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राजनीति में बाहुबल का खत्म होगा राज! बिहार ही करेगा आगाज - JDU

खास बात ये भी है कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के पहले शिकार लालू यादव ही थे. जिनसे सांसद के सभी अधिकार छीन लिए गए थे. ऐसे में कोर्ट की यह पहल दागियों के लिए मुसीबत है.

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Published : Feb 17, 2020, 1:05 PM IST

Updated : Feb 17, 2020, 1:45 PM IST

पटना: अपराध जगत से राजनीति में सिक्का जमाने वाले लोगों के दिन अब लदने वाले हैं. इसके लिए कोर्ट का हथौड़ा पड़ गया है. राजनीतिक दलों को अपराधियों को टिकट देने के साथ ही उनके अपराध और उन्हें टिकट देने के कारण को जारी करने का जो फरमान कोर्ट ने दिया है, उससे बिहार में विधानसभा में बैठे आधे माननीयों की राजनीतिक नौकरी का जाना तय है.

केजे राव ने ध्वस्त किया कईयों का साम्राज्य
कभी धन बल, जाति बल और बाहुबल में जो पार्टी जितनी मजबूत होती थी सत्ता उसके आधीन होती थ. जाति बल जीत का आधार बनता था और धनबल बाहुबल के बूते सरकार चलती थी, और बिहार इस राजनीति का सबसे बड़ा उदाहरण रहा है. हालांकि बदलाव की कहानी भी बिहार से ही लिखी गयी है. 2005 में चुनावों में निकलने वाले जिन्न पर केजे राव जैसे अधिकारियों ने रोक लगाई. कई बाहुबलियों का पूरा साम्राज्य ही घ्वस्त हो गया.

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बिहार विधानसभा (FILE PIC)

हर दल ने अपराधियों को संरक्षण दिया
2005 में बिहार की जनता ने बदलाव की कहानी लिख दी और बदली राजनीति ने लालू के जंगल राज के शब्द से अलग जाकर सुशासन का नारा गढ़ दिया. संगठित अपराध गिरोह और अपहरण उद्योग के लिए मशहूर कह दिए जाने वाले बिहार को नए तरीके से तैयार करने का काम शुरू हो गया, हालांकि बदलाव में विभेद को पाटने का काम नहीं किया गया. लालू सरकार में जो सत्ता में थे वे सही थे और सुशासन सरकार में जो हैं वे सही हैं. बस बदलाव तब होता है. जब साहेब की सियासत पर सवाल उठ जाता है.

सत्ता में रहा बाहुबलियों का बोलबाला
बिहार की राजनीति में कभी सिवान में साहेब के नाम से सत्ता चालाने वालों पर सुशासन का चाबुक तो चला लेकिन बाढ़, मोकामा बाले साहेब की बढ़ोतरी ने उन्हें सुशासन की सत्ता में नया मुकाम दे दिया. पीरो भोजपुर के सुनील पाण्डेय और हुलास पांण्डेय का उल्हास भी सुशासन में कुछ कम नहीं हुआ. सिवान में अपना सिक्का चलाने वाले अजय सिंह जदयू वाली सुशासन की सरकार की दरियादिली में सत्ता के रेड कोरीडोर में खूब घूमे.

इतने विधायकों पर दर्ज हैं आपराधिक केस
बिहार की चल रही विधान सभा की बात करें तो 243 विधायकों में से 142 यानी 58 फीसदी पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. बिहार इलेक्शन वाच के मुताबिक, आपराधिक पृष्ठभूमि वाले कुल विधायकों में से 90 यानी 40 फीसदी पर हत्या, हत्या के प्रयास, सांप्रदायिक वैमनस्य फैलाने, अपहरण, महिलाओं के खिलाफ अपराध जैसे संगीन मामले दर्ज हैं, जिसमें 70 विधायकों पर आरोप तय किये जा चुके हैं. आंकड़ों के मुताबिक राष्ट्रीय जनता दल के वर्तमान 80 विधायकों में से 46 विधायक आपराधिक छवि के हैं. वहीं जदयू के 71 विधायकों में से 34 पर मामले दर्ज है. भाजपा के भी 53 विधायकों में से 34 विधायक आपराधिक छवि के हैं. जबकि कांग्रेस के 27 में से 16 विधायकों पर आपराधिक मामला दर्ज है.

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सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

कईयों की जाएगी राजनीतिक नौकरी
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सियासतदान इस बात की तरकीब निकालने में जुटे हैं कि इस कानून से कैसे पार पाया जाये. इस कानून की सबसे बड़ी परेशानी इसलिए भी है कि इस नियम के आने के बाद पहला विधानसभा चुनाव बिहार में है. बिहार के 2020 की तैयारी में जुटे राजनीतिक दलों के 50 फीसदी से ज्यादा माननीय अगर कानून की निगरानी की भेंट चढ़े तो सभी राजनीतिक दलों के लिए वर्तमान वाली सीट के आधे चेहरे गायब हो जाऐंगे.

नये निजाम क्या करेंगे?
खास बात ये भी है कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के पहले शिकार लालू यादव ही थे. जिनसे सांसद के सभी अधिकार छीन लिए गए थे. ऐसे में अब कोर्ट के निर्देश के आलोक में देखने वाली बात यही होगी कि नई राजनीतिक परिभाषा को गढ़ने में जुटे बिहार के दलों के नए निजाम इसे किस अंजाम तक ले जाते हैं. वह समय ही बाताएगा.

पटना: अपराध जगत से राजनीति में सिक्का जमाने वाले लोगों के दिन अब लदने वाले हैं. इसके लिए कोर्ट का हथौड़ा पड़ गया है. राजनीतिक दलों को अपराधियों को टिकट देने के साथ ही उनके अपराध और उन्हें टिकट देने के कारण को जारी करने का जो फरमान कोर्ट ने दिया है, उससे बिहार में विधानसभा में बैठे आधे माननीयों की राजनीतिक नौकरी का जाना तय है.

केजे राव ने ध्वस्त किया कईयों का साम्राज्य
कभी धन बल, जाति बल और बाहुबल में जो पार्टी जितनी मजबूत होती थी सत्ता उसके आधीन होती थ. जाति बल जीत का आधार बनता था और धनबल बाहुबल के बूते सरकार चलती थी, और बिहार इस राजनीति का सबसे बड़ा उदाहरण रहा है. हालांकि बदलाव की कहानी भी बिहार से ही लिखी गयी है. 2005 में चुनावों में निकलने वाले जिन्न पर केजे राव जैसे अधिकारियों ने रोक लगाई. कई बाहुबलियों का पूरा साम्राज्य ही घ्वस्त हो गया.

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बिहार विधानसभा (FILE PIC)

हर दल ने अपराधियों को संरक्षण दिया
2005 में बिहार की जनता ने बदलाव की कहानी लिख दी और बदली राजनीति ने लालू के जंगल राज के शब्द से अलग जाकर सुशासन का नारा गढ़ दिया. संगठित अपराध गिरोह और अपहरण उद्योग के लिए मशहूर कह दिए जाने वाले बिहार को नए तरीके से तैयार करने का काम शुरू हो गया, हालांकि बदलाव में विभेद को पाटने का काम नहीं किया गया. लालू सरकार में जो सत्ता में थे वे सही थे और सुशासन सरकार में जो हैं वे सही हैं. बस बदलाव तब होता है. जब साहेब की सियासत पर सवाल उठ जाता है.

सत्ता में रहा बाहुबलियों का बोलबाला
बिहार की राजनीति में कभी सिवान में साहेब के नाम से सत्ता चालाने वालों पर सुशासन का चाबुक तो चला लेकिन बाढ़, मोकामा बाले साहेब की बढ़ोतरी ने उन्हें सुशासन की सत्ता में नया मुकाम दे दिया. पीरो भोजपुर के सुनील पाण्डेय और हुलास पांण्डेय का उल्हास भी सुशासन में कुछ कम नहीं हुआ. सिवान में अपना सिक्का चलाने वाले अजय सिंह जदयू वाली सुशासन की सरकार की दरियादिली में सत्ता के रेड कोरीडोर में खूब घूमे.

इतने विधायकों पर दर्ज हैं आपराधिक केस
बिहार की चल रही विधान सभा की बात करें तो 243 विधायकों में से 142 यानी 58 फीसदी पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. बिहार इलेक्शन वाच के मुताबिक, आपराधिक पृष्ठभूमि वाले कुल विधायकों में से 90 यानी 40 फीसदी पर हत्या, हत्या के प्रयास, सांप्रदायिक वैमनस्य फैलाने, अपहरण, महिलाओं के खिलाफ अपराध जैसे संगीन मामले दर्ज हैं, जिसमें 70 विधायकों पर आरोप तय किये जा चुके हैं. आंकड़ों के मुताबिक राष्ट्रीय जनता दल के वर्तमान 80 विधायकों में से 46 विधायक आपराधिक छवि के हैं. वहीं जदयू के 71 विधायकों में से 34 पर मामले दर्ज है. भाजपा के भी 53 विधायकों में से 34 विधायक आपराधिक छवि के हैं. जबकि कांग्रेस के 27 में से 16 विधायकों पर आपराधिक मामला दर्ज है.

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सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

कईयों की जाएगी राजनीतिक नौकरी
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सियासतदान इस बात की तरकीब निकालने में जुटे हैं कि इस कानून से कैसे पार पाया जाये. इस कानून की सबसे बड़ी परेशानी इसलिए भी है कि इस नियम के आने के बाद पहला विधानसभा चुनाव बिहार में है. बिहार के 2020 की तैयारी में जुटे राजनीतिक दलों के 50 फीसदी से ज्यादा माननीय अगर कानून की निगरानी की भेंट चढ़े तो सभी राजनीतिक दलों के लिए वर्तमान वाली सीट के आधे चेहरे गायब हो जाऐंगे.

नये निजाम क्या करेंगे?
खास बात ये भी है कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के पहले शिकार लालू यादव ही थे. जिनसे सांसद के सभी अधिकार छीन लिए गए थे. ऐसे में अब कोर्ट के निर्देश के आलोक में देखने वाली बात यही होगी कि नई राजनीतिक परिभाषा को गढ़ने में जुटे बिहार के दलों के नए निजाम इसे किस अंजाम तक ले जाते हैं. वह समय ही बाताएगा.

Last Updated : Feb 17, 2020, 1:45 PM IST
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