पटना: 18 जुलाई को एनडीए की बैठक में शामिल होने के लिए बिहार से आने वाले नए साथियों को आमंत्रण भेजा गया है. चिराग पासवान 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के बाद पहली बार एनडीए की बैठक में शामिल होंगे. महागठबंधन से अलग होने के बाद जीतन राम मांझी की पार्टी हम भी एनडीए में शामिल हो चुकी है. वहीं उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक जनता दल का भी एनडीए में शामिल होना लगभग तय माना जा रहा है.
बिहार के छोटे दलों को न्योता: 2024 लोकसभा चुनाव के मद्देनजर राजनीतिक दल गठबंधन को मजबूत करने में जुटे हैं. भारतीय जनता पार्टी की नजर भी छोटे दलों पर है. बिहार में भी भाजपा तमाम छोटे दलों को जोड़ने में जुटी है. बिहार में भाजपा को चार दलों का साथ मिल चुका है. हालांकि मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी को लेकर अभी संशय बरकरार है.
बिहार में बड़ा हुआ NDA का कुनबा: मिशन 2024 को साधने के लिए राजनीतिक दलों ने जोर आजमाइश शुरू कर दी है. विपक्षी खेमे में भी हलचल है. तमाम दल एक फोरम पर आ रहे हैं. भाजपा भी जवाबी तैयारी में है. बिहार बैटलग्राउंड की तरह है. बिहार में भी छोटे दलों की सक्रियता बढ़ गई है. भाजपा के निशाने पर वैसे दल हैं जो कभी महागठबंधन के साथ थे.
बिहार के 4 दलों का मिला साथ: महाराष्ट्र के बाद बिहार ही ऐसा राज्य है, जहां बीजेपी ने सबसे अधिक दलों को एकसाथ जोड़ा है. बिहार में पहली बार बीजेपी लोकसभा चुनाव में 4 पार्टियों के साथ मिलकर लड़ेगी. इनमें लोजपा (आर), रालोजपा, हम (से) और आरएलजेडी प्रमुख है. बिहार में एनडीए का मुकाबला विपक्षी महागठबंधन से है, जिसका नेतृत्व नीतीश और लालू कर रहे हैं. ऐसे में बिहार में बीजेपी इस बार अधिक सहयोगियों को जुटाने की तैयारी में है.
महागठबंधन की राह कठिन!: भाजपा के लिए बिहार महत्वपूर्ण है. बिहार से ही महागठबंधन की ओर से लगातार भाजपा को चुनौती दी जा रही है. फिलहाल महागठबंधन के साथ बिहार के अंदर 6 घटक दल हैं. भाजपा ने भी जवाबी कार्रवाई की तैयारी की है. पार्टी ने बिहार के पांच दलों को अपने साथ लाने में कामयाबी हासिल कर ली है. यहां ये बताते दें कि वीआईपी के भी एनडीए में जाने की सूचना है.
ये है बीजेपी की मंशा: बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं और 2019 के चुनाव में भाजपा के खाते में 39 सीटें गई थी. भाजपा 2019 के नतीजों को दोहराना चाहती है. 2014 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा ने शानदार प्रदर्शन किया था और पार्टी को अकेले 22 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. बिहार इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि बिहार की सीमा से 3 राज्यों की सीमा लगती है अगर बिहार में भाजपा का प्रदर्शन बेहतर होता है तो उसका असर दूसरे पड़ोसी राज्यों पर भी पड़ता है.
दलित पिछड़ा और अति पिछड़ा वोट बैंक: लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बिहार बैटलग्राउंड की तरह है. लालू और नीतीश बिहार की धरती से नरेंद्र मोदी को चुनौती देने की तैयारी कर रहे हैं. बिहार में पिछड़ा अति पिछड़ा वोट बैंक का बोलबाला है. लगभग 45% वोट पिछड़ों अति पिछड़ों का है. भाजपा चिराग पासवान, पशुपति पारस, उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी के जरिए दलित पिछड़ा वोट बैंक को साधना चाहती है. कुल मिलाकर दलित पिछड़ा और अति पिछड़ा वोट का प्रतिशत 60 के आसपास आ जाता है.
जीतन राम मांझी बड़े दलित नेता: चिराग पासवान और पशुपति पारस एनडीए के साथ हैं. 6 से 7% वोट शेयर रामविलास पासवान का रहा है. इसके अलावा उपेंद्र कुशवाहा के जरिए भाजपा 6% कुशवाहा वोट बैंक को भी साधना चाहती है. मुकेश सहनी के जरिए अति पिछड़ा वोट बैंक को भी भाजपा अपने साथ लाना चाहती है. बिहार में सहनी वोटर 4 से 5% के बीच हैं. बिहार में दलित वोटर 15 से 16% के बीच हैं और जीतन राम मांझी बड़े दलित नेता हैं. जीतन राम मांझी जिस जाति से आते हैं उस जाति की आबादी 2 से 3% के बीच है.
"नरेंद्र मोदी की नीतियों से प्रभावित होकर कई दल भाजपा के साथ आ रहे हैं. बिहार में भी दलों के आने का सिलसिला जारी है. तमाम दलों की सहायता से हम महागठबंधन को शिकस्त देने में कामयाब होंगे."- प्रेम रंजन पटेल, बीजेपी प्रवक्ता
"क्षेत्रीय दलों को समाप्त करने की बात करने वाले दल अब छोटे दलों को साथ ला रहे हैं. छोटे दलों की बदौलत भाजपा इस बार चुनावी वैतरणी पार करने वाली नहीं है."- हिमराज राम,जदयू प्रवक्ता
"भाजपा के लोग अब तिनके तिनके को जोड़ने में जुटे हैं. छोटे-छोटे दलों के सहारे भाजपा चुनाव जीतना चाहती है. बिहार में तो भाजपा को कामयाबी हासिल होने वाली नहीं है राष्ट्रीय स्तर पर भी भाजपा मुंह की खाएगी."- एजाज अहमद,राजद प्रवक्ता
"भाजपा 2014 और 2019 के नतीजों को दोहराना चाहती है. छोटे दलों के जरिए भाजपा महागठबंधन को शिकस्त देना चाहती है. यह तो भविष्य के गर्भ में है कि भाजपा की रणनीति कितनी सफल होगी."- कौशलेंद्र प्रियदर्शी,वरिष्ठ पत्रकार