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JDU से PK और पवन वर्मा के निकाले जाने पर जानें क्या है बुद्धिजीवियों की राय

जेडीयू ने पवन वर्मा और प्रशांत किशोर पर कार्रवाई का डंडा चलाने को लेकर साहित्यकार प्रेम कुमार मणि और भाजपा प्रवक्ता सुरेश रूंगटा ने प्रतिक्रिया दी है. इन लोगों ने कहा कि जदयू में बुद्धिजीवियों को तरजीह नहीं दी जाती है.

पटना
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Published : Feb 7, 2020, 10:43 PM IST

पटना: सीएम नीतीश कुमार की यूएसपी सुशासन है. नीतीश कुमार के सिद्धांतों और आदर्शों से आकर्षित होकर कई बुद्धिजीवियों ने जेडीयू की ओर रुख किया. कुछ समय के लिए पार्टी ने वैसे लोगों को सम्मान तो दिया पर वह लंबे समय तक टिक नहीं पाए और दल से बाहर निकाले गए या निकल गए.

'जदयू में बुद्धिजीवियों को तरजीह नहीं'
बता दें कि नीतीश कुमार देशभर में सुशासन के लिए जाने जाते हैं. बिहार की छवि को राष्ट्रीय स्तर पर बदलने में सीएम नीतीश कुमार ने अपनी भूमिका भी निभाई है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कई बुद्धिजीवियों को पार्टी से जोड़ा और सामंजस्य स्थापित करने की कोशिश की. प्रेम कुमार मणि, पवन वर्मा, प्रशांत किशोर सरीखे नेता जेडीयू से जुड़े तो जरूर लेकिन वह राजनीति के डगर पर चल नहीं सके.

'बुद्धिजीवी नहीं सीख पाए नेतृत्व के गुण'
3 साल पहले जिस प्रशांत किशोर को नीतीश कुमार ने बिहार का भविष्य कहा था. आज उसी प्रशांत किशोर का राजनीतिक भविष्य अधर में है. पार्टी ने प्रशांत किशोर को नंबर 2 का पद दिया था. लेकिन बहुत छोटे अंतराल पर ही प्रशांत किशोर ने पार्टी लाइन के खिलाफ स्टैंड लिया और जदयू को उन्हें पार्टी से निकालना पड़ा. पवन वर्मा जेडीयू के पहले के स्टैंड के अनुसार सीएए और एनआरसी को लेकर लगातार पार्टी लाइन के खिलाफ बोल रहे थे. इसीलिए उनके खिलाफ कार्रवाई का डंडा चला.

पेश है रिपोर्ट

राजनीति में कोई विचार स्थिर नहीं होता- प्रेम कुमार मणि
इस मामले को लेकर साहित्यकार प्रेम कुमार मणि ने कहा कि नीतीश कुमार ने सम्मान के साथ उन्हें भी जेडीयू में लाया था. उन्हें विधान पार्षद भी बनाया गया. लेकिन सदन आयोग के गठन के सवाल पर प्रेम कुमार ने अलग राय रखी और उन्हें भी पार्टी छोड़नी पड़ी. प्रेम कुमार मणि का कहना है कि बुद्धिजीवी एक जगह अगर रह गए तो वह बुद्धिजीवी कैसे कहलाएंगे. बुद्धिजीवियों के साथ-साथ उनके विचार भी चलते हैं. राजनीति में कोई विचार स्थिर नहीं होता.

बुद्धिजीवी तब तक नेता नहीं होते जबतक जनता पीछे ना हो
भाजपा प्रवक्ता सुरेश रूंगटा ने कहा है कि पवन वर्मा और प्रशांत किशोर नेता नहीं हो सकते. यह लोग नौकरशाह या टेक्नोक्रेट जरूर हो सकते हैं. लेकिन इनके अंदर नेतृत्व का गुण नहीं आ सकता. नेता बनने के लिए बहुत सारे बलिदान देने होते हैं. वहीं, राजनीतिक विश्लेषक नवल किशोर चौधरी का कहना है कि पवन वर्मा और प्रशांत किशोर या दूसरे बुद्धिजीवी पार्टी लाइन पर नहीं चल पाते. दोनों नेताओं ने जदयू से अलग राह अख्तियार किया हुआ था. वो अलग भविष्य की तलाश कर रहे थे. इसी कारण जेडीयू ने कार्रवाई का डंडा चलाया है. साथ ही नवल किशोर चौधरी ने कहा कि बुद्धिजीवी तब तक नेता नहीं हो सकते, जब तक कि जनता उनके पीछे ना हो.

पटना: सीएम नीतीश कुमार की यूएसपी सुशासन है. नीतीश कुमार के सिद्धांतों और आदर्शों से आकर्षित होकर कई बुद्धिजीवियों ने जेडीयू की ओर रुख किया. कुछ समय के लिए पार्टी ने वैसे लोगों को सम्मान तो दिया पर वह लंबे समय तक टिक नहीं पाए और दल से बाहर निकाले गए या निकल गए.

'जदयू में बुद्धिजीवियों को तरजीह नहीं'
बता दें कि नीतीश कुमार देशभर में सुशासन के लिए जाने जाते हैं. बिहार की छवि को राष्ट्रीय स्तर पर बदलने में सीएम नीतीश कुमार ने अपनी भूमिका भी निभाई है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कई बुद्धिजीवियों को पार्टी से जोड़ा और सामंजस्य स्थापित करने की कोशिश की. प्रेम कुमार मणि, पवन वर्मा, प्रशांत किशोर सरीखे नेता जेडीयू से जुड़े तो जरूर लेकिन वह राजनीति के डगर पर चल नहीं सके.

'बुद्धिजीवी नहीं सीख पाए नेतृत्व के गुण'
3 साल पहले जिस प्रशांत किशोर को नीतीश कुमार ने बिहार का भविष्य कहा था. आज उसी प्रशांत किशोर का राजनीतिक भविष्य अधर में है. पार्टी ने प्रशांत किशोर को नंबर 2 का पद दिया था. लेकिन बहुत छोटे अंतराल पर ही प्रशांत किशोर ने पार्टी लाइन के खिलाफ स्टैंड लिया और जदयू को उन्हें पार्टी से निकालना पड़ा. पवन वर्मा जेडीयू के पहले के स्टैंड के अनुसार सीएए और एनआरसी को लेकर लगातार पार्टी लाइन के खिलाफ बोल रहे थे. इसीलिए उनके खिलाफ कार्रवाई का डंडा चला.

पेश है रिपोर्ट

राजनीति में कोई विचार स्थिर नहीं होता- प्रेम कुमार मणि
इस मामले को लेकर साहित्यकार प्रेम कुमार मणि ने कहा कि नीतीश कुमार ने सम्मान के साथ उन्हें भी जेडीयू में लाया था. उन्हें विधान पार्षद भी बनाया गया. लेकिन सदन आयोग के गठन के सवाल पर प्रेम कुमार ने अलग राय रखी और उन्हें भी पार्टी छोड़नी पड़ी. प्रेम कुमार मणि का कहना है कि बुद्धिजीवी एक जगह अगर रह गए तो वह बुद्धिजीवी कैसे कहलाएंगे. बुद्धिजीवियों के साथ-साथ उनके विचार भी चलते हैं. राजनीति में कोई विचार स्थिर नहीं होता.

बुद्धिजीवी तब तक नेता नहीं होते जबतक जनता पीछे ना हो
भाजपा प्रवक्ता सुरेश रूंगटा ने कहा है कि पवन वर्मा और प्रशांत किशोर नेता नहीं हो सकते. यह लोग नौकरशाह या टेक्नोक्रेट जरूर हो सकते हैं. लेकिन इनके अंदर नेतृत्व का गुण नहीं आ सकता. नेता बनने के लिए बहुत सारे बलिदान देने होते हैं. वहीं, राजनीतिक विश्लेषक नवल किशोर चौधरी का कहना है कि पवन वर्मा और प्रशांत किशोर या दूसरे बुद्धिजीवी पार्टी लाइन पर नहीं चल पाते. दोनों नेताओं ने जदयू से अलग राह अख्तियार किया हुआ था. वो अलग भविष्य की तलाश कर रहे थे. इसी कारण जेडीयू ने कार्रवाई का डंडा चलाया है. साथ ही नवल किशोर चौधरी ने कहा कि बुद्धिजीवी तब तक नेता नहीं हो सकते, जब तक कि जनता उनके पीछे ना हो.

Intro: सीएम नीतीश कुमार की यूएसपी सुशासन है नीतीश कुमार के सिद्धांतों और आदर्शों से आकर्षित होकर कई बुद्धिजीवियों ने जदयू की ओर रुख किया कुछ समय के लिए पार्टी ने वैसे लोगों को सम्मान तो दिया पर वह लंबे समय तक टिक नहीं पाए और बेआबरू होकर दल से बाहर निकले


Body:जदयू में बुद्धिजीवियों को तरजीह नहीं
नीतीश कुमार देश में सुशासन के लिए जाने जाते हैं बिहार की छवि को राष्ट्रीय स्तर पर बदलने में सीएम नीतीश कुमार ने अपनी भूमिका भी निभाई है मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कई बुद्धिजीवियों को पार्टी से जोड़ा और सामंजस्य स्थापित करने की कोशिश की प्रेम कुमार मणि पवन वर्मा प्रशांत किशोर सरीखे नेता जदयू से जुड़े तो जरूर लेकिन वह राजनीति के डगर पर चल नहीं सके


Conclusion:बुद्धिजीवी नहीं सीख पाए नेतृत्व के गुण
नीतीश कुमार ने सुशासन के दावों को धरातल पर लाने के लिए कई प्रयोग किए इसी क्रम में नीतीश कुमार ने जदयू से बुद्धिजीवियों को जोड़ा लेकिन बुद्धिजीवी राजनीति के डगर पर चल नहीं पाए और उनकी यात्रा लंबी नहीं रह पाई साहित्यकार प्रेम कुमार मणि नौकरशाह पवन वर्मा और टेक्नोक्रेट प्रशांत किशोर नीतीश कुमार के काफी करीबी रह चुके हैं लेकिन जल्द ही ऐसे नेताओं की राह अलग हो जाती है ।
3 साल पहले जिस प्रशांत किशोर को नीतीश कुमार ने बिहार का भविष्य कहा था आज उसी प्रशांत किशोर का राजनीतिक भविष्य अधर में है पार्टी ने प्रशांत किशोर को नंबर दो का पद दिया था लेकिन बहुत छोटे अंतराल पर ही प्रशांत किशोर ने पार्टी लाइन के खिलाफ स्टैंड लिया और जदयू को उन्हें पार्टी से निकालना पड़ा पवन वर्मा भी नागरिकता संशोधन अधिनियम और एनआरसी को लेकर लगातार पार्टी लाइन के खिलाफ बोल रहे थे उनके खिलाफ भी कार्रवाई का डंडा चला।
साहित्यकार प्रेम कुमार मणि को भी नीतीश कुमार ने सम्मान के साथ जदयू में लाया था उन्हें विधान पार्षद भी बनाया गया लेकिन सदन आयोग के गठन के सवाल पर प्रेम कुमार ने अलग राय रखी और उन्हें भी पार्टी छोड़ना पड़ा प्रेम कुमार मणि का कहना है कि बुद्धिजीवी एक जगह अगर रह गए तो वह बुद्धिजीवी कैसे कहलाएंगे बुद्धिजीवियों के साथ-साथ उनके विचार भी चलते हैं राजनीति में कोई विचार स्थिर नहीं होता लिहाजा द्वंद की स्थिति पैदा होती है ।
भाजपा प्रवक्ता सुरेश रूंगटा ने कहा है कि पवन वर्मा और प्रशांत किशोर नेता नहीं हो सकते यह लोग नौकरशाह या टेक्नोक्रेट जरूर हो सकते हैं लेकिन इनके अंदर नेतृत्व का गुण नहीं आ सकता नेता बनने के लिए बहुत सारे बलिदान देने होते हैं।
राजनीतिक विश्लेषक नवल किशोर चौधरी का कहना है कि पवन वर्मा और प्रशांत किशोर या दूसरे बुद्धिजीवी पार्टी लाइन पर नहीं चल पाते। दोनों नेताओं ने जदयू से अलग राह अख्तियार किया हुआ था वह अलग भविष्य की तलाश रहे थे लिहाजा जदयू ने कार्यवाही का डंडा चलाया। नवल किशोर चौधरी ने कहा कि बुद्धिजीवी तब तक नेता नहीं हो सकते जब तक कि जनता उनके पीछे ना हो
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