पटना: आपको सुनकर अटपटा लग रहा होगा लेकिन ये बात पूरी तरह सत्य है. बिहार के गया में स्थित मगध सुपर 30 से पढ़कर अब तक करीब 100 ऐसे बच्चे आईआईटी और एनआईटी जाकर कई सरकारी और गैरसरकारी जगहों पर अपनी सेवा दे रहे हैं. ये बच्चे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किसी न किसी नक्सली परिवार से जुड़े रहे हैं. संस्था के संचालक बिहार के पूर्व डीजीपी और सुपर 30 कन्सेप्ट के जनक अभयानंद हैं, जिनका देश भर में कई केंद्र आईआईटी के लिए बच्चे तैयार करता है.
पढ़ें- मिलिए पटना की ग्रेजुएट चाय वाली से, दुकान पर लिखा 'पीना ही पड़ेगा'
इन केंद्रों पर पढ़ने के क्या है नियम: यहां उन्हीं बच्चों को प्रवेश मिलता है जिनके माता पिता आर्थिक रूप से कमजोर होते हैं. साथ ही बच्चों की लिखित परीक्षा होती है और बाद में अभयानंद खुद साक्षात्कार लेकर तय करते हैं कि अमुक बच्चा आईआईटी मटेरियल है या नहीं. लिखित परीक्षा के जरिये बेसिक ज्ञान आंका जाता है लेकिन अभयानंद साक्षात्कार में यह तय करते हैं कि बच्चे में सवाल पूछने की क्षमता है या नहीं. इसी के आधार पर बच्चे का चुनाव होता है और आईआईटी या एनआईटी में प्रवेश तक बिना शुल्क लिए बच्चें को पढ़ाया जाता है.
पहली बार कब यहां नक्सली के बच्चे का हुआ था दाखिला : अभयानंद ने बताया कि जब वे डीजीपी थे तो पहली बार किसी बच्चे के बारे में जानकारी मिली की उसने अपने पिता का टाइटल बदल लिया है. बच्चे का नाम अश्विनी कुमार गुंजन है लेकिन उसने अपने पिता के नाम से यादव के बदले मंडल लिखवाया है. इस जानकारी को सत्यापित करने के बाद पता चला कि अश्विनी के चाचा संदीप यादव बड़े नक्सली नेता हैं और उन्हें गया पुलिस लगातार ढूंढ रही है. लड़का पढ़ना चाहता था इसलिए बदनामी से बचने के लिए उसने ऐसा किया था. ऐसी सूचना आते ही डीजीपी बिहार के पद पर रहते हुए अभयानंद ने गुरु की भूमिका निभाई और बच्चे को निर्भीक होकर पढ़ने को कहा. बच्चा आईआईटी तो नहीं कर पाया लेकिन एनआईटी जमशेदपुर से बीटेक कर फिलहाल एक मल्टीनेशनल कंपनी के शीर्ष पद पर कार्यरत है.
अश्विनी उदाहरण बना और सैकड़ों ऐसे बच्चे इस केंद्र तक पहुंचे: अभयानंद ने कहा कि अश्विनी को पढ़ने की छूट मिलते ही ये खबर जंगल में आग की तरह फैल गयी. नक्ललियों के खिलाफ छापेमारी के कड़े निर्देश के बावजूद उनके बच्चे इस केन्द्र तक पहुंचने लगे. अभयानंद यहां दो भूमिकाओं में नजर आये. बतौर डीजीपी उन्होंने नक्सलियों के खिलाफ अभियान चलाकर छापेमारी कराई और दर्जनों नक्सलियों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया तो गुरु जी की भूमिका में उन्होंने बच्चों को पढ़ाने से कभी मना नहीं किया. वर्ष 2012 से अब तक करीब 100 ऐसे नक्सलियों के घर से बच्चे आईआईटी और एनआईटी तक पहुंच कर सरकारी और गैर सरकारी जगहों पर नौकरी कर रहे हैं.
"भेदभाव की वजह बच्चों में भटकाव होता है और जिस बच्चे की बौद्धिक क्षमता आईआईटी लायक है वो भी उचित माहौल और मार्गदर्शन के अभाव में हथियार उठा लेता है. मैंने हमेशा दो भूमिकाओं को निभाया. दोनों जिम्मेदारियों का निर्वहन किया. गुरु और बिहार के डीजीपी के तौर पर जिम्मेदारियां थीं."- अभयानंद, पूर्व डीजीपी, बिहार
ऐसे बच्चों की जानकारी आम बच्चों से शेयर नहीं किया जाता था: अभयानंद ने मगध सुपर 30 के केयर टेकर को सख्त हिदायत दी थी कि ऐसे बच्चों की जानकारी किसी अन्य बच्चों से साझा नहीं की जाए. केयर टेकर भी इस बात का पूरा ध्यान रखते हैं. क्लास के टीचर हो या पढ़ाते समय गुरुजी की भूमिका में अभयानंद किसी ने भी कभी नक्सलियों के बच्चों के साथ कोई भेदभाव नहीं किया. बच्चे आराम से पढ़ते गये और प्रतिवर्ष अपना परचम लहराते गये.
मगध सुपर थर्टी से निकले छात्रों ने कही ये बात: वहीं मगध सुपर थर्टी से पढ़कर अपनी मंजिल की ओर आगे बढ़ने वाले छात्रों ने अभयानंद का धन्यवाद किया है. साथ ही उन्होंने कहा कि सर की वजह से सफलता मिली है नहीं तो पता नहीं क्या होता. अब हमारी बारी है हम सुपर थर्टी के लिए कुछ करना चाहते हैं.
"जब हम अभयानंद सर से सवाल करते थे तो वो हम से ही सवाल पूछने लगते थे. जवाब देते देते मैं अपने ही सवाल का जवाब दे देती थी. सोचने की कमी के कारण ही हमें पहले जवाब नहीं मिलता था. हम मगध सुपर थर्टी के लिए अब कुछ करना चाहते हैं."- आईआईटी की छात्रा
मैं बहुत लकी थी कि मुझे मगध सुपर थर्टी जैसे प्लेटफॉर्म मिला. मेरा सपना पूरा हुआ. अभयानंद सर और पंकज सर से बहुत कुछ सीखने को मिला.- तृप्ति शर्मा,एनआईटी पटना की छात्रा
अभयानंद के इस प्रयास का फायदा सरकार को भी मिला: अभयानंद जब बिहार के डीजीपी थे तो बिहार सरकार ने नक्सलियों के लिए आत्मसमर्पण की नीति लायी थी और उसके तहत राहत देने की बात की गयी थी. इस कड़ी में सबसे ज्यादा नक्सली बिहार के गया जिले से आत्मसमर्पण किये थे. इसके मूल में वो बच्चे थे जिन्हें बिना भेदभाव किये पढ़ाकर अभयानंद ने नक्सलियों का विश्वास जीता था.