पटना: पूरी दुनिया में आने वाले समय में प्रयोग करने लायक पानी की उपलब्धता को लेकर बहस चल रही है. ऐसे में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (Sewage Treatment Plant In Patna) की उपयोगिता दिनों दिन बढ़ती जा रही है. नमामि गंगे परियोजना के तहत पटना नगर निगम (Patna Municipal Corporation) क्षेत्र में ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण करवाया जा रहा है. ताकि गंगा (Ganga) को मैली होने से बचाया जा सके.
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15 सितंबर 2020 को पीएम मोदी द्वारा दो सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट करमलीचक (karmali Sewage Treatment Plant) और बेऊर ट्रीटमेंट प्लांट (Beur Sewage Treatment Plant) का उद्घाटन किया गया था. इसके बाद इस इलाके के गंदे पानी का ट्रीटमेंट किया जा रहा है. इसके अलावा सैदपुर इलाके में भी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (Saidpur Sewage Treatment Plant) का निर्माण कार्य पूरा हो गया है.
संक्रमण की वजह से अभी तक इस सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का उद्घाटन नहीं किया गया. हालांकि इस सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट के माध्यम से इस इलाके में घरों से निकलने वाले गंदे पानी का ट्रीटमेंट का कार्य शुरू हो चुका है. तो वहीं कंकड़बाग, पहाड़ी और दीघा क्षेत्रों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण कार्य अंतिम चरण में है.
इस साल के अंत तक सभी ट्रीटमेंट प्लांट शुरू हो जाएगा. जिसके बाद शहर से निकलने वाला गंदा पानी गंगा नदी में प्रवाहित नहीं होगा बल्कि ट्रीटमेंट करके ही इस पानी को गंगा नदी में प्रवाहित करवाया जाएगा.
नमामि गंगे परियोजना के तहत राजधानी पटना में 6 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के निर्माण का कार्य दो कंपनी मिलकर कर रही है. वोल्टास और बीएटेक बबाक कंपनी द्वारा निर्माण करवाया जा रहा है.वहीं लोगों को घरों तक पाइप कनेक्शन का कार्य एलएनटी कंपनी कर रही है.
पटना में करमलीचक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, बेउर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, सैदपुर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, पहाड़ी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट(Pahari Sewage Treatment Plant), कंकड़बाग सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (Kankarbagh Sewage Treatment Plant) और दीघा सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (Digha Sewage Treatment Plant) के लिए कार्य हो रहे हैं. जिसमें से तीन जगह करमलीचक,बेउर और सैदपुर इलाके में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है. यहां पर 10 प्रतिशत से अधिक घरों के पानी को ट्रीटमेंट कर गंगा नदी में प्रवाहित करवाया जा रहा है.
वहीं पहाड़ी, कंकड़बाग और दीघा है इलाके में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण कार्य अंतिम चरण में है. इस साल के अंत तक निर्माण कार्य पूरा होने की उम्मीद है. इसके बाद पटना शहर के घरों से निकलने वाले गंदे पानी को ट्रीटमेंट कर गंगा नदी में प्रवाहित करवाने का कार्य शुरू हो जाएगा.
'प्लांट का कार्य तेजी से चल रहा है. सितंबर माह के आखिरी सप्ताह तक पूरा हो जाने की उम्मीद है. प्लांट निर्माण का कार्य पूरा हो चुका है. बस सौंदर्यकरण का काम बाकी है जो किया जा रहा है. पानी को ट्रीटमेंट करने के लिए टेस्टिंग भी शुरू है.'- नितिन कुमार द्विवेदी, मैकेनिकल इंजीनियर, नमामि गंगे परियोजना
इस सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट तक पानी पहुंच सके इसके लिए एसटीपी का कार्य भी चल रहा है. लगभग 60 प्रतिशत से अधिक घरों तक पाइप कनेक्शन पहुंचा दी गई है. हालांकि बरसात की वजह से कुछ काम बंद पड़े हैं.
आपको बता दें कि जो तीन सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट करमलीचक, बेउर ,सैदपुर का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है. इस प्लांट से गंदे पानी को ट्रीटमेंट करने की कुल क्षमता 140 एमएलडी है. 2 लाख 30 हजार घरों को इससे फायदा होगा. इन घरों के पानी को ट्रीटमेंट कर गंगा नदी में प्रवाहित करवाया जाएगा.
वही कंकड़बाग सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की क्षमता 100 एमएलडी है. तो वहीं दीघा सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की क्षमता 50 एमएलडी है. पहाड़ी इलाके में बन रहे सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की क्षमता 60 एमएलडी का है.
इन सभी ट्रीटमेंट प्लांट का कार्य शुरू हो जाने के बाद राजधानी पटना में गंगा नदी मैली नहीं होगी. अब देखने वाली बात होगी कि इन सभी ट्रीटमेंट प्लांट का कार्य सुचारू रूप से कब से शुरू होता है.
सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में गंदे पानी और घर में प्रयोग किये गये जल के दूषित अवयवों को विशेष विधि से साफ किया जाता है. इसको साफ करने के लिए भौतिक, रासायनिक और जैविक विधि का प्रयोग किया जाता है. इसके माध्यम से दूषित पानी को दोबारा प्रयोग में लाने लायक बनाया जाता है. इससे निकलने वाली गंदगी का इस प्रकार शोधन किया जाता है कि उसका उपयोग वातावरण के सहायक के रूप में किया जा सके.
एसटीपी कैसे करता है काम: एसटीपी ऐसी जगह बनाया जाता है जहां विभिन्न स्थानों से दूषित जल लाया जा सके. घरों और फैक्ट्रियों के दूषित जल को साफ करने की प्रक्रिया तीन चरणों में संपन्न होती है. जिसके तहत पहले, ठोस पदार्थ को उससे अलग किया जाता है, फिर जैविक पदार्थ को एक ठोस समूह और वातावरण के अनुकूल बनाकर इसका प्रयोग खाद एवं लाभदायक उर्वरक के रूप में किया जाता है. इसके बाद उसे प्रयोग में लाने के लिए नदी, तालाबों आदि में छोड़ दिया जाता है.