पटना: अक्टूबर-नवंबर में हुए बिहार विधानसभा चुनाव के बाद अब एक और घोटाले का जिन्न सामने आ गया है, जिसके बाद अधिकारियों के हाथ-पांव फूल रहे हैं. उन्हें चारा घोटाले की याद आ रही है. इसी बीच राज्य निर्वाचन अधिकारी ने बिहार के सभी डीएम को ठेकेदारों से मिले बिल की जांच करने और सही बिल का भुगतान समय से करने का निर्देश दिया है. जिन ठेकेदारों ने बढ़ा-चढ़ाकर बिल दिया है, उनकी जांच की जाएगी.
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मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी ने कहा,
"2019 के लोकसभा चुनाव में 141 बटालियन केंद्रीय जवान बिहार आए थे. विधानसभा चुनाव में 1200 बटालियन केंद्रीय जवान आए. नक्सल प्रभावित जिलों में जवान काफी पहले से कैंप कर रहे थे. पोस्टल बैलेट पर भी खर्च हुआ. इन सब बातों के चलते खर्च बढ़ना लाजमी था. जिन ठेकेदारों ने सही बिल दिया है उनका भुगतान समय से हो इसके लिए मैंने सभी जिलों के डीएम को निर्देश दिया है. जिन ठेकेदारों ने चुनाव के समय काम किया है उनका भुगतान समय पर हो यह आयोग की जिम्मेदारी है. ऐसा न हो कि सही बिल के भुगतान में देर हो और इसके चलते कोई कोर्ट चला जाए."
"चुनाव में खर्च अधिक नहीं हुआ है. कुछ ठेकेदारों ने अप्रत्याशित रूप से अधिक खर्च का वाउचर दे दिया है. पिछले चुनाव में भी इस तरह की परेशानी आई थी. कुछ वेंडर बढ़ा-चढ़ाकर बिल देते हैं. इसकी जांच होगी. हमलोगों के पास वर्क कार्ड रहता है. फोटो और वीडियो से भी पता चलेगा कि ठेकेदार ने कितना टेंट और शामियाना लगाया था. इसका डिटेल्स मिल जाएगा. तुलना करके जो सही खर्च होगा उसका भुगतान किया जाएगा."- एचआर श्रीनिवास, मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी, बिहार
दरअसल, 2019 में हुए लोकसभा चुनाव की तुलना में 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में खर्च 10-12 फीसदी बढ़ गया. चुनाव आयोग और जिला प्रशासन को कोरोना संकट के चलते खर्च में वृद्धि का अंदेशा था, लेकिन कई जिलों से इतना अधिक खर्च का बिल आ गया, जिसे देख अधिकारी हैरत में पड़ गए.
आपको याद होगा चारा घोटाले का वो दौर, जब बाइक पर चारा और भैंस ढोने का मामला सामने आया था. जालसाजी करने वालों ने बिल में ट्रक की जगह बाइक का नंबर दर्ज कर दिया था. ठीक उसी तरह तीन माह पहले हुए विधानसभा चुनाव में इस्तेमाल हुए चार पहिया गाड़ियों के खर्च के बिल में बाइक का नंबर डाल दिया गया. इतना ही नहीं चुनाव कार्य में बाइक इस्तेमाल करने में सैकड़ों लीटर डीजल खर्च दिखा दिया गया.
गौरतलब है कि चुनाव में सुरक्षा बलों के जवानों को ठहराने, बूथ तक ले जाने-लाने, खाने-पीने और चुनाव संबंधी अन्य इंतजाम करने का काम निजी ठेकेदारों को दिया जाता है. चुनाव के बाद ठेकेदार जिला प्रशासन को खर्च का बिल देते हैं, जिसके बाद उन्हें पैसा दिया जाता है. ठेकेदारों ने अपने खर्च का बिल जिला प्रशासन को दे दिया है और अब वे भुगतान की मांग कर रहे हैं. जिला प्रशासन द्वारा बिल की जांच की गई तो पता चला कि कई ठेकेदारों ने बढ़ा-चढ़ाकर बिल दिया है.
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पूर्वी चंपारण में थमाया सात गुना अधिक खर्च का बिल
पूर्वी चंपारण जिले के 12 विधानसभा सीटों पर हुए चुनाव के इंतजाम के लिए ठेकेदारों की तरफ से हर विधानसभा में 21-21 करोड़ रुपए खर्च का बिल थमाया गया. जिला प्रशासन को उम्मीद थी कि लोकसभा चुनाव की तुलना में कोरोना के चलते खर्च बढ़ने पर भी एक विधानसभा का कुल खर्च 3 करोड़ से अधिक नहीं होगा. जिला प्रशासन बिल की जांच कर रही है.
फोर व्हीलर की जगह डाल दिया बाइक का नंबर
जिला प्रशासन की ऑडिट टीम ने बिल की जांच की तो कई फर्जीवाड़ा सामने आए. चुनाव कार्य में इस्तेमाल हुई फोर व्हीलर गाड़ियों के नंबर के बदले बाइक का नंबर डाल दिया गया. वाहनों के इंधन पर हुए खर्च की जांच की गई तो पता चला कि बाइक के इस्तेमाल में सैकड़ों लीटर डीजल खर्च हो गए. जहां सुरक्षा बल के जवान ठहरे नहीं वहां भी टेंट और पंडाल लगाने का बिल जमा कर दिया गया.
कोरोना के चलते बढ़ा खर्च
बिहार के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी एचआर श्रीनिवास ने बताया कि लोकसभा चुनाव की तुलना में विधानसभा चुनाव में अधिक खर्च होगा इसका हमलोगों को अनुमान था. कोरोना संकट के चलते खर्च बढ़ा. 50 फीसदी अधिक मतदान केंद्र बनाए गए. कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए हेल्थ टूल किट खरीदे गए. सुरक्षा बल के जवानों को लाने और ले जाने के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग बरती गई. टेंट भी अधिक लगाने पड़े.