पटना: अरुणाचल प्रदेश की विधानसभा में मेंस्ट्रुअल लीव मुद्दा बिहार में भी छा गया है. इस मामले पर बिहार की मुखिया फेम रहीं आरजेडी की प्रदेश प्रवक्ता रितु जायसवाल (RJD spokesperson Ritu Jaiswal) ने ट्वीट कर बीजेपी को निशाने पर लिया है. उन्होंने कहा कि ये लालू प्रसाद कि सोच थी कि उन्होंने तब सरकार में रहते हुए 1992 में इसकी स्वीकृति दी. लेकिन, दूसरी तरफ बीजेपी इसे अशुभ मानती है. बीजेपी का वश चले तो माहवारी के दिनों में महिलाओं को सदन में घुसने भी ना दे.
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''महिलाओं के प्रति एक सोच माननीय लालू प्रसाद यादव जी की थी, जिन्होंने महावारी के दौरान की पीड़ा को ध्यान में रखते हुए बिहार में 'पीरियड लीव' (Period Leave) को स्वीकृति दी थी और एक सोच भाजपा की है जो सदन में इस पर चर्चा भी अशुभ मानती है. इनका बस चले तो महिलाओं को महावारी के दौरान सदन में घुसने तक न दे.''- रितु जायसवाल, प्रवक्ता, आरजेडी
अरुणाचल में पीरियड लीव पर विवाद: अरुणाचल प्रदेश की विधानसभा (Arunachal Pradesh Legislative Assembly) में वहां की कांग्रेस विधायक निनांग एरिंग एक प्राइवेट मेंबर बिल लेकर आईं. इस बिल में उन्होंने काम करने वाली महिलाओं के लिए पीरियड लीव की मांग की. साथ ही इस पर चर्चा कराने को कहा गया. उन्होंने मांग रखी कि मासिक पीरियड शुरू होने के दिन वर्किंग महिलाओं और लड़कियों को छुट्टी दी जानी चाहिए. हैरान करने वाली बात ये है कि इस प्रस्ताव को चर्चा के योग्य ही नहीं पाया गया.
'मासिक धर्म' पर BJP MLA की टिप्पणी: अरुणाचल प्रदेश की विधानसभा में कांग्रेस विधायक निनांग एरिंग के इस प्रस्ताव के विरोध में वहां के बीजेपी विधायक लोकम टेसर ने कहा कि मासिक धर्म एक गंदी चीज है. इस पर विधानसभा में चर्चा नहीं होनी चाहिए, इस पर महिला आयोग को संज्ञान लेना चाहिए.
BJP MLA लोकम टेसर के बयान का विरोध: हालांकि, अरुणाचल प्रदेश विधानसभा (Arunachal Pradesh Legislative Assembly) में मौजूदा बीजेपी विधायक की टिप्पणी पर पार्टी सहयोगी भी परेशान हैं. बीजेपी नेता गम तायेंग ने इस तरह के बयान के लिए अपनी पार्टी के सहयोगी लोकम तसर की खुले तौर पर आलोचना की है. ईटीवी भारत को दिये एक विशेष साक्षात्कार में गम तायेंग ने कहा कि मैं मासिक धर्म पर लोकम तसर के बयान का समर्थन नहीं करती. यह स्वाभाविक है और यह सभी महिलाओं के साथ होता है. तायेंग ने विपक्षी दल के विधायक निनॉन्ग एरिंग (कांग्रेस से) द्वारा लाए गए निजी सदस्य के प्रस्ताव का समर्थन करते हुए कहा कि इस मामले पर संबंधित हितधारकों के साथ चर्चा करने की आवश्यकता है.
बता दें कि अरुणाचल प्रदेश की वूमन्स वेलफेयर सोसायटी (APWWS) ने विधानसभा में मेंस्टूअल लीव के मुद्दे पर हुए हंगामे पर नाराजगी जाहिर की है. सोसायटी की सेक्रेटरी जनरल कनीनडा मेलिंग ने कहा कि विधानसभा के सदस्य लड़कियों और महिलाओं को मेंस्टूअल लीव देने के प्रस्ताव से असहमत हो सकते हैं, मगर उन्हें इस मुद्दे पर महिलाओं की गरिमा का ख्याल रखना चाहिए था. बायोलॉजिकल प्रक्रिया के बारे में उनकी राय यह जाहिर करता है कि इन विधायकों के मन में महिलाओं के लिए कितनी अज्ञानता और असम्मान है. मेन्स्ट्रूएशन टैबू नहीं है. एक मदर एनजीओ के रूप में, APWWS विधायकों को सलाह देता है कि वे शब्दों के चयन के प्रति अधिक सचेत रहें जो वे विधानसभा में इस्तेमाल करते हैं.
बिहार में सबसे पहले दी गई मेंस्ट्रुअल लीव: बता दें कि भारत में सबसे पहले बिहार में 1992 में लालू सरकार ने महिलाओं की 32 दिन की हड़ताल के बाद सरकारी क्षेत्रों में मेंस्ट्रुअल लीव की व्यवस्था की थी. बिहार में कानून के बाद उत्तर प्रदेश, दिल्ली, केरल, महाराष्ट, कर्नाटक, तमिलनाडु, गोवा आदि राज्यों के शिक्षक संघ और महिला संगठन पीरियड्स लीव की मांग कर रहे हैं. नवंबर 2020 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने पीरियड्स लीव की एक जनहित याचिका पर सुनवाई में केंद्र और दिल्ली सरकार से व्यावहारिक निर्णय का आदेश दिया था मगर कुछ नहीं हुआ.
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