पटना: बिहार में सियासी उठापटक जोरों पर है. एक ओर जहां लोजपा और चिराग पासवान ने एनडीए में घमासान मचा रखा है तो दूसरी ओर महागठबंधन में तो कई फूट देखने को मिल रहे हैं. पिछले दिनों पूर्व मुख्यमंत्री और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के अध्यक्ष जीतन राम मांझी ने महागठबंधन छोड़ एनडीए का दामन थाम लिया. वहीं अब उपेंद्र कुशवाहा भी महागठबंधन से अलग हो चुके हैं. इसकी औपचारिक घोषणा अभी बाकी है.
बात करें कांग्रेस की तो जानकारी के अनुसार कांग्रेस ने तकरीबन 70 सीटों पर अपनी दावेदारी ठोकी है. राजद के नेता तेजस्वी यादव ने कुछ सीटों को छोड़कर कांग्रेस को साथ लेकर चलने का फैसला लिया है. सूत्रों की मानें तो कुछ वैसी सीट है जिससे राजद अपना उम्मीदवार उतारना चाहती है. लेकिन कांग्रेस भी उसे छोड़ना नहीं चाहती.
लगातार हो रही बयानबाजी
पिछले दिनों बिहार प्रदेश कांग्रेस के स्क्रीनिंग कमेटी के चेयरमैन अविनाश पांडे ने 243 सीटों पर तैयारी को लेकर बयान दिया था. जिसके बाद राजेश के कुछ नेताओं ने भी बयान जारी किए थे. हालांकि बिहार प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष मदन मोहन झा ने हमेशा ही कहा कि तय समय पर सारी चीजें स्पष्ट हो जाएंगी. उन्होंने अविनाश पांडे के बयान पर भी स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि इनका कहना था कांग्रेस जितने सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी उसके अलावा महागठबंधन के साथियों को मदद करेगी.
2-3 दिनों में मामला हो सकता है साफ
बरहाल समीकरण कोई भी बने लेकिन आगामी 2 से 3 दिनों में बिहार की सियासत के तमाम गठबंधन दलों के बीच हुए सीट बंटवारे की तस्वीर साफ हो जाएगी. लेकिन एक बड़ा सवाल यह भी है कि आखिर राजद जिस तरह का रुख अख्तियार किए हुए हैं आखिर वह अपने सहयोगियों पर क्यों नहीं भरोसा कर रहा ? सवाल यह भी है क्या राज है अपने सहयोगियों के बिना ही मैदान में उतरना ज्यादा बेहतर समझ रही है ? क्योंकि मांझी का प्रकरण हो या कुशवाहा का तेजस्वी यादव की ओर से दिए गए बयान राजद के तल्ख तेवर को उजागर करते हैं.