में भी टिकने की हिम्मत है और इसे लालू यादव ने प्रमाण पत्र भी दे दिया.

लालू यादव के इस बयान के बाद कि 'तेजस्वी ने सब को धूल चटा दिया पार्टी को मजबूत किए और सब से लड़ रहे हैं', यह साफ संकेत है कि पार्टी को मजबूती से खड़ा करने के लिए जो भी लड़ाई लड़नी है, उसमें सबसे मजबूत हाथ तेजस्वी हैं और तेजस्वी के हाथों में ही आने वाले समय में आरजेडी की बागडोर होगी, यह भी लगभग तय हो गया है.

दर्शन सियासत में किसी चीज का प्रसंग इसलिए भी उठ जाता है, क्योंकि राजनीति का नजरिया और लोगों की जरूरत शायद उसे समझने लगती है. लालू के तेजस्वी पर दिए गए बयान के बाद यह बात शुरू हो गई कि लालू का सेहत ठीक नहीं और राबड़ी देवी उनकी सेवा में हैं. ऐसे में पार्टी को मजबूती देना तेजस्वी के जिम्मे है.

हालांकि पार्टी के भीतर गतिरोध की बातें लगातार आती रही हैं और खासतौर से मीसा भारती, तेज प्रताप और वर्तमान में ट्विटर पर एक्टिव उनकी बेटी रोहिणी आचार्य का भी है कि शायद पार्टी स्तर पर भी उनकी दखल होती है, लेकिन लालू यादव के खुले मंच से इस बयान के बाद कि तेजस्वी पार्टी चला रहे हैं और सब से लड़ रहे हैं. परिवार के दूसरों लोगों की दखल और उनकी पार्टी में बड़ी भूमिका पर भी प्रश्न चिह्न लग गया है.

ये भी पढ़ें- हम आना चाह रहे थे लेकिन तेजस्वी बाजी मार लिए- तेज प्रताप

ऐसे में तेजस्वी ही पार्टी की कमान संभालेंगे यह बिल्कुल तय है, लेकिन लालू ने बड़े बेटे तेजप्रताप यादव (Tej Pratap Yadav) के लिए भी अपना स्नेह दिखा दिया कि बड़े बेटे को भी मेरी तरह बोलना आ गया है. हालांकि विपक्ष इस बात को लेकर जरूर चुटकीले अंदाज में बात कर रहा है, लेकिन एक बात तो साफ है कि लालू यादव ने तेजस्वी के लिए जिस अंदाज में चीजों को रखा है, आरजेडी अध्यक्ष के लिए नाम के ऐलान की औपचारिकता ही अब बाकी रह गई है.

Last Updated : Jul 9, 2021, 7:02 PM IST
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