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जैन भाषा हिन्दी में न्याय, शिक्षा व रोजगार" विषय पर राष्ट्रीय-संगोष्ठी - सीएमएलयू की वाइस चांसलर मृदुला मिश्र

पटना में बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में वैश्विक हिन्दी सम्मेलन, मुंबई और केंद्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा के संयुक्त तत्त्वावधान में, “जैन भाषा हिन्दी में न्याय, शिक्षा व रोजगार" विषय पर राष्ट्रीय राष्ट्रीय-संगोष्ठी में आयोजित किया (Seminar In Patna On Indian language) गया.

Patna High Court
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Published : Nov 26, 2022, 11:05 PM IST

पटनाः न्यायालयों की भाषा जितनी शीघ्रता से भारतीय भाषाएं हो जाए, राष्ट्रहित में उतना ही अच्छा है. जनता को जनता की भाषा में ही न्याय मिले, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए. भारत का संपूर्ण विकास तभी होगा जब, देश की कार्यपालिका, न्यायपालिका व विधायिका की भाषा देश की भाषा हो. ये बातें पटना हाईकोर्ट की पूर्व जज और चाणक्य नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर मृदुला मिश्र (CNLU VC Mridula Mishra ) ने कहीं.

बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में वैश्विक हिन्दी सम्मेलन, मुंबई और केंद्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा के संयुक्त तत्त्वावधान में, “जैन भाषा हिन्दी में न्याय, शिक्षा व रोजगार" विषय पर राष्ट्रीय राष्ट्रीय-संगोष्ठी में आयोजित किया (Seminar In Patna On Indian language) गया था. उन्होंने कहा कि हम आरंभ से ही भूल करते आ रहे हैं. हमें संविधान में इंडिया के स्थान पर भारत लिखना चाहिए था. सभा की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ अनिल सुलभ ने कहा कि भाषा संबंधी सभी समस्याओं का निदान एक दवा में है और वह यह है कि हिन्दी को देश की राष्ट्रभाषा घोषित कर दिया जाए. उन्होंने कहा कि जब हिन्दी देश की राष्ट्रभाषा हो जाएगी तो, वह कार्यपालिका और विधायिका की ही नहीं ,स्वतः न्यायपालिका की भी भाषा हो जाएगी। शिक्षा और रोज़गार की भी भाषा हो जाएगी।

विषय परवर्तन करते हुए वैश्विक हिन्दी सम्मेलन के निदेशक डॉ मोतीलाल गुप्त 'आदित्य' ने कहा कि यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश की न्यायपालिका में देश की भाषा में याचिका की अनुमति नहीं है. हिन्दी में याचिका देने वाले को प्रताड़ित और अपमानित किया जाता है. संगोष्ठी के मुख्य अतिथि और बिहार बार कॉउन्सिल के अध्यक्ष रमाकांत शर्मा ने कहा कि आज संविधान दिवस है. इसलिए हम अपने संविधान की आलोचना नहीं कर सकते, किंतु हिन्दी देश के कामकाज की भाषा बने, इस आंदोलान का हमें मिलकर समर्थन करना चाहिए.


इस मौके पर, संगोष्ठी के मुख्य वक्त और इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रदीप कुमार ने कहा कि न्यायालयों में हिन्दी को सम्मान मिले इस हेतु आंदोलन बहुत पहले से चलाया जा रहा है। यदि इस परंपरा पर बल दिया गया होता, तो हम इस दिशा में बहुत आगे बढ़े होते.

पटनाः न्यायालयों की भाषा जितनी शीघ्रता से भारतीय भाषाएं हो जाए, राष्ट्रहित में उतना ही अच्छा है. जनता को जनता की भाषा में ही न्याय मिले, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए. भारत का संपूर्ण विकास तभी होगा जब, देश की कार्यपालिका, न्यायपालिका व विधायिका की भाषा देश की भाषा हो. ये बातें पटना हाईकोर्ट की पूर्व जज और चाणक्य नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर मृदुला मिश्र (CNLU VC Mridula Mishra ) ने कहीं.

बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में वैश्विक हिन्दी सम्मेलन, मुंबई और केंद्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा के संयुक्त तत्त्वावधान में, “जैन भाषा हिन्दी में न्याय, शिक्षा व रोजगार" विषय पर राष्ट्रीय राष्ट्रीय-संगोष्ठी में आयोजित किया (Seminar In Patna On Indian language) गया था. उन्होंने कहा कि हम आरंभ से ही भूल करते आ रहे हैं. हमें संविधान में इंडिया के स्थान पर भारत लिखना चाहिए था. सभा की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ अनिल सुलभ ने कहा कि भाषा संबंधी सभी समस्याओं का निदान एक दवा में है और वह यह है कि हिन्दी को देश की राष्ट्रभाषा घोषित कर दिया जाए. उन्होंने कहा कि जब हिन्दी देश की राष्ट्रभाषा हो जाएगी तो, वह कार्यपालिका और विधायिका की ही नहीं ,स्वतः न्यायपालिका की भी भाषा हो जाएगी। शिक्षा और रोज़गार की भी भाषा हो जाएगी।

विषय परवर्तन करते हुए वैश्विक हिन्दी सम्मेलन के निदेशक डॉ मोतीलाल गुप्त 'आदित्य' ने कहा कि यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश की न्यायपालिका में देश की भाषा में याचिका की अनुमति नहीं है. हिन्दी में याचिका देने वाले को प्रताड़ित और अपमानित किया जाता है. संगोष्ठी के मुख्य अतिथि और बिहार बार कॉउन्सिल के अध्यक्ष रमाकांत शर्मा ने कहा कि आज संविधान दिवस है. इसलिए हम अपने संविधान की आलोचना नहीं कर सकते, किंतु हिन्दी देश के कामकाज की भाषा बने, इस आंदोलान का हमें मिलकर समर्थन करना चाहिए.


इस मौके पर, संगोष्ठी के मुख्य वक्त और इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रदीप कुमार ने कहा कि न्यायालयों में हिन्दी को सम्मान मिले इस हेतु आंदोलन बहुत पहले से चलाया जा रहा है। यदि इस परंपरा पर बल दिया गया होता, तो हम इस दिशा में बहुत आगे बढ़े होते.

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