पटनाः बीते कुछ महीनों से बिहार में भी जातीय जनगणना (Caste Census) कराने की मांग जोर शोर से उठी रही थी. बिहार की ज्यादातर बड़ी पार्टियां जातीय जनगणना कराने पर एक मत थीं. लेकिन केंद्र की मोदी सरकार(Modi Government) ने जातीय जनगणना कराने से साफ इनकार कर दिया है. इसे लेकर अब विपक्षी खेमे में खलबली मच गई है. विपक्ष अब एनडीए को घेरने में लगा है.
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राजद प्रवक्ता भाई वीरेंद्र ने कहा है कि जातीय जनगणना को लेकर केंद्र सरकार का जो निर्णय है वो दुर्भाग्यपूर्ण है. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री खुद इसको लेकर प्रधानमंत्री से मुलाकात करने गए थे. बिहार से एक डेलिगेट्स भी गया था और बातें भी सकारात्मक हुई थीं. लेकिन जिस तरह की बातें सामने आईं हैं कि जातीय जनगणना नहीं होगी वो सही नहीं है.
'देश की जनता जानना चाहती है कि किस जाति के कितने लोग यहां निवास करते हैं. वाबजूद इसके प्रधानमंत्री जातीय जनगणना नहीं करवा रहे हैं. ये आश्चर्य की बात है. वो आरएसएस के एजेंडा पर चल रहे हैं. देश के सम्पति को बेच रहे हैं. अपने हिसाब से पूंजीपतियों को लाभ पहुंचा रहे हैं. जो वाजिब मांग उनके साथ रहने वाले लोग करते हैं, उन्हें भी वो नहीं मान रहे हैं'- भाई वीरेंद्र, राजद प्रवक्ता
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भाई वीरेंद्र ने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बिहार में अपने खर्चे पर जातीय जनगणना करानी चाहिए. कई राज्यों ने अपने राज्य में कराया है. साथ ही उन्होंने मांग किया कि नीतीश कुमार की बात अगर एनडीए में नहीं सुनी जा रही है तो उन्हें एनडीए से अलग हो जाना चाहिए. अभी समय है उनके पास मुद्दा भी इसी मुद्दे के बहाने उन्हें बीजेपी से बदला लेना चाहिए.
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बता दें कि केंद्र सरकार ने जातीय जनगणना कराने से साफ इनकार कर दिया है. इसे लेकर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा भी दायर किया है. जिसमें कहा है कि पिछड़े वर्गों की जाति आधारित जनगणना प्रशासनिक रूप से कठिन और दुष्कर है और जनगणना के दायरे से इस तरह की सूचना को अलग करना सतर्क नीति निर्णय है. वहीं, केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग ने भी केंद्र सरकार को कहा है कि पिछड़े वर्गों की गणना प्रशासनिक पर मुश्किल है. इससे जनगणना की पूर्णता और सटीकता दोनों को नुकसान होगा.