पटना: बिहार में जितनी सड़क दुर्घटनाएं (Road Accident) हो रही हैं, उनमें सबसे बड़ा रोल बेलगाम रफ्तार का है. बेलगाम गाड़ी चलाने की वजह से वर्ष 2020 में 3298 सड़क दुर्घटनाएं हुई हैं, जिसमें 2713 लोगों की मौत हुई. अन्य राज्यों में स्पीड गन और गाड़ियों में स्पीड कंट्रोलर (Speed Controller) लगाकर गाड़ियों की ओवर स्पीडिंग (Over Speeding) पर नियंत्रण की कोशिश होती है, लेकिन बिहार में पुलिस प्रशासन सीट बेल्ट और हेलमेट जांच के जरिए सरकार की जेब भरने में लगा है. नतीजा यह हो रहा है कि पुलिस की सारी एनर्जी शहर के अंदर सीट बेल्ट और हेलमेट जांच में खर्च हो रही है.
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बिहार से गुजरने वाले नेशनल हाइवे और बिहार के स्टेट हाइवे पर लोग तेज रफ्तार में जान गंवा रहे हैं. आंकड़ों के मुताबिक पिछले कुछ साल में बिहार के सड़क हादसों पर नजर डालें तो...
- वर्ष 2016 में कुल 8222 मामले दर्ज हुए, जिनमें 4901 लोगों की जान चली गई. जबकि 5651 लोग जख्मी हुए.
- वर्ष 2017 में 8855 सड़क दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें 5554 लोगों की जान गई. जबकि 6014 लोग जख्मी हुए.
- वर्ष 2018 में 9600 सड़क दुर्घटनाओं में 6729 लोगों की जान गई, जबकि 6679 लोग घायल हुए.
- वर्ष 2019 में 10007 दुर्घटनाएं हुई, जिनमें 7205 लोगों की जान चली गई. जबकि 7206 लोग घायल हुए.
- लॉकडाउन के दौरान वर्ष 2020 में 8639 सड़क दुर्घटनाओं में 6699 लोगों की जान चली गई, जबकि 7019 लोग घायल हुए.
- इस वर्ष के जुलाई तक के आंकड़े के मुताबिक 5737 सड़क दुर्घटनाओं में 4645 लोगों की जान गई है, जबकि 5009 लोग घायल हुए हैं.
- वर्ष 2016 में कुल 8222 मामले दर्ज हुए, जिनमें 4901 लोगों की जान चली गई. जबकि 5651 लोग जख्मी हुए.
वहीं, कोरोना (Corona) की वजह से हुए लॉकडाउन के आंकड़ों पर गौर करें तो बिहार में सबसे ज्यादा मौतें नेशनल हाइवे पर हुई हैं. वर्ष 2020 में बिहार में एनएच पर 3285 लोगों की मौत हुई हैं. वहीं स्टेट हाइवे पर 1409 लोगों की इस दौरान मौत हुई. बिहार में सबसे अधिक सड़क दुर्घटना इस वर्ष पटना जिले में दर्ज की गई है. जनवरी से जुलाई तक पटना में 594 सड़क दुर्घटनाओं में 420 लोगों की जान गई है. इस मामले में दूसरे नंबर पर मुजफ्फरपुर है, जहां 365 सड़क हादसों में 319 लोगों की मौत हुई. तीसरे नंबर पर वैशाली है, जहां जनवरी से जुलाई तक 225 सड़क हादसों में 172 लोगों की मौत हुई.
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पटना में स्पीड गन की खरीद पहले हुई थी और एक बार फिर ज्यादा संख्या में स्पीड गन खरीदने के लिए राशि जारी हुई है. विशेष रुप से शहरी क्षेत्र में वाहनों की गति पर नियंत्रण के लिए स्पीड गन का इस्तेमाल होता है. इसके अलावा कई साल पहले परिवहन विभाग ने स्पीड गवर्नर लगाने की शुरुआत भी की थी. जिसके तहत तमाम व्यवसायिक वाहनों में स्पीड गवर्नर लगाना है, जिसे वाहनों की गति नियंत्रित रह सके. मगर विडंबना यह है कि अब तक इस दिशा में विभाग की ओर से सख्ती नहीं बरती गई. जिस वजह से बड़ी संख्या में व्यवसायिक वाहन बिना स्पीड गवर्नर लगाए ही सड़क पर दौड़ रहे हैं.
ईटीवी भारत ने कई ऐसे लोगों से बात की जो नेशनल हाइवे के आस पास रहते हैं. राकेश कुमार का कहना है कि लॉकडाउन में गाड़ियां कम चल रही थी, इस वजह से रफ्तार पर कोई नियंत्रण लोगों ने नहीं रखा. लोगों की लापरवाही और ज्यादा बढ़ी, क्योंकि इस पर सरकार का कोई ध्यान नहीं था. राकेश कुमार ने कहा कि जितनी चेकिंग शहर में होती है और जितने स्पीड ब्रेकर शहर में लगाए गए हैं, ऐसा ही कुछ सरकार को नेशनल हाइवे पर भी करना चाहिए. तभी लोग बेलगाम रफ्तार से गाड़ी नहीं चलाएंगे और तभी एक्सीडेंट पर लगाम लगेगी.
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बिहार और देश के अन्य शहरों की ट्रैफिक व्यवस्था पर नजदीकी नजर रखने वाले तकनीकी विशेषज्ञ सौम्य शंकर ने बताया कि जिस तरह देश के बड़े शहरों में और विदेशों में स्पीड पर नजर रखने के लिए स्पेशल कैमरे लगाए जाते हैं, कुछ ऐसी ही व्यवस्था नेशनल हाइवे पर करनी चाहिए. इसके अलावा स्पीड गवर्नर और स्पीड गन की मदद लेनी चाहिए, तभी स्पीड पर लगाम लग सकेगी और तभी हम लोगों की जान बचा पाएंगे.
इस पूरे मामले में परिवहन विभाग मानव बल की कमी का रोना रोता है. परिवहन विभाग के सचिव संजय कुमार अग्रवाल ने कहा कि हमारे विभाग की स्थिति इस मामले में काफी बुरी थी. जब महज दो सिपाहियों के भरोसे हमारा विभाग चल रहा था, लेकिन अब 400 से ज्यादा चलन दस्ता सिपाही की बहाली हुई है. जिनकी ट्रेनिंग चल रही है और अब उन्हें विभिन्न कार्यों में लगाया जाएगा. जिसके बाद परिवहन विभाग के तमाम नियम सख्ती से लागू किए जाएंगे. संजय कुमार अग्रवाल ने उम्मीद जताई है कि आने वाले वक्त में सड़क सुरक्षा को लेकर परिवहन विभाग सख्ती से काम करेगा और दुर्घटनाओं में कमी आएगी.