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Bihar Teacher candidate: 'पढ़-लिख कर क्या कर लिए.. भेड़-बकरी चराओ', नौकरी नहीं मिलने से शिक्षक अभ्यर्थी परेशान

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Published : Feb 7, 2023, 9:26 AM IST

बिहार में शिक्षक अभ्यर्थी सातवें चरण के नोटिफिकेशन के इंतजार में परेशान हैं. अभ्यर्थियों का कहना है कि हमें शिक्षा मंत्री के बयान पर भरोसा नहीं हो पा रहा है. राज्य के विद्यालयों में शिक्षकों की घोर कमी है, इसके बावजूद भी नियोजन प्रक्रिया शुरू नहीं की जा रही है. अभ्यर्थी 2019 में ही शिक्षक भर्ती के लिए दक्षता परीक्षा को पास कर लिया है. अब आलम ये है कि घर और समाज के लोग उन्हें ताना मारते हैं. कहते हैं कि तुमलोगों को इस सरकार में नौकरी नहीं मिलने वाली. भेड़-बकरी चराओ, यही अच्छा रहेगा.

पटना में शिक्षक अभ्यर्थी नौकरी की मार से परेशान
पटना में शिक्षक अभ्यर्थी नौकरी की मार से परेशान
बिहार में सातवें चरण के इंतजार में शिक्षक अभ्यर्थी पहुंचे सचिवालय

पटना: बिहार में शिक्षक अभ्यर्थी नौकरी की तलाश में काफी परेशान नजर आ रहे हैं. साल 2011 के बाद 2019 में एसटीइटी परीक्षा आयोजित की गई. इस परीक्षा के कई अभ्यर्थी पास करने के बाद भी साढ़े 3 साल से वैकेंसी का इंतजार कर रहे हैं. अभ्यर्थियों का कहना है कि सरकार किसी की भी हो या फिर शिक्षा मंत्री कोई भी हो लेकिन किसी का भी इस ओर ध्यान नहीं है. शिक्षकों की वैकेंसी में लगातार विलंब हो रहा है. शिक्षक अभ्यर्थियों का कहना है कि नौकरी के इंतजार में मुफलिसी की चोट हमलोग खा रहे हैं. देखते-देखते अब समाज भी ताना देने लगा है. समाज में लोग कहते हैं कि ज्यादा पढ़-लिख कर क्या कर लिए. अच्छा है कि भेड़-बकरी योजना से ऋण लेकर बकरी चराओ और कमाओ-खाओ.

ये भी पढ़ेंः नीतीश सरकार को BJP का अल्टीमेटम- '10 लाख नौकरी नहीं मिली.. तो सदन चलने नहीं देंगे'


शिक्षा मंत्री दस्तखत करने की बात कही: शिक्षा मंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर ने मधेपुरा में कहा है कि उन्होंने सातवें चरण के शिक्षक नियोजन को लेकर नियोजन नियमावली पर दस्तखत कर दी है. ऐसे में शिक्षा मंत्री के बयान के बाद दर्जनों शिक्षक अभ्यर्थी सचिवालय यह पता लगाने के लिए पहुंच गए कि क्या सही में शिक्षा मंत्री जो कह रहे हैं वह सच है. अभ्यर्थियों ने कहा कि उन्हें शिक्षा मंत्री के बात पर भरोसा नहीं होता है. क्योंकि बीते 4 सालों में सरकार किसी की भी रहे, जितने भी शिक्षा मंत्री बनते हैं. इसी प्रकार झूठा आश्वासन देकर अभ्यर्थियों को बहला फुसला कर रखते हैं.


किसी की बात पर भरोसा नहीं: शिक्षक अभ्यर्थी सुजीत कुमार ने कहा कि शिक्षा मंत्री ने जो बयान दिया है. उस पर कई बार मन करता है कि भरोसा कर लें. लेकिन अब तक का जो अनुभव रहा है, उनकी बातों पर भरोसा नहीं बन पाता. सातवें चरण की बहाली को लेकर इतना बार अब तक डेट दिया जा चुका है. इतनी घोषणाएं हो चुकी है कि अब चाह कर भी भरोसा नहीं हो पाता. बीते 4 साल में कई बार इसी प्रकार के आश्वासन दिए गए हैं. जबकि धरातल पर कुछ हुआ नहीं है. ऐसे में तमाम अभ्यर्थी खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं.

दुख को शब्दों में बयां नहीं करते: उन्होंने कहा कि नौकरी नहीं मिलने की वजह से घर में और समाज में क्या स्थिति बनी हुई है. वह शब्दों में नहीं बयां कर सकते हैं. हमारे घर में आर्थिक और मानसिक परेशानी तो है ही. इसके साथ ही सामाजिक उपहास के विषय वस्तु बने हुए हैं. समाज के लोग भी ताना देते हैं कि इतना ग्रेजुएशन, बीएड, एसटीइटी क्वालीफाई और उसके बाद भी नौकरी नहीं लिए तब फिर क्या फायदा ? उसने बताया कि वह उन लोगों को यह नहीं समझा पाते कि वह खुद के मारे हुए नहीं है. बल्कि सरकार के मारा है.

अधिसूचना जारी करें सरकार: दूसरे शिक्षक अभ्यर्थी रूपेश कुमार सिंह ने कहा कि शिक्षा मंत्री ने बयान दे दिया है कि सातवें चरण के नियोजन नियमावली को लेकर उन्होंने हस्ताक्षर कर दिया है. लेकिन इस पर भरोसा नहीं हो रहा है. अभ्यर्थी का कहना है कि अगर शिक्षा मंत्री ने हस्ताक्षर कर दिया है, तब इस मंगलवार को कैबिनेट से सातवें चरण के वैकेंसी को लेकर अधिसूचना जारी हो जानी चाहिए. बीते 4 साल से तो हमलोग यहीं सुन रहे हैं.

6000 उत्क्रमित विद्यालयों में शिक्षक नहीं : उसने बताया कि साल 2011 के बाद 2019 में एसटीईटी परीक्षा हुई, इसके पहले वह बीएड की पढ़ाई किए. इसके बाद चार सालों तक कोई बहाली नहीं हुई. जबकि बिहार के उत्क्रमित विद्यालयों में शिक्षकों की घोर कमी है. स्थिति ऐसी है कि समाधान यात्रा के तहत मुख्यमंत्री को जिस जिला में जाना होता है. वहां नजदीकी विद्यालय में यात्रा के 1 या 2 दिन पहले दूसरे जगह से शिक्षक को ट्रांसफर करना पड़ता है. बताया कि राज्य के कुल 6000 उत्क्रमित विद्यालयों में एक भी शिक्षक मौजूद नहीं है. इसका जिक्र सरकारी डाटा में किया हुआ है. ऐसे विद्यालयों में प्राइमरी के शिक्षकों को लाकर स्कूल चलाने के नाम पर खानापूर्ति किया जा रहा है.

बकरी पालने के लिए कहते हैं लोग: तीसरे शिक्षक अभ्यर्थी अभिषेक कुमार झा ने कहा कि वह एमए क्वालिफाइड है. बीएड भी किया हुआ है. इसके साथ ही नेट जेआरएफ भी क्वालीफाई किए हुए हैं. इसके बावजूद गांव समाज में लोग कहते हैं कि बाबू तुमको इस सरकार में नौकरी नहीं होगा, बकरी चरा कर भी अपना पेट भरो. लेकिन वह लोग बैठे हुए हैं कि समाज में बच्चों को शिक्षा देकर बच्चों को पढ़ा कर जो कमाएंगे उसी से खाएंगे. समाज उनसे कहता है कि पढ़ लिख कर क्या कर लिए, तुम्हारा सिर का बाल उड़ गया. ग्रामीणों का कहना है कि बकरी योजना से जाकर लोन ले लो और दो चार बकरी पालकर उसे चराओ और दूध बेचकर खाओ.

पढ़ने के लिए नहीं मिलता लोन: उसके बाद अभिषेक ने कहा कि यहां पढ़ने के लिए लोन आसानी से नहीं मिलता, उसके लिए बैंक वाले गारंटर की खोज करते हैं. लेकिन बकरी पालन के लिए आसानी से लोन मिल जाता है. उसने बताया कि बीएड की डेढ़ लाख रुपए की फीस भरने के लिए अपनी जमीन को गिरवी पर रखा और आज तक उसे वापस नहीं कर पाए हैं. इसके उलट हमारे ही जमीन पर और ब्याज बढ़ रहा है. अब जिसे जमीन गिरवी दिए हैं. वह कह रहा है कि 6 महीने के अंदर जमीन नहीं छुड़ाए तब जमीन पर अपना कब्जा कर लेंगे. आगे बताया कि इसके अलावे गांव में जाने से भी डर लगता है. क्योंकि कई लोगों से उन्होंने उधार पर पैसे लेकर रखे हैं. इस उम्मीद से कि नौकरी लगेगी तो सैलरी में से कुछ पैसे निकाल कर लोगों से लिए कर्ज को चुकता कर सकें.


सचिवालय पहुंचे शिक्षक अभ्यर्थी: चौथे शिक्षक अभ्यर्थी गौतम कुमार ने कहा कि सचिवालय में वह इस आशा से आए हैं कि शायद मंत्री जी जो कह रहे हैं, वह बात सही हो और सही में उन्होंने सातवें चरण की नियोजन नियमावली पर हस्ताक्षर किए हो. जबकि हमलोगों को उनकी बातों पर भरोसा नहीं होता है. इसीलिए हकीकत का पता लगाने के लिए सचिवालय में विभाग के अंदर जाने के लिए आए हैं. ताकि विभाग में जाकर पता लगा सके कि क्या सही में मंत्री जी ने हस्ताक्षर किए हैं. नेताओं ने इस कदर अपने बयानों से लगातार आश्वासन दिया है. उस पर अमल नहीं हुआ है. जिसका परिणाम है कि आज नेताओं की बातों पर एक प्रतिशत भी भरोसा नहीं होता है. कई बार यह भी अब लगने लगा है कि क्या बिहार में वह शिक्षक बन पाएंगे भी या नहीं.


काम छोड़कर बयानबाजी में लगे मंत्री: पांचवे शिक्षक अभ्यर्थी आलोक यादव ने कहा कि जहां तक बिहार में सरकारी नौकरी का मसला है. यह शुरू से ही शिक्षा मंत्री अपना कार्य छोड़कर बयानबाजी में लगे हुए हैं. अपने काम से हटकर शिक्षा मंत्री को बयान देने में काफी अच्छा लगता है. शिक्षा मंत्री को प्रदेश में शिक्षकों की कमी पर बात करनी चाहिए. शिक्षा का जो स्तर गिरा है. उसे सुधारने की दिशा में बात करनी चाहिए. जबकि इन सब बातों को छोड़कर रामचरितमानस और मनु स्मृति पर बात करते हैं. इस सरकार ने वादा किया था कि जब हम सत्ता में आएंगे तब 10 लाख सरकारी नौकरी देंगे और इसका 5% भी अब तक नहीं दिया है. इसके उलट जो लोग पहले से नौकरी ज्वाइन कर चुके थे, उन्हें दोबारा नियुक्ति पत्र थमा कर लोगों को दिखा दिया गया है कि हम काम कर रहे हैं. राज्य की जनता सब कुछ जान रही है. इनलोगों को जनता ही सबक सिखाएगी.

गिरता हुआ शिक्षा का स्तर: आलोक ने कहा कि प्रदेश में शिक्षा का स्तर लगातार गिर रहा है. यहां मेधावी छात्र बेरोजगार होकर अपना भविष्य बर्बाद कर रहे हैं. इस बार यदि शिक्षकों की बहाली होती है. उसमें अधिक क्वालिफाइड शिक्षक होंगे. जो ग्रेजुएशन के साथ बीएड और इसके अलावा एसटीइटी जैसी परीक्षा को क्वालीफाई किए रहेंगे. उसने कहा कि अगर सरकार जल्द सातवें चरण की शिक्षक बहाली लाती है. तब इससे खाली पड़े पदों पर शिक्षकों की कमी दूर हो जाएगी. इससे प्रदेश के सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ेगी. उसने आगे बताया कि समाज के अंतिम पायदान पर खड़े परिवार, गरीब वंचित और शोषित परिवार के बच्चे ही सरकारी विद्यालयों में जाते हैं. जब तक सरकारी विद्यालयों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध नहीं होगी, समाज सशक्त नहीं होगा, भले ही समाज सुधारने के नाम पर नेता कितनी भी बयानबाजी कर लें.

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बिहार में सातवें चरण के इंतजार में शिक्षक अभ्यर्थी पहुंचे सचिवालय

पटना: बिहार में शिक्षक अभ्यर्थी नौकरी की तलाश में काफी परेशान नजर आ रहे हैं. साल 2011 के बाद 2019 में एसटीइटी परीक्षा आयोजित की गई. इस परीक्षा के कई अभ्यर्थी पास करने के बाद भी साढ़े 3 साल से वैकेंसी का इंतजार कर रहे हैं. अभ्यर्थियों का कहना है कि सरकार किसी की भी हो या फिर शिक्षा मंत्री कोई भी हो लेकिन किसी का भी इस ओर ध्यान नहीं है. शिक्षकों की वैकेंसी में लगातार विलंब हो रहा है. शिक्षक अभ्यर्थियों का कहना है कि नौकरी के इंतजार में मुफलिसी की चोट हमलोग खा रहे हैं. देखते-देखते अब समाज भी ताना देने लगा है. समाज में लोग कहते हैं कि ज्यादा पढ़-लिख कर क्या कर लिए. अच्छा है कि भेड़-बकरी योजना से ऋण लेकर बकरी चराओ और कमाओ-खाओ.

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शिक्षा मंत्री दस्तखत करने की बात कही: शिक्षा मंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर ने मधेपुरा में कहा है कि उन्होंने सातवें चरण के शिक्षक नियोजन को लेकर नियोजन नियमावली पर दस्तखत कर दी है. ऐसे में शिक्षा मंत्री के बयान के बाद दर्जनों शिक्षक अभ्यर्थी सचिवालय यह पता लगाने के लिए पहुंच गए कि क्या सही में शिक्षा मंत्री जो कह रहे हैं वह सच है. अभ्यर्थियों ने कहा कि उन्हें शिक्षा मंत्री के बात पर भरोसा नहीं होता है. क्योंकि बीते 4 सालों में सरकार किसी की भी रहे, जितने भी शिक्षा मंत्री बनते हैं. इसी प्रकार झूठा आश्वासन देकर अभ्यर्थियों को बहला फुसला कर रखते हैं.


किसी की बात पर भरोसा नहीं: शिक्षक अभ्यर्थी सुजीत कुमार ने कहा कि शिक्षा मंत्री ने जो बयान दिया है. उस पर कई बार मन करता है कि भरोसा कर लें. लेकिन अब तक का जो अनुभव रहा है, उनकी बातों पर भरोसा नहीं बन पाता. सातवें चरण की बहाली को लेकर इतना बार अब तक डेट दिया जा चुका है. इतनी घोषणाएं हो चुकी है कि अब चाह कर भी भरोसा नहीं हो पाता. बीते 4 साल में कई बार इसी प्रकार के आश्वासन दिए गए हैं. जबकि धरातल पर कुछ हुआ नहीं है. ऐसे में तमाम अभ्यर्थी खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं.

दुख को शब्दों में बयां नहीं करते: उन्होंने कहा कि नौकरी नहीं मिलने की वजह से घर में और समाज में क्या स्थिति बनी हुई है. वह शब्दों में नहीं बयां कर सकते हैं. हमारे घर में आर्थिक और मानसिक परेशानी तो है ही. इसके साथ ही सामाजिक उपहास के विषय वस्तु बने हुए हैं. समाज के लोग भी ताना देते हैं कि इतना ग्रेजुएशन, बीएड, एसटीइटी क्वालीफाई और उसके बाद भी नौकरी नहीं लिए तब फिर क्या फायदा ? उसने बताया कि वह उन लोगों को यह नहीं समझा पाते कि वह खुद के मारे हुए नहीं है. बल्कि सरकार के मारा है.

अधिसूचना जारी करें सरकार: दूसरे शिक्षक अभ्यर्थी रूपेश कुमार सिंह ने कहा कि शिक्षा मंत्री ने बयान दे दिया है कि सातवें चरण के नियोजन नियमावली को लेकर उन्होंने हस्ताक्षर कर दिया है. लेकिन इस पर भरोसा नहीं हो रहा है. अभ्यर्थी का कहना है कि अगर शिक्षा मंत्री ने हस्ताक्षर कर दिया है, तब इस मंगलवार को कैबिनेट से सातवें चरण के वैकेंसी को लेकर अधिसूचना जारी हो जानी चाहिए. बीते 4 साल से तो हमलोग यहीं सुन रहे हैं.

6000 उत्क्रमित विद्यालयों में शिक्षक नहीं : उसने बताया कि साल 2011 के बाद 2019 में एसटीईटी परीक्षा हुई, इसके पहले वह बीएड की पढ़ाई किए. इसके बाद चार सालों तक कोई बहाली नहीं हुई. जबकि बिहार के उत्क्रमित विद्यालयों में शिक्षकों की घोर कमी है. स्थिति ऐसी है कि समाधान यात्रा के तहत मुख्यमंत्री को जिस जिला में जाना होता है. वहां नजदीकी विद्यालय में यात्रा के 1 या 2 दिन पहले दूसरे जगह से शिक्षक को ट्रांसफर करना पड़ता है. बताया कि राज्य के कुल 6000 उत्क्रमित विद्यालयों में एक भी शिक्षक मौजूद नहीं है. इसका जिक्र सरकारी डाटा में किया हुआ है. ऐसे विद्यालयों में प्राइमरी के शिक्षकों को लाकर स्कूल चलाने के नाम पर खानापूर्ति किया जा रहा है.

बकरी पालने के लिए कहते हैं लोग: तीसरे शिक्षक अभ्यर्थी अभिषेक कुमार झा ने कहा कि वह एमए क्वालिफाइड है. बीएड भी किया हुआ है. इसके साथ ही नेट जेआरएफ भी क्वालीफाई किए हुए हैं. इसके बावजूद गांव समाज में लोग कहते हैं कि बाबू तुमको इस सरकार में नौकरी नहीं होगा, बकरी चरा कर भी अपना पेट भरो. लेकिन वह लोग बैठे हुए हैं कि समाज में बच्चों को शिक्षा देकर बच्चों को पढ़ा कर जो कमाएंगे उसी से खाएंगे. समाज उनसे कहता है कि पढ़ लिख कर क्या कर लिए, तुम्हारा सिर का बाल उड़ गया. ग्रामीणों का कहना है कि बकरी योजना से जाकर लोन ले लो और दो चार बकरी पालकर उसे चराओ और दूध बेचकर खाओ.

पढ़ने के लिए नहीं मिलता लोन: उसके बाद अभिषेक ने कहा कि यहां पढ़ने के लिए लोन आसानी से नहीं मिलता, उसके लिए बैंक वाले गारंटर की खोज करते हैं. लेकिन बकरी पालन के लिए आसानी से लोन मिल जाता है. उसने बताया कि बीएड की डेढ़ लाख रुपए की फीस भरने के लिए अपनी जमीन को गिरवी पर रखा और आज तक उसे वापस नहीं कर पाए हैं. इसके उलट हमारे ही जमीन पर और ब्याज बढ़ रहा है. अब जिसे जमीन गिरवी दिए हैं. वह कह रहा है कि 6 महीने के अंदर जमीन नहीं छुड़ाए तब जमीन पर अपना कब्जा कर लेंगे. आगे बताया कि इसके अलावे गांव में जाने से भी डर लगता है. क्योंकि कई लोगों से उन्होंने उधार पर पैसे लेकर रखे हैं. इस उम्मीद से कि नौकरी लगेगी तो सैलरी में से कुछ पैसे निकाल कर लोगों से लिए कर्ज को चुकता कर सकें.


सचिवालय पहुंचे शिक्षक अभ्यर्थी: चौथे शिक्षक अभ्यर्थी गौतम कुमार ने कहा कि सचिवालय में वह इस आशा से आए हैं कि शायद मंत्री जी जो कह रहे हैं, वह बात सही हो और सही में उन्होंने सातवें चरण की नियोजन नियमावली पर हस्ताक्षर किए हो. जबकि हमलोगों को उनकी बातों पर भरोसा नहीं होता है. इसीलिए हकीकत का पता लगाने के लिए सचिवालय में विभाग के अंदर जाने के लिए आए हैं. ताकि विभाग में जाकर पता लगा सके कि क्या सही में मंत्री जी ने हस्ताक्षर किए हैं. नेताओं ने इस कदर अपने बयानों से लगातार आश्वासन दिया है. उस पर अमल नहीं हुआ है. जिसका परिणाम है कि आज नेताओं की बातों पर एक प्रतिशत भी भरोसा नहीं होता है. कई बार यह भी अब लगने लगा है कि क्या बिहार में वह शिक्षक बन पाएंगे भी या नहीं.


काम छोड़कर बयानबाजी में लगे मंत्री: पांचवे शिक्षक अभ्यर्थी आलोक यादव ने कहा कि जहां तक बिहार में सरकारी नौकरी का मसला है. यह शुरू से ही शिक्षा मंत्री अपना कार्य छोड़कर बयानबाजी में लगे हुए हैं. अपने काम से हटकर शिक्षा मंत्री को बयान देने में काफी अच्छा लगता है. शिक्षा मंत्री को प्रदेश में शिक्षकों की कमी पर बात करनी चाहिए. शिक्षा का जो स्तर गिरा है. उसे सुधारने की दिशा में बात करनी चाहिए. जबकि इन सब बातों को छोड़कर रामचरितमानस और मनु स्मृति पर बात करते हैं. इस सरकार ने वादा किया था कि जब हम सत्ता में आएंगे तब 10 लाख सरकारी नौकरी देंगे और इसका 5% भी अब तक नहीं दिया है. इसके उलट जो लोग पहले से नौकरी ज्वाइन कर चुके थे, उन्हें दोबारा नियुक्ति पत्र थमा कर लोगों को दिखा दिया गया है कि हम काम कर रहे हैं. राज्य की जनता सब कुछ जान रही है. इनलोगों को जनता ही सबक सिखाएगी.

गिरता हुआ शिक्षा का स्तर: आलोक ने कहा कि प्रदेश में शिक्षा का स्तर लगातार गिर रहा है. यहां मेधावी छात्र बेरोजगार होकर अपना भविष्य बर्बाद कर रहे हैं. इस बार यदि शिक्षकों की बहाली होती है. उसमें अधिक क्वालिफाइड शिक्षक होंगे. जो ग्रेजुएशन के साथ बीएड और इसके अलावा एसटीइटी जैसी परीक्षा को क्वालीफाई किए रहेंगे. उसने कहा कि अगर सरकार जल्द सातवें चरण की शिक्षक बहाली लाती है. तब इससे खाली पड़े पदों पर शिक्षकों की कमी दूर हो जाएगी. इससे प्रदेश के सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ेगी. उसने आगे बताया कि समाज के अंतिम पायदान पर खड़े परिवार, गरीब वंचित और शोषित परिवार के बच्चे ही सरकारी विद्यालयों में जाते हैं. जब तक सरकारी विद्यालयों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध नहीं होगी, समाज सशक्त नहीं होगा, भले ही समाज सुधारने के नाम पर नेता कितनी भी बयानबाजी कर लें.

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