पटना: आरजेडी उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी (RJD Vice President Shivanand Tiwari) ने मुख्यमंत्री नीतीश पर लगातार हमला करने वाले चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को आड़े हाथ लिया है. उन्होंने अपने फेसबुक पोस्ट पर लिखा कि प्रशांत किशोर की पदयात्रा का मकसद धीरे-धीरे साफ होता जा रहा है. बिहार के दोनों खेमों की राजनीति से अलग एक नई राजनीति की शुरुआत के मकसद से शुरू की गई यह पद यात्रा नीतीश विरोध की राजनीति में बदलती जा रही है. उन्होंने आगे लिखा कि पीके से मैं दो मर्तबा मिला हूं, उन्हीं की पहल पर. यह उन दिनों की बात है जब वे नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री बनाने का अभियान चला रहे थे.
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'पीके ने आरजेडी-जेडीयू के विलय का प्रस्ताव दिया': शिवानंद तिवारी ने लिखा, " प्रधानमंत्री बनाने का उनका फॉर्मूला अजीबोगरीब था. उनका कहना था कि आरजेडी और जेडीयू को मिल जाना चाहिए. दोनों मिल जाएंगे तो बिहार और झारखंड की 54 लोकसभा सीटों में से कम से कम 48 से 50 सीट तक जीत सकते हैं. उनके अनुसार अगले लोकसभा चुनाव के बाद पहले, दूसरे स्थान पर आने वाली पार्टी की सरकार नहीं बनेगी. तीसरे स्थान पर हमारी पार्टी रहेगी और इसकी सरकार बनने की संभावना प्रबल है. ऐसा क्यों होगा, यह उन्होंने स्पष्ट नहीं किया और न मैंने पूछा. उन्होंने इशारों में यह भी बताया था कि हमारी सरकार बन जाएगी और नीतीश जी प्रधानमंत्री बन जाएंगे तो लालू जी का मामला भी रफा दफा हो जाएगा."
शिवानंद के अनुसार, "प्रशांत जी से मुलाकात के पहले उनकी एक छवि मेरे मन में बनी हुई थी. वह एक कुशल और सफल चुनावी प्रबंधक की छवि थी. पहली मुलाकात में ही प्रशांत की वह पुरानी छवि मेरे चित्त से उतर गई. बिलकुल काल्पनिक कहानी की तरह मुझे उन्होंने अपनी योजना समझाई. जब मैंने उनसे कहा कि जेडीयू जब तक बीजेपी के साथ है, उनसे मिल जाने का अर्थ होगा कि आरजेडी भी बीजेपी के साथ हो जाए, यह तो नामुमकिन है. प्रस्ताव पर आरजेडी में विचार किया जाए, यह कह कर उन्होंने उस बातचीत का समापन किया था. प्रशांत मुझसे मिलने आ रहे हैं, इसकी जानकारी मैंने लालू जी को दे दी थी. उन्होंने बताया था कि प्रशांत उनसे भी इस प्रस्ताव के साथ मिल चुके हैं. लालू जी ने भी प्रशांत को यही कहा था कि यह सब उसी हालत में संभव है, जब नीतीश भाजपा गठबंधन से बाहर आ जाएं."
पीके गांधी जी से प्रभावित-शिवानंद: आरजेडी नेता ने आगे कहा कि मुझे लगता रहा कि पीके महात्मा गांधी से बहुत प्रभावित हैं. कई मर्तबा उनके मुंह से गांधी का नाम सुना है. गांधीजी का नाम प्रशांत कुछ इस अंदाज में लेते हैं, जैसे उन्हें वे अपना आदर्श मानते हों. हालांकि कभी-कभी मुझे आश्चर्य भी होता था कि जो आदमी गांधी को अपना आदर्श मानता है, वह देश में आज जिस निर्लज्जता के साथ सांप्रदायिकता को ही राजनीति का मूलाधार बनाया जा रहा है, उस पर मौन कैसे है.
"जब मैंने प्रशांत की पद यात्रा का कार्यक्रम देखा तो फिर एक उम्मीद पैदा हुई. वह कठिन संकल्प की घोषणा थी. यह गांधी का रास्ता है. सचमुच प्रशांत कुछ बड़ा करने जा रहे हैं लेकिन कार्यक्रम की शुरुआत ने ही बहुत निराश किया. बिहार के सभी अखबारों में पूरे पेज का विज्ञापन, यह तो कल्पनातीत था. बिहार की किसी भी राजनीतिक पार्टी ने प्रचार का ऐसा वल्गर प्रदर्शन कभी नहीं किया. यह देखने के बाद मुझे एहसास हुआ कि गांधी का नाम तो शायद प्रशांत के लिए अपने असली चेहरे को छुपाने का एक ढोंग है. नीतीश कुमार देश के अंदर जो सांप्रदायिक विभाजनकारी राजनीति हो रही है, उसका विरोध कर रहे हैं और प्रशांत किशोर, नीतीश कुमार का विरोध कर रहे हैं"- शिवानंद तिवारी, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, आरजेडी
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